काश्मीर पर !

ठीक नोटबन्दी की तरह, अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक निर्णय है। देश के संघीय स्वरुप पर चोट भी है।

ठीक नोटबन्दी की तरह, तानाशाही सनक का नतीजा है यह निर्णय।

ठीक नोटबन्दी की तरह, भक्त और मीडिया पगलाये हुए हैं कि यह देशहित में लिया निर्णय है।

ठीक नोटबन्दी की तरह, विपक्ष कंगुआया हुआ है और उसे लगता है कि विरोध का विरोध देशद्रोही न कह दे जैसे नोटबन्दी में विरोध के विरोध ने भ्रष्टाचार और कालाधन समर्थक कहा था।

ठीक नोटबन्दी की तरह, नतीजे आते आते वे सब बगलें झांकेंगे जो आज विज्ञापनों, होर्डिंगों और अपनी डीपी पर मोदी की तस्वीर के साथ फोटो चेंप रहे हैं।

ठीक नोटबन्दी की तरह, दीर्घकालिक पीड़ा देगा देश को यह निर्णय।

मुझे लगता है !

जिन समझौतों और सामंजस्यों से बहुधर्मी बहुसांस्कृतिक भारतीय समाज ने धर्मनिरपेक्ष भारत गणराज्य का संघीय स्वरुप अंगीकृत किया था उन सब पर अंधराष्ट्रवाद की चोटों का सिलसिला शुरू हो चुका है।

भारत के किसी भी इलाके की समूची जनता और राजनैतिक कार्यकर्ताओं को बंधक बनाकर कोई भी फैसला थोपे जाने की शुरुआत हो चुकी है। यह सिलसिला 'मेरिट' की दलीलों से सजघज कर 'आरक्षण' के खात्मे की ओर भी जा सकता है। हिंदुत्व की राजनीति मध्यवर्गीय सवर्ण मानसिकता की तुष्टि के लिए ऐसे 'मास्टर स्ट्रोक' का इंतजार कर रही है।

काश्मीर के प्रयोग से

भारत के वे सब हिस्से 'अंडर थ्रेट' हैं जो गैर हिन्दू बहुल हैं , चाहे गोवा हो या पूर्वोत्तर के प्रान्त। हिंदुत्व की बात आगे भी जाती है क्योंकि नारा है - हिन्दू हिंदी हिंदुस्तान।

धर्म के बाद भाषा एक ऐसा विषय है जिसपर मिथ्या राष्ट्र्वादी बहुमत की खुशियों के लिए कुछ ऐसे ही फैसले लेंगे। और भाषा के बाद खानपान की चीजें भी लिस्ट में हैं।

बीफ ईटिंग का इश्यू मैदानों की सघन आबादी की आस्था से जुड़ा है। बची हुई आबादी में संस्कृति नाम की चीज कुछ और विभाजनों की वाइस होगी। पहनावा ओढवा , प्रेम विवाह, जाति गोत्र आदि पर हिन्दू राष्ट्र्वादी अपनी प्रतिक्रियाएं देते रहे हैं। पूजा पद्धति भी विभाजन का विषय है।

मंदिर और मूर्तियों के लिए आग्रही यह राष्ट्रवाद आर्यसमाज आदि का अस्तित्व कैसे स्वीकार कर सकता है जो मूर्तिपूजा के विरोध और उपहास की लंबी परंपरा रखता है।

और सबसे बड़ा राष्ट्र्वादी विचार होगा आरक्षण को समाप्त कर सभी हिंदुओं को 'एक जैसा' ट्रीट करना। विभाजन की इस अंतहीन प्रक्रिया में खुद को आप जिस छोर पर देखते हैं, वहां खड़े होकर कश्मीर पर पैशाचिक अट्टहास कीजिये।

मधुवन दत्त चतुर्वेदी

(मधुवन दत्त चतुर्वेदी की एफबी टिप्पणियों का समुच्चय)