औरंगजेब के बहाने

कट्टर हिन्दूवादी बड़े खुश हैं कि दिल्ली की एक सड़क का नाम औरंगजेब रोड से बदल कर एपीजे अब्दुल कलाम के नाम पर रख दिया गया है।

सबसे पहले मैं ‘‘कट्टर हिन्दूवादी’’ वाक्यांश उद्बोधन पर हिन्दू मित्रों से माफी चाहूँगा। किन्तु क्या करूँ मजबूरी है। हिन्दू धर्म का कट्टरता से कोई लेना देना नहीं था, किन्तु इस प्रवृत्ति का पोषण भाजपा द्वारा किया जा रहा है, जिसकी वजह से कुछ संख्या में हिन्दू लोग कट्टर होने लगे हैं। वे लोग भी वही भाषा बोलने लगे हैं, जो भाषा तालिबानी लोग बोलते हैं। ऐसे लोगों के सन्देश अब सोशल मीडिया पर खूब छाये रहते हैं।

भाजपाइयों के लिये ये बहुत ही गर्व की बात है, कि उन्हें अपने मकसद में सफलता मिल रही है।

औरंगजेब का नाम हटाकर कलाम साहब के नाम सड़क का नाम करना उसी उद्देश्य की एक कड़ी है।

कौन था औरंगजेब?

औरंगजेब हिन्दुस्तान के इतिहास का बहुत बड़ा महत्वपूर्ण शख्स है। औरंगजेब कोई घासी राम कोतवाल नहीं है वह वर्तमान के अफगानिस्तान पाकिस्तान और उत्तर भारत के एक बड़े भूभाग का 50 वर्ष से अधिक समय तक सम्राट रहा था। वह मुगल सल्तनत का एक प्रमुख सम्राट था।

निःसन्देह औरंगजेब को इतिहास एक आतताई सम्राट के रूप में जानता है। विशेषकर हिन्दू लोग उसे एक क्रूर सम्राट के रूप में जानते हैं, क्योंकि उसने हिन्दुओं पर जजिया कर लगवाया था, उसने बड़े-बड़े शहरों के हिन्दू मन्दिरों को तुड़वाया था। इसलिये इतिहास उसके प्रति उदार कभी नहीं रहा। उसके ऊपर एक आरोप बनता है कि उसने सभी धर्मों का सम्मान करने वाले उदारवादी दाराशिकोह का कत्ल करवाया था। इन तीन आरोपों के अलावा उस पर कोई आरोप नहीं रहे। मैं इन तीनों आरोपों पर विवेचना करना चाहूँगा।

दाराशिकोह के मरने से इतिहासकारों को क्यों तकलीफ हुई

अकबर की मृत्यु के बाद मुगलों में बादशाह की गद्दी हथियाने का षड्यंत्र सदैव चलता रहा। जहाँगीर और शाहजहाँ को भी अपने भाइयों के कत्ल करने पड़े। इसलिये दाराशिकोह को मरवाकर औरंगजेब दिल्ली की कुर्सी पर बैठे तो वह प्रथम आरोपी नहीं है, उसने वही किया जो उसके पूर्वजों ने किया। हाँ, अन्तर यहाँ सिर्फ इतना है कि दाराशिकोह के मरने से इतिहासकारों को तकलीफ हुई, क्योंकि दाराशिकोह के अक्स में उन्हें दूसरा अकबर दिखाई दे रहा था और यही नहीं दाराशिकोह अकबर की तरह अनपढ़ नहीं था, वह विद्वान था। उसने कई पुस्तकें लिखी थीं, इसलिये उन्हें दाराशिकोह में अपार संभावनायें नजर आती थीं।

किन्तु इतिहासकार यह क्यों भूल जाते हैं कि मुस्लिम धार्मिक गुरूओं ने किस प्रकार जलालत के साथ अकबर को सहा था, वे अब किसी कीमत पर दिल्ली की कुर्सी पर दूसरे अकबर को नहीं देखना चाहते थे। औरंगजेब तो उनके लिये शतरंज का एक मोहरा मात्र था। कठमुल्लाओं ने औरंगजेब पर दावं लगाया और वे सफल रहे।

मैं समझता हूँ हिन्दुस्तान के इतिहास का सबसे काला दिन दाराशिकोह को अपदस्थ होने वाला दिन था। औरंगजेब शासक बनने के बाद कठमुल्लाओं के हाथ की कठपुतली था, जिसकी वजह से उसे हिन्दुओं पर अत्याचार करने पड़े, हिन्दुओं पर धार्मिक कर लगाना पड़ा, हिन्दू मंदिरों को तोड़ने पर मजबूर होना पड़ा।

आज हमारी नजर में सिर्फ औरंगजेब ही दोषी है, हम उन हिन्दू राजाओं को बरी कर देते हैं, जिनके कुचक्रों के चलते दाराशिकोह अपदस्थ हुआ और औरंगजेब सत्तासीन हुआ।

राजा जय सिंह के नेतृत्व में उत्तर भारत के तमाम शहरों में मूर्तियां तोड़ी गईं

शायद बहुत कम लोगों को जानकारी होगी कि उत्तर भारत के तमाम शहरों के मंदिरों के मूर्ति भंजन का कार्य राजा जय सिंह के नेतृत्व में सम्पादित हुआ था। अफसोस कि हम राजा जय सिंह जैसों के प्रति तो उदारवादी हैं किन्तु औरंगजेब को सूली पर चढ़ाये रहते हैं।

यदि औरंगजेब के समय को इस मुगलिया इतिहास का काला अध्याय मानते हैं तो उसके लिये धर्म जिम्मेदार है व्यक्ति (औरंगजेब) नहीं। एपीजे अब्दुल कलाम राजनैतिक व्यक्ति नहीं थे उनकी शख्सियत को भाजपा ने भुनाया है। उनको तमाम जगह मोहरा बनाकर भाजपा ने अपने बदरंग चेहरे को धोने का काम किया है और अपने उद्देश्यों को पूरा करने के लिये उनको इस्तेमाल किया है। दिल्ली में एक सड़क का नाम औरंगजेब से हटाकर किसी और का नाम लिख देने से शायद हिन्दू प्रसन्न हुये हों, किन्तु यह नहीं भूलना चाहिये कि ऐसा करने पर प्रतिक्रिया स्वरूप खल पात्रों की स्वीकारोक्ति समाज के एक वर्ग विशेष में बढ़ती है। भाजपा सदैव इतिहास के साथ छेड़छाड़ कर अपने वोट बैंक को मजबूत करने का घिनौना कार्य करती है।

...और अब हार्दिक पटेल।

एक सप्ताह पहले तक मैंने इस शख्स हार्दिक पटेल का नाम नहीं सुना था, अब मैंने सुना है कि वह गुजरात का बहुत बड़ा नेता बन गया है। उसने अब दिल्ली की तरफ कूच कर दिया है।

वाह री राजनीति। पहले नेता जनता से खेला करते थे अब जनता नेताओं से खेलने लगी है। मोदी के लिये इससे ज्यादा कष्टकारी क्या हो सकता है। गुजरात का ऐसा समुदाय जो मोदी को गुजरात में ही नहीं पूरे विश्व में प्रचारित करता था उसकी भृकुटि पर बल पड़ गये हैं। मोदी आतंकित हैं विदेशों में उनके लिये अब तालियाँ कौन बजायेगा, मोदी-मोदी कौन चिल्लायेगा।

साहब सब कुछ मार्केटिंग का कमाल है। देश के नेता तो अब चाइनीज माल हो गये हैं जनता सस्ते में खरीद लेती है, जब उसे खराब लगने लगता है तो उसे फेंक कर दूसरा सस्ता सा खरीद लेती है। जनता के खुश होने के दिन हैं मार्केट में माल भरा पड़ा है बस किसी न्यूज चैनल के लिये टीवी के स्विच ऑन करने की देर भर है।

अनामदास