कानून का जूता सिर्फ जनता के लिए ?
कानून का जूता सिर्फ जनता के लिए ?
मधु भाई रामदेव
जयपुर. हमारे राज्य के गृहमंत्री शान्तिलाल धारीवाल अपने मंत्रालय एवम् संभागीय स्तर के पुलिस मुख्यालय में तैनात पुलिस अधिकारियों की क्लास लेकर पुलिस महकामे की छवि को सुधारने में लगे है हाल में वो जोधपुर के दौरे पर थे और गृहमंत्री शान्तिलाल धारीवाल ने माना कि जोधपुर में अपराध बढ़े है लेकिन पुलिस महकमें में कार्यरत नीचे से ऊपर स्तर के कर्मचारियों ने जैसे कसम की उठा ली कि हम नहीं सुधरेंगे। जिसमें दम हो सुधार कर दिखाये ।
राजस्थान में बढते अपराध, चोरी, हत्या एवम् पुलिस थानों में बढती अव्यवस्था को नियंत्रण करने के लिए गृहमंत्री जी ने संभागीय स्तर पर बैठक लेकर निर्देश दिये, लेकिन इसका असर कितना हुआ, इसका मूल्यांकन हो पाता इससे पहले ही भीलवाडा के एक थानेदार साहब ने अपने रिटायर्ड साथी की थाने में धुनाई कर दी। रिटायर्ड साथी का कुसूर इतना ही था कि उसने थानेदार साहब की नींद में खलल डाली थी और अपनी जान की सुरक्षा की गुहार करने गया था। ऐसे में कई प्रश्न खडे होते है कि " खाकी वर्दीधारी " को यह अधिकार किसने दिया कि जन सेवक जनता का अपमान करती रहे और उस पर हमारे द्वारा चुनी गई सरकार जो अपनी जनता के स्वाभिमान की रक्षा नही कर सकते हैं फिर भी इस पर यह दावा कि राजस्थान सरकार - "आम आदमी की सरकार "...। इस सरकार आम आदमी की सरकार कैसे माना जाये ? ऐसी सरकार जो नौकरशाही सरकार तंत्र और पुलिसियां महकमे के दम पर चल रही हो....। आम जनता यदि क़ानून का उल्लंघन करे तो सजा और सरकारी तंत्र कानून का उल्लंघन करे तो बचाने का लाख प्रयास । दबाव आया तो जांच कमेटी या जांच एजेन्सी को मामला सौंप दिया जाता है। परिणाम वह जो अफसर चाहेंगे। पुलिस महकमें में तो आराम है कि कर्मचारी गलती करें तो लाईन हाजिर कर लाईन में भेज दिया या फिर कुछ के निलम्बन कर सजा के तौर पर स्थानान्तरण । दरअसल हमारी राज्य - सरकार का खौफ रहा ही नही। दैनिक समाचार पत्र में छपे समाचार ने चिन्ता में डाल दिया कि लाइसेंस, कागजात, हेममेट, बीमा और ना जाने क्या - क्या कमियां बताकर लोगों से चालान बनाकर जुर्माना वसूलने वाली पुलिस की गाड़ियों का भी बीमा नहीं है। जबकि पुलिस विभाग के पास छोटे - बडे हजारो वाहन है। इनमें एक का भी बीमा नहीं है । ऐसे में दुर्घटना के मामलों में इसका खामियाजा चालक को अपनी वेतन चुकाकर भुगतना पडता है। आखिर ऐसा क्यो है ? इसका जवाब न तो अफसरों का पास है और न कर्मचारियों के पास है । पुलिस विभाग से जानना चाहा कि क्या पुलिस वाहन का बीमा है? जवाब था कि वैसें सरकारी गाड़ियों का बीमा नहीं कराया जाता हैं । जब यह जानना चाहा कि जब पुलिस की गाड़ियों का बीमा नही तो फिर जनता से बीमा के नाम पर वसूली क्यों ? जवाब था सरकारी नियमानुसार कार्रवायी करते है। यह जानना चाहा कि क्या किसी दूसरे विभाग की गाडी का बीमा चैक किया जाता है ? जवाब था नहीं, सरकार के निर्देशानुसार सरकारी गाडी का बीमा नही कराया जाता है । तो बीमा है या नहीं करने का सवाल ही नही होता । अब प्रश्न यह है कि सरकार, सरकारी वाहन का बीमा क्यों नही करवाती है। जो सरकार आम जनता से वाहन का बीमा करवाने को आवश्यक नियम बनाकर लागू करवाती है । वह खुद के वाहन के प्रति इतनी लापरवाह क्यों है ? इसलिए किसी ने यह सच कहा है । सरकार लाख क़ानून का उल्लंघन करे तो चलेगा और अगर जनता करेगी तो क़ानून का जूता तैयार।


