नई दिल्ली, 17 फरवरी। वरिष्ठ पत्रकार, इतिहासकार और मंगल पांडे सेना (Mangal Pandey Army) के प्रमुख अमरेश मिश्र ( Amaresh Mishra) ने पुलवामा अटैक पर सवालिया निशान (Question marks on the Pulwama attack) उठाते हुए पूछा है कि कश्मीर में सारी बुरी घटनाएं राज्यपाल शासन (Governor's rule) के दौरान ही क्यूं होती हैं? उन्होंने संदेह जताया है कि कहीं ये मिलीभगत तो नहीं है?

Is not it collusion anywhere? What are the worst events happening during the President's rule (
Governor's rule) in Kashmir?

श्री मिश्र ने अपनी एफबी टाइमलाइन पर लिखा,

“हम कांग्रेस-भाजपा-मानवाधिकार भूलने को तैय्यार हैं! बशर्ते निर्णायक युद्ध हो! जुमलेबाज़ी नहीं!

42 जवान शहीद! हम जानते हैं किसने किया। पर हमने होने दिया! सत्ताधारियों और गंदी राजनीति करने वालों को माफ नहीं किया जा सकता। क्या मुंह रह गया हमारा जवानों की विधवाओं के आगे?”

उन्होंने लिखा,

“पांच साल पहले, एक सरकार आयी थी जिसने वादा किया था कश्मीर में हालात बदलेंगे। इतिहास गवाह है जिस पार्टी की सरकार है, उसने किन तत्वों से कश्मीर में हाथ मिलाया।

चलो अगर कुछ अच्छा निकलता, तो मानते ठीक है-राष्ट्र-हित में सबसे हाथ मिलाना पड़ता है। पर उसका परिणाम बुरा निकला। कश्मीर में पढ़े-लिखे लोग हथियार क्यूं उठा रहे हैं? 2014 के पहले, कुछ अपवाद छोड़, बेरोजगार इत्यादि आतंकवाद के कायराना जाल मे फँसते थे। पर अब?”

वरिष्ठ पत्रकार ने कहा,

“या तो कश्मीर समस्या का हल निकालो-या सैन्य-समाधान का व्यावहारिक, कूटनीतिक रोड-मेप पेश करो।“

उन्होंने लिखा,

“8 अप्रैल 2019 को मंगल पांडेजी का 163वां शहादत दिवस है। इस देश को 1857 की बहुत ज़रूरत है। 1857 में हिंदी प्रदेश, पश्चिम, पूर्वी, दक्षिण भारत और कश्मीरी साथ मिल कर लड़े थे।

हम इतिहास के विघटनकारी पहलुओं को लेते हैं-जोड़ने वाली चीज़ों को नहीं।

आज सत्ता पक्ष से जुड़े सारे अखबार, Times of India, Hindustan Times एक ही बात कह रहे हैं, कि Intelligence failure था। RDX से भरी सिविलियन गाड़ी मिलिट्री एरेआ मे घुसी कैसी? पिछ्ले साल अज़्हर मसूद का भतीजा, कश्मीर मे आर्मी के हाथ मारा गया था। तब से ये कवायद लगाई जा रही है की जैश कोई बड़ा हमला कर सकता है।

पर अभी तक जैश ने आधिकारिक ज़िम्मेदारी नहीं ली है। सुसाइड बाम्बर के टेप से जैश का नाम आया है। कहीं ये मिलीभगत तो नहीं?

कुछ भी हो-पिछ्ले कई सालों से भारत मे ISI के लिये काम करने वालों की गिरफ्तारियां हुई हैं। इनमें कई हिंदू भी हैं।

इस समय कश्मीर में राष्ट्रपति शासन है। सारी बुरी घटनाएं-कश्मीरी पंडितों के पलायन सहित- कश्मीर में राष्ट्रपति शासन के दौरान ही क्यूं होती हैं?

कश्मीर समस्या का हल पेचीदा है। पर अभी सवाल जवानों की हत्या का जवाब देना है।

अगर जवाब नहीं दिया गया, तो समझ लो, ये कुछ राजनैतिक और चुनावी फायदे के लिये की गयी खून की होली थी, जो चंद सत्तानशीन लोगों ने अपने देशवासियों के साथ खेली।“

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