पटना, 26 जून। ‘‘ कला व संस्कृति के देश भर में जितने संस्थान हैं, उन सबका भगवाकरण व सांप्रदायीकरण किया जा रहा है। पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट, चिल्ड्रन फिल्म सोसायटी, सेंटर बोर्ड फॉर फिल्म सर्टिफिकेशन में ऐसे - ऐसे लोगों केा सर्वोच्च पदों पर बिठाया गया है, जिनका कला-संस्कृति के क्षेत्र में कोई योगदान नहीं है। पुणे फिल्म इंस्टीटटृट का चेयरमैन तो गजेंद्र चौहान को बनाया गया, जिन पर पोर्न फिल्म में काम करने का आरोप है। नाटक के क्षेत्र में बदनाम संस्था राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय केा नाटक संबंधी सभी मामलों का नोडल एजेंसी बना देना भी इसी प्रवृत्ति का सूचक है।’’
ये बातें वक्ताओं ने रंगकर्मियों-कलाकारों के साझा मंच ‘हिंसा के विरूद्ध संस्कृतिकर्मी’ के बैनर तले आयोजित बातचीत में ‘कला व संस्कृति का समकालीन परिदृष्य’ पर बोलते हुए कहीं। प्रेमचंद रंगशाला में आयोजित इस बातचीत ‘विकास स्मृति आयोजन’ में शहर के रंगकर्मी, साहित्यकार, सामाजिक कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया। वक्ताओं ने विकास केा एक अच्छा आर्टिस्ट होने के साथ-साथ एक्टीविस्ट भी बताया।
मुख्य वक्ता के तौर पर बोलते हुए सामाजिक कार्यकर्ता अरविंद सिन्हा ने कहा ‘‘ कला व संस्कृति का संबंध विचारधारा से होता है। हमारे देश में समता की विचारधारा का इतना स्वाद भारतीय जनता ने चख लिया है कि उसे नव उदारवादी नीतियों को लागू करके एवं हिंदू राष्ट्र का एजेंडा बनाने की केाशिश करके भी समाप्त नहीं किया जा सकता।’’
साहित्यकार अरूण षाद्वल ने कहा ‘‘ आज देश में अघोषित आपातकाल की स्थिति बनी हुई है। कला व संस्कृति के पदों पर सांप्रदायिक विचारधारा के ऐसे समर्थकों केा बिठाया जा रहा है जिनका इस क्षेत्र में केाई उल्लेखनीय योगदान नहीं है।’’
सभा केा अनीष अंकुर, अशोक श्रीवास्तव, गोपाल शर्मा, साजीना आदि ने भी संबोधित किया। मौजूद लोगों में थे, सामाजिक कार्यकर्ता नंद किशोर सिंह, रंगकर्मी मनोज, मार्कडेय पाठक, गौतम, सुरेश कुमार हज्जू, विनीत राय, एजाज हुसैन, उत्तम रंजीत, बी.एन.विष्वकर्मा, सुधीर, वीरेंद्र कुमार आदि। सभा का संचालन का जयप्रकाश ने किया।
अंत में प्रख्यात पत्रकार व एक्टीविस्ट प्रफुल्ल बिदवई को श्रद्धांजलिस्वरूप एक मिनट का मौन रखा गया। ज्ञातव्य हो कि प्रफुल्ल बिदवई ने कुछ वर्षों पूर्व विकास स्मृति आयोजन में शामिल हो चुके हैं।
अनीश अंकुर