काँग्रेस की मनमोहिनी सरकार जो नहीं कर सकी उसके लिये बाजार में नये कसाई की तलाश में "नमोपा" कॉरपोरेट आविष्कार है
काँग्रेस की मनमोहिनी सरकार जो नहीं कर सकी उसके लिये बाजार में नये कसाई की तलाश में "नमोपा" कॉरपोरेट आविष्कार है
भाजपा-कांग्रस का साजha चूल्हा है विजन 2025
बाजार विरोधी कबीर वाणी इसीलीये बाजार अर्थव्यवस्था के विरुद्ध राम बाण है
पलाश विश्वास
कवि अशोक कुमारी पांडेय का आभार। कबीर दास को याद दिलाने के लिए। यह याद बड़ी प्रसंगिक है। तो साथ ही हो जाए कुछ संवाद इसी पर।
साधो, देखो जग बौराना।
सांची कही तो मारन धावै, झूं झूं ए जग पत्याना।
हिंदू कहते,राम हमार, मुसलमान रहमान।
आपस में दौई लड़ाई मरत हैं, मरम कोई नहीं जानना।
बहुत मिले मोही नेमी, धर्मी, प्रतात करे असनाना।
आतम-छाँड़ि पछाना पूजै, तिनका थोथा ज्ञाना।
आसन मारि डिन्भ धरी बै, मन में बहुत गुमाना।
पीपर-पाथर पूजन लागे, तीरथ-बरत भुलाना।
माला पहिरे, तोपी पहिरे चाप-तिलक अनुमाना।
साखी सब्दै गावत भूले, आतम खबर न जानना।
घर-घर मंत्री जो देन फिरत हैं, मायके के अभिमानना।
गुरुवावा सहित सिष्या सब बूढ़े, अन्तकाल पछिताना।
बहुतक देखे पीर-ओलिया, पड़ै किताब-कुरआना।
करै मुरिद, कबीर बतलावै, उन्हूं खुदा न जानना।
हिंदू की दया, मेहर तुर्कन की, दोनों घर से भागी।
वह करै जिबाह, वो झटक मारें, आग दोई घर लागी।
या विधि हैंसत चलत है, हमको आप कहावै स्याना।
कहि कबीर सुनो भाई साधो, इनमें कौन दिवाना।
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कबीर
बचपन के बिन पूर्वाग्रह के दिनकों के कोरे स्लेटी स्मृति पत्र पर सबसे उजलें आंखर कबीरवाणी है। विच्छादाधाराओं के अनुप्रवेश से काफी पहले हिंदी पट्टी में कबीर से मुलाकात हो जाती है कच्छी पक्की पा शालाओं में। लेकिन वह स्वर्णिम स्मृति धूमिल होते देर भी नहीं लगती और बीच बाजार घर फूंकने को तैयार कबीर से ज़िंदगी भर हमें आंखें चुराते रहते हैं।
यह जो कबीर की खड़खड़ी बाज़ार है, मुक्क्त बाज़ार के धर्मों में महाविनाश में अमता शक्ति से निपटने का अचूक रामवान है जो हमारे तूं में बिन इस्तेमाल जंग खाने लगा है।
हिंदी से अंग्रेज़ी माध्यम में


