एक ही वार में बाप-बेटे दोनों को ठिकाने लगा दिया रामगोपाल ने
एक ही वार में बाप-बेटे दोनों को ठिकाने लगा दिया रामगोपाल ने
एक ही वार में बाप-बेटे दोनों को ठिकाने लगा दिया रामगोपाल ने
रामगोपाल यादव के दावं से मुलायम का बुढ़ापा खराब हो गया और अखिलेश का भविष्य
नई दिल्ली, 02 जनवरी। मुलायम होंगे इरादों के लोहा लेकिन मास्टर रामगोपाल यादव के एक ही दावं से पिता-पुत्र दोनों चित्त हो गए हैं। रामगोपाल यादव के दावं से मुलायम का बुढ़ापा खराब हो गया है और अखिलेश का भविष्य।
सैफई राजवंश के झगड़े में मास्टर रामगोपाल महा (खल) नायक बनकर उभरे हैं। कभी मुलायम के सर्वाधिक राजदार होने वाले रामगोपाल ने अपने अपमान का सैफई राजवंश से ऐसा बदला लिया है कि उसकी आने वाली कई पीढ़ियां इससे उबर नहीं सकेंगीं।
दरअसल जब अमरसिंह का सपा में प्रकोप बढ़ा तब पहले तो रामगोपाल, अमर सिंह के ही पिछलग्गू थे, लेकिन बाद में अमर सिंह से उनकी खटपट हो गई।
बताया जाता है कि सपा के फैजाबाद में हुए कार्यकर्ता सम्मेलन में अमर सिंह ने रामगोपाल पर इशारों ही इशारों में हमला किया था, जिससे रामगोपाल इतने विचलित हो गए थे कि उन्हें दिल्ली में आकर अस्पताल में भर्ती होना पड़ा था। वहां से रामगोपाल-अमर में जो दरार पड़ी वह आगे चलकर खाई बनती गई।
रामगोपाल एक बार तो अमर सिंह को सपा से निकलवाने में कामयाब रहे, लेकिन बाद में अमर सिंह की सपा में एंट्री हो गई और रामगोपाल ने इसे अपना अपमान समझा।
समझा जाता है कि अपने इस तथाकथित अपमान का बदला लेने के लिए रामगोपाल ने जो दावं चला उससे मुलायम का कुनबा न केवल बिखर गया है, बल्कि उसके सामने अस्तित्व का संकट भी पैदा हो गया है।
दरअसल रामगोपाल ने एक जनवरी का अधिवेशन बुलवाकर अखिलेश को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनवाने की जल्दबाजी इसलिए करी कि कहीं अखिलेश के मन में फिर से पिता के लिए सम्मान जाग गया तो बाप-बेटों में सुलह हो सकती है। इसलिए भविष्य में बाप-बेटों के बीच सुलह के सारे रास्ते बंद करने के लिए ही अधिवेशन का दावं चला गया।
एक सपा कार्यकर्ता ने निजी बातचीत में कहा कि दरअसल पार्टी का संविधान रामगोपाल ने नहीं बल्कि मोहन सिंह ने लिखा था और उसमें सारे अधिकार नेताजी को हासिल हैं, रामगोपाल यह बात अच्छे से जानते थे इसीलिए उन्होंने अधिवेशन वाला दावं चला ताकि अखिलेश की घर वापसी के सारे रास्ते बंद हो जाएं। रही-सही कसर पार्टी दफ्तर पर कब्जा कराकर भी पूरी कर दी।
अब स्थिति यह है कि सारी दुनिया से बड़ी-बड़ी जंग जीतने वाले मुलायम का बुढ़ापा बेटे से लड़ते हुए बीतेगा और बेटा अखिलेश,लोगों की नज़र में औरंगज़ेब का समाजवादी अवतार बन गया है और यह दाग़ अब अखिलेश लाख कोशिशें करके भी छुड़ा नहीं सकते। इसका खमियाजा आने वाले समय में अखिलेश को भुगतना पड़ेगा। मुलायम का 30दिसंबर 2016 को कहा गया वाक्य कि रामगोपाल अखिलेश का भविष्य खराब कर रहा है, सही साबित होने जा रहा है।
दरअसल जब मुलायम ने यह वाक्य कहा तो वह एक राजनेता का बयान नहीं था, बल्कि अपनी औलाद से हारे हुए पिता का दर्द था।
अब जो स्थिति है, उसमें भले ही सैफई राजवंश के अन्य युवराज भले ही अखिलेश के साथ खड़े नज़र आ रहे हों, लेकिन थोड़े ही दिनों में ये सारे युवराज पैदल होते नज़र आएंगे।
अभी तक इन राजकुमारों की जनता में हैसियत मुलायम के भतीजे होने की वजह से थी, जो अब मुलायम से विश्वासघात करने के बाद खतम हो गई है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि आगे जो परिस्थितियां बनेंगी उसमें रामगोपाल इन राजकुमारों को भी सबक सिखाने के लिए काम करेंगे और अखिलेश का अगला निशाना यही राजकुमार होंगे।
बहुजन छात्र राजनीति का जाना पहचाना चेहरा दिव्यांशु पटेल कहते हैं –
“किरणमय नंदा कह रहे हैं - जिसकी कोई हैसियत नही वो क्या किसी को निकालेगा, तो नरेश अग्रवाल कह रहे हैं -नेताजी को हमें निकालने का अधिकार नही,वो दिमाग़ से सोच नही पा रहे।
संरक्षक लोग को बुढ़ापे मे यही सब सुनना पड़ता है क्या ! बाकी सब तो चलो राजनीति है मगर अखिलेश यादव को यदि इतिहास का ज़रा भी ज्ञान है तो अलाउद्दीन ख़िलजी की तरह ऐसे लोगों को जल्द से जल्द कायदे में लाना पड़ेगा जो मौक़ा मिलते ही उस आदमी को दिमाग़ी रूप से कमज़ोर, बेकार बता रहे जिसने इनके जैसों को इतने साल तक राज्यसभा की मलाई खिलायी!”
एक सपा कार्यकर्ता ने अपना नाम न छापने की शर्त पर कहा कि यह नेताजी का दुर्भाग्य है कि जो लोग कभी कांग्रेस नेता शांतिदेवी के बर्तन धोया करते थे, उन्हें नेता जी ने कई बार विधायक-मंत्री बनाया, उनकी सात पीढ़ियों के खाने-पीने का इंतजाम कर दिया, वे भी बुरे वक्त में नेताजी को धोखा देकर रामगोपाल के साथ चले गए।
मंडल मसीहा वीपी सिंह की विचारधारा के चिंतक संदीप वर्मा कहते हैं -
सत्ता की मलाई खाने वाले सत्ता के साथ हैं, नैतिकता मुलायम सिंह जी के साथ। दांव पर पूरी पार्टी और यूपी ही नहीं देश की जनता का भविष्य है। बिहार में गठबंधन से अलग होने की सलाह देने वाले इस समय यूपी के चुनाव को प्रभावित करने में लगे हैं। मुलायम सिंह जी की लिस्ट के समानान्तर लिस्ट में गठबंधन के लिए कोई जगह ना पहले थी और न अब होगी। विद्रोह अगर गठबंधन के मुद्दे पर होता तो जनता का समर्थन भी होता। मगर यह विद्रोह तो महज चुनाव बाद गद्दी पर कब्जा करने का है। टिकट बंटवारे के मुद्दे पर हुए इस विद्रोह को यूपी की नकारने वाली है।


