शेष नारायण सिंह
ओस्लो। नार्वे की संसद के चुनाव के लिये मतदान में अभी दो हफ्ते से ज़्यादा समय बाकी है। अब तक के संकेतों से साफ़ है कि चुनाव में दोनों ही गठबंधनों के बीच काँटे का मुकाबला होगा, हालाँकि शुरुआती संकेत यही था कि प्रधानमंत्री येंस स्तूलतेंबर्ग की सरकार की विदाई होने वाली थी लेकिन अब कंज़रवेटिव पार्टी पिछड़ रही है क्योंकि उनकी अति पूँजीवादी राजनीति उनको जनकल्याण की योजनाओं से दूर भगा देती है।

नार्वे की राजनीति में जनकल्याण और इंसानियत स्थायी भाव के रूप में स्थापित है। जो उसके खिलाफ जाता है वह यहां के आम आदमी से दूर हो जाता है। यह भी सच है कि आठ साल से चली आ रही लेबर गठबंधन की सरकार से लोग परेशान हैं। कंज़रवेटिव पार्टी और उनके साथी प्रोग्रेस पार्टी वालों को शुरू में जनता का समर्थन इसी कारण से मिला था लेकिन अब वह रोज ही कम हो रहा है। यहाँ चुनाव पूरी तरह से लोकतांत्रिक तरीके से ही लड़ा जाता है। अपने देश के बाहुबली और माफिया टाइप नेता कहीं नहीं दीखते। इसलिये जनमत में बदलाव साफ़ नज़र आने लगता है।

नार्वे के संसद भवन और नेशनल थियेटर के बीच में जो जगह है वहाँ सभी राजनीतिक दलों ने चुनाव प्रचार के लिये बूथ बना रखा है। नौजवान कार्यकर्ता वहाँ चुनावी पर्चे बाँट रहे होते हैं। लेबर पार्टी वालों ने गुलाब के फूल में अपना पर्चा लगा रखा है और हर आते जाते को दे रहे है।अपनी बात कहते देखे जा रहे हैं। सोशलिस्ट-लेफ्ट पार्टी के बूथ के सामने जब मैं कार्यकर्ताओं से बात कर रहा था तो थोड़े सीनियर एक कार्यकर्ता ने समझाना शुरू कर दिया, उन्होंने अपना परिचय दिया तो पता लगा कि वे मौजूदा सरकार के विदेश मंत्रालय में अंतरराष्ट्रीय डेवेलपमेंट के मंत्री हैं।उनका नाम हायिकी होल्मोस है और वे साइकिल से चलते हैं। यह बात भारतीय रिपोर्टर को अजीब लग सकती है क्योंकि यहाँ तो मंत्री का चमचा अभी चमचमाती हुयी कीमती कार में चलता है।जब मुझसे बात शुरू की तो सिर पर हेलमेट थी लेकिन जब उनको बताया गया कि मैं भारतीय रिपोर्टर हूँ तो हेलमेट उतारकर मेरे साथ फोटो खिंचाया। सड़क पर खड़े मंत्री को अपनी पार्टी के चुनाव के पर्चे बाँटते मैंने कभी नहीं देखा था इसलिये उनसे प्रभावित हुआ और बातों बातों में उनका इंटरव्यू कर डाला।

सोशलिस्ट लेफ्ट पार्टी यानी एस वी की ओर से मौजूदा संसद में 11 सदस्य है। जब उनसे पूछा गया कि क्या इस बार वे 20 सीटें जीतने की उम्मीद कर रहे हैं तो उन्होंने कहा कि अभी तो 11 हैं, इस संख्या को बरकरार रखने की कोशिश की जायेगी लेकिन अगर बहुत अच्छा नतीजा आया तो भी 15 से ज़्यादा की उम्मीद बिलकुल नहीं है। सरकार के वरिष्ठ मंत्री के इस बयान के बाद अपने देश के मंत्री बहुत याद आये जो रिज़ल्ट आते वक़्त जब हार रहे होते हैं तो कहते पाये जाते हैं कि अभी शुरुआती रुझान है, अभी थोड़ी देर तक गिनती चलने दीजिए, सरकार तो उनकी पार्टी की ही बनेगी। हायिकी होल्मोस ने बताया कि उनकी सरकार दक्षिणपंथी पार्टियों की राजनीति का विरोध करती है। उनकी सरकार महिलाओं के स्वास्थ्य और उनके अधिकारों के लिये अपने देश में और दुनिया भर में लीडरशिप की भूमिका में रहना चाहती है। नौ सितम्बर के बाद भी लेबर पार्टी की अगुवाई वाले गठबंधन को बहुमत मिलेगा और यह काम सारी दुनिया में जारी रखेंगे। लेबर पार्टी के गठबंधन में सेंटर पार्टी भी है जो नार्वे के देहातों में रहने वाले किसानों और मछली पालन करने वालों की लोकप्रिय पार्टी के रूप में जानी जाती है, उस पार्टी ने भी नार्वेजी जीवन मूल्यों की रक्षा की बात की है जबकि विपक्षी पार्टियाँ, होयरे यानी कंज़रवेटिव और एफ आर पी पूँजीवादी अर्थव्यवस्था को मदद करने के लिये मानवता के आदर्शों की परवाह नहीं कर रहे हैं।

सोशलिस्ट लेफ्ट पार्टी के इस नेता ने कहा कि उनकी पार्टी गरीबी के खिलाफ है और पूरी दुनिया में गरीबी के कारण हो रहे मानवाधिकारों के हनन का विरोध किया जायेगा। उन्होंने कहा कि दुनिया में ऐसे भी देश हैं, जहाँ माता- पिता अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज पाते बल्कि कूड़ा बीनने के लिये भेज देते हैं और वे बच्चे अधजली सिगरेट बीनकर उसमें बची हुयी तम्बाकू को रिसाइकिल करके बेचते हैं जिससे उनको कुछ खाने को मिल सके। उनकी पार्टी इस अमानवीय काम का हर स्तर पर विरोध करेगी। और गरीबी के खिलाफ पूरी दुनिया में लड़ाई लड़ी जायेगी। गरीबी से ही मानवाधिकारों का हनन होता है। गरीबी बहुत बड़ी बेइंसाफी है। इस बेइंसाफी के लिये पूँजीवादी अर्थव्यवस्थाज़िम्मेदार है। उन्होंने कहा कि विश्व की अर्थव्यवस्था आज के पचास साल पहले जिस मुकाम पर थी आज उससे पाँच गुनी ज़्यादा सम्पन्न है और आबादी में दोगुनी वृद्धि हुयी है। इस तरह हम देखते हैं कि दुनिया की पूरी आबादी के लिये धन की कमी नहीं है। ज़रूरत इस बात की है

कि उस सम्पत्ति को ईमानदारी से लोगों तक पहुँचाया जाये। एक राष्ट्र के रूप में नार्वे का यह कर्तव्य है और विपक्ष उसको खत्म करने पर आमादा है। उन्होंने कहा कि नार्वे के लोग मानवाधिकारों की रक्षा का ज़िम्मा अपनी खुशी से अपने ऊपर लेते हैं कोई उन्हें मजबूर नहीं कर सकता। हमें कोशिश करनी चाहिए कि हम पूरी दुनिया में मुसीबतज़दा लोगों की मदद कर सकें। जबकि प्रोग्रेस पार्टी वाले विदेशी सहायता की राशि में सात अरब क्रोनर की कटौती करना चाहते हैं। इसका नार्वे के लोगों को विरोध करना चाहिए।

प्रोग्रेस पार्टी की माँग है कि अफ्रीका में जाने वाली सहायता में एक अरब क्रोनर की कटौती की जाए। अगर ऐसा हुआ तो वहाँ की एनजीओ को मिलने वाली रकम बंद हो जायेगी। अफ्रीका के ज्यादातर देशों में एनजीओ की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि उसी के ज़रिये आम आदमी की जायज़ माँगें सरकार तक पहुँचती हैं। प्रोग्रेस पार्टी वाले चाहते हैं कि संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या फंड को दिया जाने वाला 120 मिलियन क्रोनर भी न दिया जाये। इस धन का इस्तेमाल महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिये इस्तेमाल होता है। अगर यह बंद हो गया तो सीधे- सीधे अफ्रीका में महिलाओं के मानवाधिकारों को हमला माना जायेगा। जाहिर है कि नार्वे के लोग इस को पसन्द नहीं करेंगे और अन्त में प्रोग्रेस पार्टी और उनके गठ्बंधन की बड़ी पार्टी कंज़रवेटिव पार्टी को सत्ता से बाहर रखेगी।