कश्मीर का जवाब बलूचिस्तान ?
कश्मीर का जवाब बलूचिस्तान ?
कश्मीर का जवाब बलूचिस्तान ?
अंबरीश कुमार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पंद्रह अगस्त के संबोधन में बलूचिस्तान की आजादी का जिक्र कर एक नयी बहस को जन्म दे दिया है।
कश्मीर घाटी में हिंसा और तनाव जारी है जिसे देखते हुये ही संभवतः यह रणनीति अपनाई गई है।
इसके पीछे सोच यह है कि हम पाकिस्तान के अंदरूनी विवाद को उठा कर कश्मीर के मुद्दे पर उसपर दबाव बना सकेंगे।
यह अपनी परम्परागत विदेश नीति में भी बड़ा बदलाव है।
इसके दूरगामी नतीजे निकल सकते हैं। मोदी सत्ता में आने के बाद से ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी एक नयी छवि गढ़ रहे हैं। ऐसे में यह मुद्दा उनकी अंतरराष्ट्रीय छवि को प्रभावित कर सकता है।
दरअसल समूचे विश्व में शांति और बातचीत के जरिये किसी समस्या का समाधान हो यह लोग चाहते हैं। युद्ध और टकराव का रास्ता कभी भी उचित नहीं माना जाता है। फिलहाल बलूचिस्तान की आजादी की लड़ाई का समर्थन ईंट का जवाब से देने जैसा लगता है।
हो सकता है कि यह एक तबके को सही भी लगे, पर इससे किसी समस्या खासकर कश्मीर समस्या का समाधान निकल पायेगा, यह नहीं लगता। टकराव जरुर बढ़ेगा और भारत पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आतंकवाद को समर्थन देने का नया आरोप भी चस्पा हो सकता है। शुरुआत हो गई है।
पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नफीस जकारिया ने इस पर टिप्पणी करते हुये कहा है
'यह संयुक्त राष्ट्र चार्टर का उल्लंघन है। उन्होंने बलूचिस्तान के बारे में बात कर लक्ष्मण रेखा पार कर दी है। भारत बलूचिस्तान और कराची में विध्वंसक गतिविधियों में शामिल है। भारत कश्मीर में कथित मानवाधिकार उल्लंघन को ढंकने के लिये बलूचिस्तान का जिक्र कर रहा है।'
इस टिपप्णी के साथ पकिस्तान ने यह भी कहा है कि सयुंक्त राष्ट्र महासभा में कश्मीर का मुद्दा वे और ताकत से उठायेंगे।
बलूचिस्तान का मुद्दा उठाये जाने के बाद पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत पर आतंकवाद को बढ़ावा देने का आरोप पूरी ताकत से उठायेगा, ताकि उसपर इस बाबत जो आरोप लगता रहा है उसकी धार भोथरी हो जाये।
पकिस्तान कश्मीर में आतंकवाद को खुला समर्थन देकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बदनाम हो चुका है और अब खुद भी उसकी कीमत चुका रहा है।
पकिस्तान में आतंकवादी घटनायें बढ़ती जा रही हैं और आर्थिक हालात अब खराब हो चुके हैं।
ऐसे में वह खुद टूटने की राह पर है। आजाद कश्मीर हो या बलूचिस्तान सभी जगह पकिस्तान के खिलाफ माहौल बन रहा है। ऐसे में भारत को दखल देने की बजाये अंतरराष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान की भूमिका को पुरजोर ढंग से उठाना ज्यादा बेहतर होता। पर अब कहीं उल्टा न हो जाये।
जो काम भारत को अंतरराष्ट्रीय मंच पर करना चाहिये वह भूमिका पकिस्तान ले सकता है।
वैसे भी बलूचिस्तान की आजादी का समर्थन करने या न करने से कश्मीर घाटी की समस्या का कोई समाधान नहीं निकलने वाला।
कश्मीर समस्या का हल वहां के नौजवानों को मुख्यधारा में जोड़कर ही निकलेगा।
अब कश्मीर में पाकिस्तान की ज्यादा बड़ी भूमिका रह भी नहीं गयी है। घाटी में नब्बे के दशक के बाद की पीढ़ी का बड़ा हिस्सा अलगाववाद के रास्ते पर है। इसके लिये सर्वदलीय पहल कर कश्मीर के लोगों के विकास के लिये एक नया कार्यक्रम बनाना होगा। वहां के नौजवानों को भरोसे में लेना होगा तभी बात बन पायेगी।
यह बहुत संवेदनशील मुद्दा है यह समझना चाहिये।
जिस तरह हिंदुत्व और गो रक्षा के नाम पर अराजकता हुयी और खुद प्रधानमंत्री को अपील करनी पड़ी वह स्थिति कश्मीर के मुद्दे पर भी पैदा हो सकती है। पूर्वांचल में हिंदुत्व की नर्सरी चलाने वाले योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि आजाद कश्मीर भारत का हिस्सा है और वे उसे आजाद करायेंगे।
कैसे यह आजाद होगा यह रास्ता नहीं बताया।
पर इस सबसे एक तबके के खिलाफ कहीं फिर जहर न फैलाया जाये यह आशंका बढ़ रही है।
बिहार चुनाव में पाकिस्तान का मुद्दा उठा था तो उत्तर प्रदेश के चुनाव में बलूचिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले आजाद कश्मीर का मुद्दा उठ जाये, तो हैरानी नहीं होनी चाहिये।
पर इस सबसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वैश्विक छवि पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है यह भी ध्यान रखना चाहिये।
विदेश नीति के ऐसे संवेदनशील मुद्दे को सड़क पर लाने से माहौल और खराब होगा।
वैसे भी अपना देश विभिन्न राष्ट्रीयताओं का देश है, जिसके कई हिस्से अपनी आजादी की मांग कर चुके है। पूरब से पश्चिम तक।
खालिस्तान का मुद्दा उदाहरण हैं जिसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी थी।
और दूसरे देश की बात करें तो श्रीलंका का तमिल ईलम हो या खालिस्तान का नारा। इसमें फंस कर हम हाथ जला चुके हैं। बहुत से लोगों की जान गई तो इंदिरा गांधी से लेकर राजीव गांधी शहीद हो गये।
इसलिये इस मुद्दे पर फूंक फूंक कर कदम रखने की जरुरत है।
(शुक्रवार)


