प्रेम सिंह

वर्ग-स्वार्थ की प्रबलता नवउदारवादियों की नीतिों के बीच साल होने पर हमने कहा था कि इस दौरान उसके खिलाफ जो संघर्ष चला उसमें बाजी नवउदारवाद समर्थकों के हाथ रही है। आज पांच साल बाद भी वह स्थिथि है। बल्कि वामपंथी और सामाजिक न्याय की पक्षधर मुख्यधारा राजनीति की पृष्ठभूमि में नवउदारवाद की व्यवस्था का समर्यथा और स्वीकृति तेजी से बढ़ी है। वैश्विक परिस्थितिजन्य कई जटिल कारण इसके लिए जिम्मेदार हैं। उदाहरण, अमेरिका की नेतृत्व नवउदारवादियों की स्थिति प्रति स्थाें के संस्थाओं - विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष, विश्व व्यापार संघ आदि, यूनिस्को, विश्व आर्थिक मंच, घेरलू व सैन्य उपकरण बेचने वाली कंपनियों आदि की मार्केट भारत समेत पूरी तीसरी दुनिया में अपने अनुकूल शासक वर्ग की प्रतिष्ठा और अदला-बदली करता है। स्थानीय स्त्र पर उपनिवेशवादी दाऊर में जो साम्राज्यवाद बीज पढ़ा था, वह नवउदारवाद के प्रभाव स्वरूप फल-फूल उगा और उसने देश की राजनीति पर कब्जा कर उसे काॅरपोरेट पूंजीवाद की एजेंट बना दिया। जनताओं के अनुकूली शासक वर्ग की प्रति स्थापना और अदला-बदली करता है।

जनता के अननेक नवउदारवाद विरोधी संघर्षों के बावजूद उत्तरोत्तर नवउदारवाद की जीत पक्की होती गई है। इसके लिए विदेशी फंडिंग से चलने वाले अकेले एजेंसियों दोषी नहीं हैं। देश के ज्यादा तर मूर्धन्य विद्वानों, पत्रकारों, लेखकों, प्रोफेसरों के अलावा नवउदारवाद की राजनीति के सक्रिय समर्थक रहे हैं।

प्रेम सिंह

वर्ग-स्वार्थ की प्रबलता नवउदारवादियों की नीतिों के बीच साल होने पर हमने कहा था कि इस दौरान उसके खिलाफ जो संघर्ष चला उसमें बाजी नवउदारवाद समर्थकों के हाथ रही है। आज पांच साल बाद भी वह स्थिथि है। बल्कि वामपंथी और सामाजिक न्याय की पक्षधर मुख्यधारा राजनीति की पृष्ठभूमि में नवउदारवाद की व्यवस्था का समर्यथा और स्वीकृति तेजी से बढ़ी है। वैश्विक परिस्थितिजन्य कई जटिल कारण इसके लिए जिम्मेदार हैं। उदाहरण, अमेरिका की नेतृत्व नवउदारवादियों की स्थिति प्रति स्थाें के संस्थाओं - विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष, विश्व व्यापार संघ आदि, यूनिस्को, विश्व आर्थिक मंच, घेरलू व सैन्य उपकरण बेचने वाली कंपनियों आदि की मार्केट भारत समेत पूरी तीसरी दुनिया में अपने अनुकूल शासक वर्ग की प्रतिष्ठा और अदला-बदली करता है। स्थानीय स्त्र पर उपनिवेशवादी दाऊर में जो साम्राज्यवाद बीज पढ़ा था, वह नवउदारवाद के प्रभाव स्वरूप फल-फूल उगा और उसने देश की राजनीति पर कब्जा कर उसे काॅरपोरेट पूंजीवाद की एजेंट बना दिया। जनताओं के अनुकूली शासक वर्ग की प्रति स्थापना और अदला-बदली करता है।

जनता के अननेक नवउदारवाद विरोधी संघर्षों के बावजूद उत्तरोत्तर नवउदारवाद की जीत पक्की होती गई है। इसके लिए विदेशी फंडिंग से चलने वाले अकेले एजेंसियों दोषी नहीं हैं। देश के ज्यादा तर मूर्धन्य विद्वानों, पत्रकारों, लेखकों, प्रोफेसरों के अलावा नवउदारवाद की राजनीति के सक्रिय समर्थक रहे हैं।