कश्मीर-स्वर्ग को नरक बना दिया
कश्मीर-स्वर्ग को नरक बना दिया
सत्तारूढ़ भाजपाई कश्मीरियों से मोहब्बत ही नहीं कर सकते हैं। यह उनके वैचारिक चिंतन का दुष्परिणाम है
रणधीर सिंह सुमन
जम्मू एंड कश्मीर में भाजपा और पीडीपी सरकार द्वारा बुरहान वानी के सशस्त्र बालों द्वारा मारे जाने के बाद स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए बल प्रयोग किया जा रहा है। इसमें अब तक 23 लोग मारे जाने की ख़बर हैं। 400 से ज्यादा लोग घायल हैं। दस जिलों में कर्फ्यू लगा हुआ है। पूरे राज्य में इन्टरनेट मोबाइल सेवाएं बंद कर दी गयी हैं। केंद्र सरकार ने शांति कायम करने के लिए सीआरपीऍफ़ की 20 कम्पनियाँ और भेजी हैं। दक्षिण कश्मीर के त्राल शहर में शनिवार को वानी की अंत्येष्टि में 20,000 से अधिक लोगों ने हिस्सा लिया।
सरकार ने वादा किया कि सुरक्षा बलों की ओर से अनुचित ढंग से बल प्रयोग किया गया है, तो उसकी जांच होगी।
बुरहान वानी के एनकाउंटर के सम्बन्ध में सामाजिक कार्यकर्ता कविता कृष्णन ने कहा कि कथित एनकाउंटर पर शर्म आनी चाहिए।
कविता ने कहा कि मैं कह रहूी हूं कि जो मरा है उस पर बाद में चर्चा होगी, लेकिन कोई मरे उस पर जांच जरूर होनी चाहिए। उन्होंने कहा बाबा साहेब ने कहा था कि अगर सशस्त्र बल का प्रयोग किसी की हत्या के लिए किया जाए उस पर FIR दर्ज होनी चाहिए और जांच होना चाहिए। ताकि यह पता चलाया जा सके कि वाकई इस तरह का एनकाउंटर आत्मरक्षा के लिए उठाया गया कदम था।
अगर फिरदौस बर्रूए-ज़मींअस्त, हमी अस्त, हमी अस्त, हमी अस्त।
अगर पृथ्वी पर कहीं स्वर्ग है तो यहीं है, यहीं है, यहीं है। फिरदौसी के इस कथन के अनुसार यूँ तो कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी और लाल किले तक को यह उपमा दी गई है। लेकिन वस्तुस्थिति यह है कि उस जमीन को अब स्वर्ग से नरक में तब्दील कर दिया गया है।
सरकार चाहे जो तर्क दे या पकिस्तान विवाद की बात करे। पकिस्तान से मिलने वाली सीमाओं पर हमेशा शांति बनी रहती है, सिर्फ जम्मू एंड कश्मीर की सीमा पर हमेशा अशांति का महाल बना रहता है।
मकबूल बट की फांसी के बाद से हमेशा नए-नए आइकॉन पैदा होते हैं। बुरहान वानी 15 साल की उम्र से हिंसा के रास्ते पर चल निकला और हम घाटी में अर्ध सैनिक बल को बढ़ाते चले जा रहे हैं। राजनीतिक समाधान का प्रयास नहीं किया जा रहा है।
जब प्रदेश में भाजपा और पीडीपी की निर्वाचित सरकार है। उसके जनप्रतिनिधि जनता को समझाने में सफल क्यों नहीं हो रहे हैं?
वहीँ, मुख्य सवाल यह भी है कि अर्ध सैनिक बलों का काम सीमा पर है। नागरिक क्षेत्रों में सेना सिविल पुलिस का काम क्यों कर रही है?
हिंसा पर चल रहे नौजवान को आप बल से ही रास्ते पर नहीं ला सकते हैं। नौजवानों को नयी जिंदगी देने की दिशा में कोई बात सरकारी स्तर पर नहीं हो पा रही है। जनता और सरकार के बीच संवादहीनता की स्थिति है। ताकत से जनता को नहीं जीता जा सकता है और सत्तारूढ़ भाजपाई कश्मीरियों से मोहब्बत ही नहीं कर सकते हैं। यह उनके वैचारिक चिंतन का दुष्परिणाम है। सरकार को चाहिए कि बलों की ज्यादतियों की जांच कराकर दण्डित करें तथा नौजवानों को प्यार से उनके समस्याओं का समाधान ढूँढे। बल प्रयोग से स्थिति बिगड़ती जाएगी। दोनों तरफ की हिंसा में स्वर्ग को नरक बना दिया है.


