कदम दर कदम महाभारत - हम अपने ही सबसे काबिल बच्चों को राष्ट्रद्रोही बनाकर मुठभेड़ में मारने लगे हैं
कदम दर कदम महाभारत - हम अपने ही सबसे काबिल बच्चों को राष्ट्रद्रोही बनाकर मुठभेड़ में मारने लगे हैं
कदम दर कदम महाभारत - हम अपने ही सबसे काबिल बच्चों को राष्ट्रद्रोही बनाकर मुठभेड़ में मारने लगे हैं
पलाश विश्वास
हम अपने ही सबसे काबिल बच्चों को राष्ट्रद्रोही बनाकर मुठभेड़ में मारने लगे हैं।
कदम दर कदम महाभारत है। चप्पे चप्पे में चक्रव्यूह है। चीरहरण है। शंबूक वध है। सर्वव्यापी सर्वत्र नस्ली नरसंहार है। नोटबंदी कार्यक्रम इसी का सिलसिला है।
भारत ने जिस ब्राह्मण धर्म के हिंदुत्व को करीब ढाई हजार साल पहले खारिज कर दिया था तथागत गौतम बुद्ध के नेतृत्व में, उसका पुनरूत्थान हिंदुत्व के अवतार में जो हो गया है, उसकी सबसे बड़ी वजह यह अज्ञानता का अंधकार है।
मुक्त बाजार की चकाचौंध में हम मध्ययुगीन बर्बर असभ्यता के दस दिगंत अमावस्या को महसूस तक नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि तकनीकी क्रांति हर मुश्किल आसान है, हर हाथ में मोबाइल है, थ्रीजी फोर जी फाइव जी जिओ जिओ है और इसी की परिणति यह डिजिटल कैशलेस इंडिया है।
हमें अपने गांवों, जनपदों की कोई परवाह नहीं है। मेहनतकशों की बुनियादी जरुरतों और बुनियादी सेवाओं की परवाह नहीं है। शहरी झुग्गी झोपड़ियों के बंद चूल्हों की परवाह नहीं है। मारे जाते बहुजनों की परवाह नहीं है। खुदकशी चुन रहे किसानों की परवाह नहीं है और अब बेमौत मौत के कगार पर खुदरा बाजार के छोटे और मंझौले कारोबारियों की भी परवाह नहीं है।
जिस मनुस्मृति शासन के शिकंजे को अचारवीं उन्नीसवीं सदी के सुधार आंदोलनों और उससे भी पहले भक्ति, संत सूफी बाउल फकीर आंदोलनों, किसान आदिवासी जनविद्रोहों के जरिये तोड़ दिया गया था, आज वही मनुस्मृति अनुशासन मुक्तबाजार का लोकतंत्र है और भारत राष्ट्र और भारत के संविधान की रोज रोज हत्या हो रही है राष्ट्रवाद और देशभक्ति के नाम पर, विकास के नाम पर, कारोबार के नाम पर।
हिमालय भारत का प्राण है।
आरण्यक सभ्यता के उत्तराधिकारी मुक्तबाजार के उपभोक्ता नागरिकों को जल जंगल जमीन से कृषिजीवी मनुष्यों की अंतहीन बेदखली को लेकर कोई तकलीफ नहीं है।
राष्ट्र के सैन्यीकरण और जल जंगल जमीन के हकहकूक का सैनिक दमन के अनंत सलवा जुड़ुम से भी उन्हें कोई तकलीफ नहीं है।
खेत खलिहानों से लेकर पहाड़ों में बसे चाय बागानों में जारी मृत्यु जुलूसों की भी किसी को कोई परवाह नहीं है।
हिमालय क्षेत्र में और बाकी देश में जंगल की जो अवैध कटान पिछले दशकों की विकास यात्रा रही है, उसकी भी किसी को कोई खास परवाह नहीं थी।
खेती के साथ-साथ हरियाली का संकट जो देश को उसके हिमालय के सात मरुस्थल बना रहा है, किसानों की थोक आत्महत्या के महोत्सव में हमें इसकी कोई खबर नहीं है।
देश का चप्पा-चप्पा अब परमाणु भट्टी है और सारे के सारे समुद्रतट रेडियोएक्टिव है, हमें इसकी भी कोई खास परवाह नहीं है।
रोजगार सृजन तो हो ही नहीं रहा है।
मुक्तबाजार का धीमा जहर आहिस्ते-आहिस्ते रोजगार और आजीविका के साथ साथ नागरिकता और आजीविका को खत्म कर रहा है, इसका अहसास नहीं हो रहा है तो हम ऐसा कैसे मान सकते हैं कि अशिक्षित और अदक्ष लोगों को बिना किसी तकनीकी ज्ञान या सूचना के कृषि से रोजगार नैसर्गिक तरीके से मिल सकती है, क्योंकि हमने न सिर्फ कषि और कृषि जीवी बहुजनों के कत्लेआम को विकास का पैमाना मान लिया है, बल्कि कृषि आधारित संस्कृति और उत्पादन प्रणाली, परिवार और समाज, जनपदों का सफाया भी कर दिया है।
हम न कृषि संकट पर कायदे से संवाद कर सके हैं और न पर्यावरण संकट पर और हम सबने मुक्तबाजार के आगे निःशस्त्र आत्मसमर्पण कर दिया है।
हम मुक्तबाजार का प्रतिरोध नहीं कर सके तो इसकी खास वजह है कि नस्ली रंगभेदी राजनीति से हमें इस प्रतिरोध के नेतृत्व की उम्मीद रही है और यह नस्ली रंगभेदी राजनीति दरअसल रियासतों, जमींदारियों का आम प्रजाजनों पर एकाधिकार वर्चस्व है और मुकम्माल मनुस्मृति अनुशालन भी यही है।
इन तमाम लोगों को प्रकृति और कृषि से जुड़े समुदायों से नस्ली शत्रुता है। ये तमाम लोग मनुष्यता, सभ्यता और प्रकृति से नस्ली शत्रुता है।
आज भी हम अर्थव्यवस्था के अभूतपूर्व संकट के दौरान राजनीतिक पहल की उम्मीद कर रहे हैं, जिनके लिए कालाधन माफ हैं और हम तमाम लोग कतार में मौत का इंतजार कर रहे हैं।
क्योंकि हम अर्थव्यवस्था की बुनियाद कृषि को मानने से जैसे इंकार कर रहे हैं, वैसे ही उत्पादक समुदायों और मेहनतकशों के हक हकूक और उनके जीवन आजीविका के बारे में हमारी कोई चिंता नहीं है।
प्रकृति और पर्यावरण की जड़ों से पूरी तरह अलगाव की निराधार जमीन पर खड़े हम लोग दरअसल अपने पुरखों की तुलना में कहीं ज्यादा अज्ञानी हैं और आधुनिकता की पागल दौड़ में हम लगातार ब्लैकहोल की गिरफ्त में कैद होते जा रहे हैं, दसदिगंत अमावस्या में भी हमें सुनहले दिनों की रोशनी नजर आती है।


