लोकसभा चुनाव 2019 परिणाम का एक विश्लेषण : क्या कांग्रेस ने यूपी में चुनाव लड़कर गलत किया? Did Congress do wrong by contesting elections in UP?

गुजरात के चुनाव में अच्छी लड़ाई लड़ने के बाद कांग्रेस में जान सी पड़ गई थी और उत्साह भी था। तीन राज्यों राजस्थान, मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ में पहले से ही क्रमशः सचिन पायलट, ज्योतिरादित्य सिंधिया व छत्तीसगढ़ में पी एल पुनिया विधानसभा चुनावों की तैयारी में काफी समय पहले से जुटे थे और व्यवस्थित तरीके से तैयारी कर रहे थे। जिसका प्रतिफल भी मिला और तीनों राज्यों में कांग्रेस की सरकारें बनीं भी। लेकिन कहीं भी clean sweep नहीं हुआ बस मार्जिन से सरकार भर बन गई।

गुजरात में बसपा से गठबंधन नहीं था लेकिन फ्रेंडली फाईट के नाम पर पांच सीटों पर सपा को प्रत्याशी मिल गये थे, जिन्हें उल्लेख करने लायक वोट भी नहीं मिला था।

इन तीनों राज्यों में बसपा और सपा कांग्रेस पर दवाब बना रही थीं कि वह यूपी में सीटें लेने के एवज में वहां मुँह मांगी सीटें दे, जिसके लिए कांग्रेस तैयार नहीं हुई।

इन राज्यों में सपा और बसपा विधानसभा चुनाव अलग लड़ीं और गिनी चुनी 1,1 या 2,2 सीटें तो मिलीं लेकिन सत्ता में सौदा करने लायक सफलता कोसों दूर रही।

छत्तीसगढ़ में दगी हुई तोप पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्री के साथ समझौता करके बसपा चुनाव लड़ी। वहीं सपा ने एलानिया कहा कि जिनको मध्यप्रदेश में कांग्रेस से टिकट न मिले वे उनसे टिकट लेकर चुनाव लड़ लें।

यह सब परोक्ष रूप से भाजपा को फायदेमंद होना ही था।

असल में सपा और बसपा किसी भी कीमत पर नहीं चाहते कि कांग्रेस फिर से जमीन पर मजबूत हो। उन्हें डर है कि कांग्रेस के मजबूत होने पर वह कमजोर होने लगेंगे, क्योंकि दोनों का आधार वोट एक ही है। दूसरी बात दोनों ही क्षेत्रीय दलों के मुखिया व उनके परिवार पर संगीन भ्रष्टाचार के आरोप हैं और यदि उनके सबूत कोर्ट में आ जायें तो इनका भी वही हाल हो जो लालूजी का हो रहा है। तो सात समंदर पार तोते में जो इनकी जान है, वह दिल्ली सरकार के हाथ में है और बहुत कुछ न चाहते हुए भी इन्हें करना होता है। ऐसा कुछ जानकार लोग कहते भी हैं, जिसकी बानगी अगर याद हो तो बिहार विधानसभा चुनाव के समय की है। जब मुलायम सिंह जी वहां बने गठबंधन के मुखिया का पद छोड़ कर अलग ही नहीं हो गये थे बल्कि नीतीश, लालू, कांग्रेस के उम्मीदवारों के सामने अपने प्रत्याशी भी लड़ाये थे। वजह केवल नोयडा के यादव सिंह का पकड़ा गया घोटाला था, जिसमें इनके परिवार के मूर्धन्य थिंक टैंक और उनके बालक फंस रहे थे और जहां से ही चाचा भतीजे की लड़ाई की शुरुआत भी हुई। खैर यह अलग प्रकरण है।

उत्तर प्रदेश में जब गठबंधन की बात आई तो गोरखपुर, नगीना और कैराना के प्रयोग से बम-बम दोनों पार्टियों ने कांग्रेस को बाहर रखने का मन बना लिया था और ऐसा ही किया भी। प्लानिंग रही होगी कि भाजपा का सूपड़ा साफ करके दिल्ली सरकार को बनाने में सौदा करेंगे बुआ जी प्रधानमंत्री और भैया जी 2022 में यूपी के मुख्यमंत्री बनेंगे। कांग्रेस के लिए दो सीटें बहुत हैं, माने तो ठीक न माने तो और ठीक। इन्होंने कांग्रेस के लिए दो सीटें छोड़ीं और कांग्रेस ने इनके लिए 4 छोड़ दी हिसाब बराबर हो गया।

कांग्रेस ने सभी सीटों पर लड़ने का फैसला किया। यहां मैं यह जरूर कहूंगा कि यह फैसला लेने में कांग्रेस ने देर की और प्रियंका गांधी को भी सक्रिय राजनीति में उतार दिया। हर राजनीतिक पार्टी का जीवन जन सामान्य से उसका जुड़ाव होता है। चुनाव के माध्यम से जनता से सीधा संवाद होता है और जनाधार तैयार होता है।

यूपी किसी भी राजनीतिक दल के लिए न तो आरक्षित है, न किसी की व्यक्तिगत सम्पत्ति है जहां कांग्रेस को लड़ने से रोका जा सकता हो। कांग्रेस एक विचार धारा बाली पार्टी है और उसे चुनाव लड़ने का हक है। जब चुनाव लड़ा गया तो यही यूपी के क्षेत्रीय दल और उसके समर्थक कांग्रेस के चुनाव लड़ने पर सवाल उठाने लगे। कांग्रेस को भाजपा की मदद करने बाली बताने लगे। जबकि पूरे देश मे केवल कांग्रेस ही थी जिसके नेता मोदी के खिलाफ बोल रहे थे, राफेल का मुद्दा उठा रहे थे, सीबीआई की रेड झेल रहे थे, मुकदमे, जांचें और CBI, IT, ED की पूछताछ के लिए 48-48 घंटे बैठ कर जवाब दे रहे थे। लगभग सभी बड़े नेता खुद या उनके परिवारीजन जेल जा रहे थे।

राहुल गांधी, जब गठबंधन नहीं हुआ, तब भी अखिलेश या सुश्री मायावती जी के सम्मान में कोई कमी नहीं की, लेकिन इन क्षेत्रीय दलों ने भाजपा के साथ साथ कांग्रेस को भी पूरे चुनाव निशाने पर रखा। सबसे बड़ी अलोकतांत्रिक बात यह फैलाई गई कि कांग्रेस को चुनाव ही नहीं लड़ना चाहिये था। जबकि सबसे मजेदार बात यह हुई कि मतगणना होने से ठीक पहले CBI ने कोर्ट को बताया कि सपा प्रमुख एवं उनके परिवार के खिलाफ आय से अधिक सम्पत्ति के सिलसिले में उसे कोई सबूत नहीं मिला है। यह सांत्वना पुरस्कार मोदी सरकार से क्यों मिला होगा यह समझना कोई बहुत चातुर्य का काम नहीं है।

कांग्रेस चुनाव लड़ी, यह उसका अधिकार था और पिछले समय में जो गलती चुनाव नहीं लड़कर की थी उसे सुधारा है, भले ही देर हो गई हो लेकिन दुरुस्त आ गये हैं।

कांग्रेस की जिम्मेदारी नहीं थी कि गठबंधन के प्रत्याशियों को जिताती। आप हारे तो वह आपका विषय है आप आत्ममंथन करिए। कांग्रेस को दोष मत दीजिये।

पीयूष रंजन यादव

(लेखक उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सदस्य हैं)