दीना मांझी सच्चे मायनों में भारत रत्न है

मेहदी हसन ऐनी

उड़ीसा के इंतिहाई पिछड़े क्षेत्र कालाहांडी के निवासी दीना मांझी द्वारा अपनी बीवी की लाश को कांधे पर उठाकर 12 कि.मि.पैदल चलने की तस्वीर जब से वायरल हुयी है पूरा समाज आहत है.

आइए हम आपको ऐसे हजा़रों मांझियों से मिलवाते हैं,

जो इसी समाज में हर दिन इंसानियत की लाश अपने कांधों पर उठाते हैं.

और हमें उनका पता भी चलता है,पर हम क्या करते है, सिर्फ रियेक्ट? प्रोटेस्ट,रिक्वेसट, और टाइम वेस्ट बस.
गुड़गांव में तीन घंटे लाइन में लगकर प्यास से दम तोड़ने वाली नेहा हो,
या

बहराइच में रिश्वत ना देने पर इलाज ना होने की वजह से मरने वाला कृष्णा हो

या

फिर टीबी की मरीज़ आगरा की पूनम जिसे अस्पताल से भगा दिया गया था,और वो दो घंटे तक पैदल चलती रही, फिर गिर कर बेहोश हो गई,

या

फिर पिछले साल मध्य प्रदेश के उमरिया जिले की

"विशाली बैगा"

जिसके आत्महत्या करने बाद पोस्टमार्टम के लिए लाश ले जाने के लिए पैसे ना होने पर गाड़ी ना मिलने की वजह से दो आदिवासी उसे चारपाई पर रख कर पांच घंटे तक पैदल चले.

और इनसे भी दुखद आज की घटना है जिसमें बालासोर की सलामनी बारिक की सोरो इलाके में ट्रेन से कट कर मरने के बाद एम्बुलेंस ना होने की वजह से स्वास्थ्यकर्मी शव की कूल्हे की हड्डी तोड़ कर गठरी बना कर दो किलोमीटर तक पैदल लेकर गये.
यह और इन जैसी घटनाएं हमारे समाज के माथे पर कलंक हैं,
पर सवाल ये है कि ऐसी घटनाएं,

बार-बार होती हैं और कार्रवाई के नाम पर सिर्फ़.... तबादला, सस्पेंड या फिर कभी खत्म ना होने वाली जांच.

और फिर मीडिया के दबाव में आकर जांच से पहले ही कार्रवाई, और इन सब के साथ मीडिया का नमक मिर्च। कल से अभी तक बड़ी-बड़ी बहस, डिबेट्स और चीखना चिल्लाना, गला फाड़ना इसके अलावा मीडिया में कुछ भी नहीं हुआ।

दीना मांझी के बहाने मीडिया ने अपना खलनायक ढूंढ लिया है।

अब बात करते हैं सरकार की, प्रशासन की, सिस्टम की।

तो उसकी शुरुआत सफाई से होती है, फिर जांच पर पहुंचती है और फिर जांच से पहले कार्रवाई हो जाती है.
कालाहांडी की ज़िलाधिकारी ब्रुंडा देवराजन ने कहा कि करीब 2 बजे बिना बताये वह शव को लेकर चले गए. अगर मदद मांगी होती तो हम मदद करते.
डीएम ने यह भी कहा कि अस्पताल के स्टाफ ने उन्हें बताया कि दीना मांझी ने शराब पी रखी थी.
अब सवाल ज़िलाधिकारी से पूछा जा सकता है कि अस्तपाल के कैंपस से बिना किसी प्रमाण पत्र के कोई लाश लेकर कैसे निकल गया.

क्या कर्मचारियों ने भी शराब पी रखी थी?

रवीश कुमार ने कल सच ही कहा था कि आहत होने से, खुद को लानत भेजने से हम दीना मांझी के साथ न्याय नहीं कर पायेंगे। दरअसल, यह सिस्टम की संवेदनशीलता का पतन है. समाज की संवेदनशीलता का पतन नहीं है. समाज को लेकर छाती पीटने की ज़रूरत नहीं है. सवाल सिस्टम की क्षमता को लेकर होना चाहिए.

एक सवाल है. राष्ट्रीय मीडिया भले ही दिल्ली मुंबई से काम चला लेता है लेकिन स्थानीय अखबारों में ऐसी लापरवाहियों की तमाम खबरें होती हैं. क्या उनका सरकार और समाज पर कोई असर हो रहा है या इन सबके बिना ही राष्ट्रवाद हो रहा है, देशभक्ति इसी तरह से चल रही है, डिजिटल इंडिया का क्या यही उद्देश्य है.
और क्या मांझी या उस जैसे दूसरे ग़रीबों के इन घटनाओं से सरकार और समाज पर कोई असर हुआ?
हरगिज़ नहीं हुआ,कोई असर नहीं होता,

हर दिन ना जाने कितने मांझी यूँ ही दम तोड़ते हैं,

सरकारी अस्पतालों में चले जाइये, एक अजीब जल्लाद खाना जैसा लगता है।

डाक्टर बात करने को तैयार नही,जूनियर डांट डपट देते हैं,

नर्स और वार्ड ब्वाय की तो पूछिए ही मत।

इन सबके साथ हर दिन एक बड़ी सी पर्ची जिसमें हजारों की दवाइयां,डिस्चार्ज करते समय एक लम्बी लिस्ट, जिसमें पीने के पानी से लेकर पेशाब करने तक हर चीज़ की फीस लिखी होती है.
प्राईवेट अस्पतालों, नर्सिंग होम्स की तो बात ही मत करिए, यहाँ तो ऐसा लगता है कि उन्होंने मरीजों के खून चूसने का कान्ट्रेक्ट ले रखा है।

इसीलिए शायद एक कहावत मशहूर है कि सफेद, काली और खाकी वर्दी से खुदा बचाये.

अब ऐसे में मांझी करे तो क्या करे? मज़बूत जिगर का हो तो कांधे पर एक और बोझ उठाकर पैदल चलता है, व्यवस्था को आईना दिखाता है। वरना तो खुदकुशी को आखिरी समाधान समझ कर अपने प्राण त्याग देता है.

और ये हर विभाग में है, हर दिन सैंकड़ों मांझी सिस्टम से मार खाकर जिंदगी की रेस में पीछे रह जाते हैं।

इसकी वजह है असामनता, नेता और जनता के बीच, सिस्टम और सिस्टम वालों के बीच.

इसे खतम करने की ज़रूरत है.

जिस देश के प्रधान सेवक 10 लाख का सूट पहनते हैं लग्ज़री गाड़ी और बंगले में रहते हैं,

नेता हज़ारों करोड़ का घोटाला कर जाते हैं,

उस देश का एक मांझी जिसके पास एक लाश को पूर्ण रूप से सम्मान देने भर के भी कुछ पैसे नहीं होते...
यह एक ऐसी विडम्बना है जिसका समाधान ढूंढे बगैर देश कभी भी शिखर पर नही आ सकता ...
और इसका एक ही समाधान है व्यवस्था की क्षमता को मज़बूत करना और हर विभाग से काली भेड़ों को साफ़ करना,

स्वास्थ्य जैसे बहुत ही अहम विभाग को आधुनिक चीज़ों से लैस करना और हर नागरिक तक उसकी पहुंच को आसान करना। तब शायद देश मेन स्ट्रीम में आ सके।

साथ ही मीडिया को भी चाहिये कि व्यवस्था की कमजोरियों के उजागर करे,

ये बताये कि देश को इन इन चीज़ों की ज़रूरत है.

बस यही समाधान है देश के सिस्टम को सुधारने,

संभालने और उन्नति देने की.

रही बात दीना मांझी की तो वो इस देश का एक सच्चा और जुझारू एथलीट है, जिसने जिंदगी के मैदान दौड़ने और संघर्ष करने वालों को एक नया रास्ता दिखाया है। वह सच्चे मायनों में भारत रत्न है.