कानून अंधा है तो सुप्रीम कोर्ट क्या है?
हवाओं में उलझे तारों का तानाबाना
हर मछली के लिए खासो इंतजाम
खटमल, धीरे से नंगे फिरंगियों की
बारात में जाना, यही है जीना
नंगी खड़ी मौत को गले लगाना
खबर है कि जनता के लिए सबसे बुरे दिन लाने वाली नीतियों से मिलकर लड़ेंगे वामपंथी दल http://ow.ly/Np7ve
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16 मई का जश्न मन रहा है और बुरे दिनों के दावों के मध्य अच्छे दिनों की वसंत बहार है। मीडिया का कोना-कोना मोदियाया हुआ है और सोना चांदी बरसने लगे मूसलाधार। हवाओं में नंगी नाच रही हैं बिजलियां और उलझा है तारों का ताना बाना, जिनका जलवा जालिमाना कि कारे अधकारे फिरंगी तमामो नाचे नंग धड़ंग।
कानून अंधा है तो सुप्रीम कोर्ट क्या है?
हवाओं में उलझे तारों का तानाबाना
हर मछली के लिए खासो इंतजाम
खटमल, धीरे से नंगे फिरंगियों की
बारात में जाना, यही है जीना
नंगी खड़ी मौत को गले लगाना
सुप्रीम कोर्ट चाहे तो इस लिखे पर अदालत की अवमानना का मामला भी बना सकता है क्योंकि जनसुनवाई सुप्रीम कोर्ट या भारतीय लोकतंत्र की रघुकुल रीति नहीं है।
सारी बीच नारी है कि नारी बीच सारी है।
इस पहेली को बाबासाहेब अंबेडकर ने सुलझाने की भरसक कोशिश की है कि न्यायपालिका को कार्यपालिका और विधायिका पर अंकुश के अधिकार दे दिये हैं।
यह अंकुश अब हिंदू साम्राज्यवाद के एजेंडे को समर्पित है।
अंधा कानून है।
इस देश का हर नागरिक अब सजायाफ्ता है और सजाएमौत के इंतजार में है।
यही है कानून का राज। बाकी सिर्फ मोदियापा है।
माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश से कि विज्ञापनों में प्रधानमंत्री के अलावा किसी राजनेता की तस्वीर नहीं लगेगी, सुबह सुबह मोदीमय दिखने लगा है समूचा संसार।
धकाधक पेले हो अच्छे दिनों की सौगात मूसलाधार और मोदियापा में सारे कागद केसरिया हो कारे रंग भी केसरिया हो तो लाल नील का क्या कहिये।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट का एक बहुचर्चित आदेश है कि खनिज उसीका.जमीन हो जिसका। वह आदेश इस देश में कहां लागू है, हम नहीं जानते। जबकि जल जंगल जमीन आजीविका नागरिकता, प्रकृति और पर्यावरण से बेदखली का अश्वेमेधी अभियान अबाध विदेशी पूंजी और विदेशी हितों का अनंत प्रवाह है।
इस वास्ते मौलिक अधिकारों, नागरिक अधिकारों और मानवाधिकारों की धज्जियां उड़ाकर संसदीय प्रणाली को बाईपास करके, जनता के प्रति जवाबदेही को ठेंगा दिखाते हुए और तमाम लोकतंत्र के बुनियादी संस्थानों का, लोकगणराज्य का कत्लेआम करके, सारे कायदा कानून तोड़कर असंवैधानिक राष्ट्रद्रोही तत्वों के फैसलों के मुताबिक संविधान के दायरे तोड़कर असंवैधानिक जो सुधार नरमेध चालू है, उसमें सुप्रीम कोर्ट का अवस्थान क्या है, कृपया समझायें।
हाईकोर्ट का फैसला है कि माओवादी होना अपराध नहीं है तो माओवादी होने के आरोप में तमाम सामाजिक कार्यकर्ता मसलन एक विकलांग प्रोफेसर साईबाबा जेल में क्यों सड़ रहे हैं और क्यों इरोम शर्मिला जैसों को न्याय नहीं मिलता और नागौर तलक जारी है खैरांजली का सिलसिला, बताइये। बताइये कि सोनी सोरी का आखेर अपराध क्या है कि उसकी स्त्री योनी में पत्थर डाले जायें और खामोश हो जाये न्याय प्रणाली।
सुप्रीम कोर्ट का मशहूर फैसला है कि आधार योजना को अनिवार्य नहीं माना जाये तो कैश सब्सिडी से लेकर मताधिकार तक के लिए तमाम बुनियादी जरुरतों और सेवाओं के लिए आधार को अनिवार्य बनाया हुआ है सरकारों ने।
क्यों देश में तमामो आम जनता के मुकदमे दशकों से लंबित है और तारीख पर तारीख, तारीख पर तारीख, पेशी नहीं, सुनवाई नहीं, लेकिन जमीं पर जब उतरे हों सितारे तो आतिशबाजी ऐसी कि जेल और बेल में पांच मिनट का फासला भी नहीं होता, हम नहीं समझ पाते, कृपया समझायें।
किसी के किसी के लिए समानता और न्याय कुछ ज्यादा ही क्यों है और सारे अवसर क्यों अस्मिताओं के आर पार बिलियनर मिलयनर तबके के लिए आरक्षित है वैसे ही जैसे कि मनुस्मृति सासन और हिंदू राष्ट्र में ही संभव है, सुप्रीम कोर्ट ही जांच सकै है।
शत प्रतिशत हिंदुत्व के लिए 2001 तक विधर्मियों के सफाये के एजंडे, सारे धर्मस्थलों को केसरिया बनाने के आयोजन, सारे विधर्मियों की हिंदुत्व के नर्क में वापसी की अनिवार्यता और हिंदुत्व आतंकवाद पर अंकुश के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट और न्यापालिका से जुड़े तमाम न्यायाधीश, संविधान विशेषज्ञ और वकील अपना अपना पक्ष साफ करें तो कानून के राज के बारे में कुछ हमें भरोसा मिलें और दमघोंटू इस गैस चैंबर में तब्दील नाजी यातनागृह में हवा के कुछ झोंकों का अहसास भी है। मरते मरते समझ लिबो कि वाह, न्याय है।
माननीय सुप्रीम कोर्ट के प्रधानमंत्री पक्षधर आदेश से सारे प्रतिद्वंद्वी हाशिये पर हुए और अबहुं देख्यो कि लू के मारे जो सैकड़ों बिन पानी बिन राशन खुल्ला बाजार में छटफटाकर मरो हो हिंदू साम्राज्यमा, उनर कलेजा भी हुलस हुलस कर बोले, हे राम!जयबजरंगबली।
बसेरा का मतलब है अंधी गली में कुकुर की तरह मारा जाना, टुकड़े वे देते जायेंगे कि ससुरा मरे भी नहीं और भौंकने की आजादी भी होगी बहरहाल कि काटे न सकै कबहुं ससुरे।
कुल मिलाकर संघ परिवार के नस्ली रंगभेद का यही तारों का तानाबाना है कि बाकी निनानब्वे को खटमल की तरह जीना है और मरना है।
इस ताने बाने का चरमोत्कर्ष है सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार कागज के हर टुकड़े पर या हर फ्रेम में मोदियापा की सेल्फी रक्तबीज की तरह चस्पां होना।
पलाश विश्वास