अभिषेक श्रीवास्तव
वाराणसी। कहते हैं कि पूरा ब्रह्माण्‍ड काशी में है। इसीलिए काशी संपूर्ण है। उसे किसी की ज़रूरत नहीं है।
कल बनारस के रोहनियां विधानसभा क्षेत्र में माधोपुर गांव के पास एक सज्‍जन मिले। बरसों से कठपुतली का खेल दिखाकर शैक्षणिक प्रशिक्षण के काम में जुटे हुए हैं। सरकारी ट्रेनर हैं। मैंने पूछा, "...अउर, चुनाव क का हाल हौ?" तपाक से बोले, "हलवा त ऊहे हौ, पिक्‍चर बदलत रहेले।" और मुंह में लसराए हुए पान की लालिमा में मुस्‍कुरा दिए।
बनारस दरअसल यथास्थितिवादी शहर है। पिक्‍चर बदलती रहती है, हॉल वैसे का वैसा बना रहता है। कल काशीनाथ सिंह के घर पहुंचा तो कहने लगे कि बनारस का यही यथास्थितिवाद इस बार अपनी बेपरवाही में फासीवाद के लिए ज़मीन तो तैयार कर देगा, लेकिन अपने स्‍वभाव के कारण खुद फासीवाद से अछूता बना रहेगा। इसलिए मोदी से कम से कम बनारस को कोई खतरा नहीं है।
ये तो वाकई एक समस्‍या है। देश को मोदी से बचाया जाए या बनारस से?
बनारस का बेनियाबाग मैदान यानी सरकारी शब्‍दावली में राजनारायण पार्क। वही राजनारायण, जिन्‍होंने कभी इंदिरा गांधी को हराया था... जिनके बारे में कहते थे कि उन्‍हें चाय पीनी होती थी तो वे सीधे केतली को मुंह में घुसा लेते थे।
राजनारायण के बाद चालीस साल में देश का इतना विकास हो गया है कि बेनिया मैदान में आज केजरीवाल आए हैं, जो केतली से चाय पीने के बजाय सीधे चूल्‍हे में मुंह झोंक देने के आदी हैं।
मेरी पहली कामना: अरविंद को गंगा में नहाने से इनफेक्‍शन न हो जाए। दूसरी: वे सुरक्षित दिल्‍ली लौट जाएं। उन्‍हें समझना चाहिए कि बनारस में क्रांति नहीं होती।
और आज की रैली से पहले की आखिरी बात:
अरविंद केजरीवाल बनारस में मोदी को रोकने नहीं आए हैं। वे मोदी के खिलाफ किसी भी तरह के चुनावी प्रतिरोध को कुंद कर के मोदी को फायदा पहुंचाने आए हैं। वे मोदी का वोट नहीं काटेंगे, उन मोदी विरोधी मतदाताओं के वोट काटेंगे जिन्‍हें अब तक यह पता नहीं है कि किसे वोट करना है। इसलिए, केजरीवाल के सहारे मोदी को रोकने की सदिच्‍छा पाले लोग सावधान रहें...
ओवर टु बेनिया...
अभिषेक श्रीवास्तव, जनसरोकार से वास्ता रखने वाले खाँटी पत्रकार हैं। हस्तक्षेप के सहयोगी हैं।