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कश्मीर -मोदी की मुश्किल है वे भाषण देना तो जानते हैं लेकिन कूटनीति नहीं
कश्मीर में बौरा गए हैं नेता
जगदीश्वर चतुर्वेदी
कश्मीर में अशांति थमने का नाम नहीं ले रही, वहीं दूसरी ओर स्थानीय नेताओं के दिमागों में खुराफातें थमने का नाम नहीं ले रही हैं।

तनावपूर्ण माहौल की यही खूबी है कि वह नेताओं के दिमागी को असंतुलित कर देता है।
कश्मीर इस समय संकट की अवस्था में है, ऐसे में असंतुलित बयानबाजी माहौल बिगाड़ सकती है।
कश्मीर में स्थिति सामान्य हो, दैनंदिन जीवन ढर्रे पर लौटे, यही पहली जरूरत है। लेकिन स्थानीय नेताओं के मन में चल रही उथल-पुथल लगता है शांति में मदद कम देगी।

इसकी तुलना में कश्मीर की आम जनता एकदम शांत है और उसने आतंकियों से अपने को अलग ही रखा है। जो लोग हंगामा करते दिख रहे हैं, ये वे लोग हैं जो विभिन्न पृथकतावादी संगठनों के सदस्य हैं।
इनको देखकर अनेक लोग यह मानकर चल रहे हैं कि कश्मीर की जनता पृथकतावादियों के साथ है, जो कि गलत है।

हमें राजनीतिक दलों के सदस्यों और जनता के बीच में अंतर करना चाहिए।
जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती जब हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मिलीं तो उन्होंने तीन सूत्री मांगें उनके सामने रखीं।
देखना है प्रधानमंत्री इन तीनों मांगों पर किस तरह अमल करते हैं।
पीएम के स्वभाव को जो लोग जानते हैं उनका मानना है पीएम जिद्दी किस्म के राजनेता हैं उनके मन में कोई भी सुझाव जल्दी प्रवेश नहीं करता। वे बहुत ही संकीर्ण दायरे में रखकर चीजों को देखने के आदी हैं। बड़े फलक में रखकर देखने से बचते हैं, राजनीतिक जोखिम उठाने से डरते हैं।
पीएम के सामने महबूबा ने जो तीन मांगें रखी हैं वे जोखिम उठाने को बाध्य करती हैं, लेकिन मोदीजी कोई जोखिम नहीं उठाना चाहते।

महबूबा का मानना है हमें चीजों को वहां से पकड़ना होगा,

जहां पर 2005 में तत्कालीन पीएम छोड़ गए थे।
उन्होंने कश्मीर के मौजूदा हालत के बारे में विस्तार से अपनी भावनाओं से पीएम मोदी को अवगत कराया।
उन्होंने कहा पीएम पहल करके
1.पृथकतावादियों से बातचीत शुरू करें,
2.पाकिस्तान से बातचीत शुरू करें और
3.पीडीपी-भाजपा के संयुक्त चुनाव घोषणापत्र को लागू करें।
महबूबा ने रेखांकित किया मोदीजी पहल करके इस दिशा में ईमानदारी से प्रयत्न शुरू करें।
पीएम नरेन्द्र मोदी की मुश्किल यह है कि वे भाषण देना तो जानते हैं लेकिन कूटनीति नहीं जानते। वे भाषणबाज की भाषा तो जानते हैं लेकिन जनता का दिल जीतने,समाधान पेश करने की भाषा,संतुलन की भाषा नहीं जानते। वे जब भी कूटनीतिक क्षेत्र में दाखिल होते हैं, तुरंत ही समस्याओं में फंस जाते हैं। यही वजह है वे कूटनीतिक पहल करने से कन्नी काट रहे हैं।

कश्मीर की समस्या भाषण से हल होने वाली नहीं है और यहीं पर मोदीजी अपने को कमजोर महसूस कर रहे हैं।
अब सारी दुनिया जान गयी है कि मोदीजी जश्न मनाने में अव्वल हैं, लेकिन कूटनीतिक भाषा बोलने और कूटनीति के जटिल पहलुओं को देखने में असमर्थ हैं।
यही वजह है मोदी सरकार की कश्मीर मसले पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कोई पहल नजर नहीं आ रही। इसके विपरीत पाकिस्तान बेहद सक्रिय है।
मोदीजी कश्मीर के मौजूदा हालत को पैदा करने में पाक और पृथकतावादियों की भूमिका के बारे में विश्व जनमत को समझाने में असफल रहे हैं।

उनकी रूचि बलूचिस्तान में है, जो कि फिलहाल मसला नहीं है।
बलूचिस्तान से भारत का कोई संबंध नहीं है, लेकिन मोदीजी जबर्दस्ती भारत को बलूचिस्तान से जोड़ रहे हैं।
वहीं पाकिस्तान ने कश्मीर समस्या पर सारी दुनिया में जमकर प्रचार आरंभ कर दिया है।
अफसोस की बात है डिजिटल क्रांति का भी मोदी सरकार प्रभावशाली ढंग से इस्तेमाल करने में असमर्थ रही है। यहां पर मोदी और संघ की सारी कोशिशें पाक केन्द्रित होकर रह गयी है।
कायदे से पृथकतावादियों पर डिजिटल मंचों के जरिए प्रभावशाली ढंग से प्रचार अभियान चलाया जाना चाहिए।

आज जरूरत पाक को निशाने पर लाने की नहीं है, पृथकतावादियों को निशाने पर लाने की है।
मोदी-संघ के लिए पाक केन्द्रित प्रचार महत्वपूर्ण है, जबकि पाक तो पर्दे के पीछे है, उसे गौण मानकर चलना चाहिए। असल शत्रु हैं पृथकतावादी संगठन, उनके प्रचार अभियान के खिलाफ मोदी सरकार का अभी तक कोई प्रभावशाली प्रचार अभियान सामने नहीं आया है। यहां तक कि मोदी-राजनाथ सिंह के बयानों में भी उनकी गंभीर आलोचना नहीं दिखती।
पृथकतावादियों को निशाना बनाए बगैर उनके कश्मीर आख्यान को नष्ट करना संभव नहीं है।
यही हाल मोदीपंथी मीडिया का है, वह कश्मीर की मौजूदा स्थिति के लिए पृथकतावादियों पर कवरेज कम दे रहा है। पाक पर ज्यादा कवरेज दे रहा है। पाक के खिलाफ दिया गया कवरेज अंततः नकारात्मक इमेज बनाता है। नकारात्मक इमेजों से विदेश नीति सही दिशा में नहीं ले जाती।
अदालत और चुनाव में नकारात्मक इमेज मदद कर सकती है, कूटनीति में नकारात्मक इमेज आत्मघाती होती है। मोदीजी की विदेशनीति का यह कमजोर पक्ष है।

Kashmir, Modi's difficulty : he know to speech, but not diplomacy

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