कला एक लंबी यात्रा और जीवन उसका एक छोटा सा हिस्‍सा है – ललित परिमू
हिंदी विश्‍वविद्यालय में अभिनेता ललित परिमू की चाय पे चर्चा
अभिनय योग के माध्‍यम से विद्यार्थियों को सिखा रहे हैं कला
वर्धा,20 अक्‍तूबर 2016: हैदर, हम तुम पे मरते है, हजार चौरासी की माँ, एजंट विनोद, घूंघट जैसी मशहूर हिंदी फिल्‍मों के साथ-साथ शक्तिमान में अपने अभिनय से बच्‍चों की दुनिया में ख्‍यातिनाम हुए जाने-माने अभिनेता ललित परिमू पिछले दो दिनों से (17 एवं 18) महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय में थे। उन्‍होंने अभिनय में रूचि रखने वाले विद्यार्थियों को अभिनय योग की संकल्‍पना को लेकर फिल्‍मों या धारावाहिकों में किस प्रकार अपनी कला के माध्‍यम से कैरियर बनाया जा सकता है इसके गुर सिखाए।
अपने दो दिनों के निवास में उन्‍होंने विद्यार्थियों के साथ चाय पे चर्चा की, पराड़कर मीडिया लैब में साक्षात्‍कार दिया तथा प्रदर्शनकारी कला विभाग एवं अनुवाद अध्‍ययन विभाग के विद्यार्थियों के साथ संवाद कर अपने अभिनय जीवन के अनुभव सांझा किये।
चाय पे चर्चा कार्यक्रम में कुलपति प्रो. गिरीश्‍वर मिश्र, प्रतिकुलपति प्रो. आनंद वर्धन शर्मा, कुलसचिव डॉ. राजेंद्र प्रसाद मिश्र, साहित्‍य विद्यापीठ के अधिष्‍ठाता प्रो. कृष्‍ण कुमार सिंह, जनसंचार विभाग के अध्‍यक्ष डॉ. कृपा शंकर चौबे, अनिल चौबे, जनसंपर्क अधिकारी बी. एस. मिरगे सहित जनसंचार, प्रदर्शनकारी कला, सामाजिक कार्य के विद्यार्थी उपस्थित थे।
नागार्जुन सराय के लॉन में मंगलवार को उन्‍होंने कहा कि कश्‍मीर से आयु की 18 वें वर्ष में मुंबई में एक सपना लेकर आया था और इसे सपने को साकार करने के लिए एक लंबा सफर तय करना पड़ा। वैसे अभिनय और कला एक लंबी यात्रा जैसी है। जितना आप चलते जाओगे उतने आप रचनाशील बनते जाओगे।
उन्होंने कहा अब तक मैंने हिंदी फिल्‍मों से जो सीखा है वह मेरी संघर्षशीलता का ही परिणाम रहा है। कला और जीवन को व्‍याख्‍यायित करते हुए एक लैटिन कहावत का उदाहरण देते हुए उन्‍होंने बताया कि कला एक लंबी यात्रा और जीवन उसका एक छोटा सा हिस्‍सा है। साधना, समर्पण से ही कला निखरती है और प्रगल्‍भ बनती जाती है।
उनका मानना था कि आप बॉलीवूड के सपने देखे परंतु जिस परिवेश में आप रह रहे है उसमें आप कला को प्रदर्शित करने के मौके ढूंढ सकते है। मायानगरी एक पड़ाव है परंतु स्‍थानीयता भी आपको अभिनय की उंचाईंयों तक पहुंचा सकती है।
उन्‍होंने मराठी फिल्‍म ‘सैराट’ का उदाहरण देते हुए कहा कि आज के सिनेमा में तथाकथित या प्रचलित अभिनेता के परे अभिनेता या अभिनेत्री का चुनाव किया जा रहा है और इसके सैराट जैसे ही अनेक प्रयोग सफल भी हो रहे हैं। विद्यार्थियों के लिए यह शुभ संकेत है, आपको चाहिए कि अपने घर या नगर से ही अभिनय का प्रारंभ करें।

उन्‍होंने कहा कि कलाकार को एक सिख्‍खड़ (सिखाने वाला) भी बनना चाहिए और अन्‍य को प्रेरित भी करना चाहिए।
उन्‍होंने अभिनय की दुनिया में सफल रहे कलाकारों के बारे में कहा कि अनेक कलाकार आज की दुनिया में फिल्‍मों में बादशाहत हासिल किये हुए हैं वे हादसे से कलाकार बने हैं। वे अभिनेता बनने के पहले अन्‍य व्‍यवसाय का कार्यों में व्‍यस्‍त थे।
नुक्‍कड़ नाटक को अभिनय की पहली सीढ़ी करार देते हुए कहा मैंने दिल्‍ली की मंडी हाउस से नुक्‍कड़ शुरू किया। नुक्‍कड़ आपको अभिनय की स्‍वतंत्रता देता है और आप अभिनेता बनने के सोपान पर चढ़ते जाते हैं।
उन्‍होंने विद्यार्थियों के द्वारा पूछे गये अनेक सवालों का उत्‍तर दिया और कहा कि लेखक, दिग्‍दर्शक और फिल्‍म या नाटक के जुड़े सभी विधाओं में कैरियर के अनेक मौके आपके इंतजार में है आप लगन, समर्पण और कर्मठ भाव से इसे अंजाम दे सकते हैं।

चाय पे चर्चा के बाद पराड़कर मीडिया लैब में अनिल चौबे द्वारा साक्षात्‍कार लिया गया।
उन्‍होंने प्रदर्शनकारी कला एवं अनुवाद अध्‍ययन विभाग के विद्यार्थियों के साथ वार्तालाप भी किया। इस दौरान सहायक प्रोफेसर डॉ. सतीश पावड़े, डॉ. अनवर अहमद सिद्दीकी, अश्विनी कुमार सिंह, डॉ. अविचल गौतम, सुरभि विप्‍लव, डॉ. गोपाल राम, प्रितेश पांडे उपस्थित थे।