जुगनू शारदेय
कभी कहा जाता था कि झूठे का मुंह काला , सच्चे का बोलबाला । अब पता ही नहीं चलता कि झूठा कौन – सच्चा कौन । सब बड़े बड़े लोग हैं । यह कहना
मुश्किल है कि इसमें से असत्यपति कौन है और सत्यपति कौन है । कभी वह गाना सुनाया था राजकपूर ने बॉबी में – बात न जाने कितनी पुरानी क्योंकि तब
कहीं नहीं थे आज के असत्यपति और सत्यपति । लेकिन गाना जरूर कभी न कभी सुना होगा कि झूठ बोले काला कौवा काटे , काले कौवे से डरियो …
अब आप ही तय करें कि काला कौवा कौन है और क्या उससे डरना चाहिए भी । और डरना भी चाहिए तो किसको डरना चाहिए । यहां यह भी सवाल उठता है कि काला
कौवा खतरनाक है या काला धन । या दोनों खतरनाक चीज नहीं है । कोई सफेद चीज खतरनाक है । जैसे सफेद धुंआ आदि आदि । पता नहीं भूतों की पोशाक भी सफेद
क्यों रखी गई । उसी तरह से अभी तक यह तय नहीं हुआ है कि झूठ सफेद होता है या काला । यूं तो यह मुहावरा है कि नेता जी सफेद झूठ बोलते हैं जबकि उनका
हर काम काला ही काला है । ऐसे मौकों के लिए यह गाना झूठ बोले काला कौवा काटे , काले कौवे से डरियो … हमारी इस कहानी के दोनों पात्र यानी नायक – नायिका काले नहीं हैं । नायक तो हमेशा श्वेत वस्त्रधारी होता है और नायिका पुराने जमाने के एकता कपूर के सीरियलों की नायिका जैसी होती है । वस्त्र कैसे भी हों मंगलसूत्र और
सिंदूर होता ही है । हमारे नायक और नायिका हमेशा गाते रहते हैं कि झूठ बोले काला कौवा काटे , काले कौवे से डरियो …
नायिका का आज बड़ा रुतबा है । लोकसभा में नेता , विरोधी दल हैं । नायक ने कभी वित्त मंत्री के रूप में इतना सेवा कर लगाए कि उनकी सेवा से घबराकर
गृह मंत्री बना दिया गया । अब ऐसी सेवा कर रहे हैं कि पूरा देश ही नक्सलवादी हो गया है या देशवादी हो गया है । नायिका को एक काला कौवा मिला
था पी जे थॉमस की शक्ल में जिसके झूठ पर वह सुप्रीम कोर्ट में जा कर स्वंय एफिडेविट करने वाली थीं । पर उनसे पहले थॉमस ने ही कर दिया कि मैं
बालक नादान क्यों करते हो नाहक परेशान । अब नायिका कोई एफिडेविट नहीं करेंगी । काहे को उनको पता है कि अखबारी कांव कांव कानूनी नहीं होता । यह
कहना कि गृह मंत्री ने मान लिया कि उन्होने पामोलिन तेल का हेर फेर का मामला उठा लिया तो अब एफिडेविट की क्या जरूरत । अब उन्हें कौन समझाए कि
एफिडेविट कानूनी होता है और अखबारी कांव कांव सिर्फ गाना कि झूठ बोले काला कौवा काटे , काले कौवे से डरियो …
काले कौवा से कौन डरता है । हमारा नायक तो नहीं । वह कहता है कि बिन बात का बतंगड़ बनाती है हमारी नायिका । डर के मारे प्यारे से कहता भी नहीं ,
चल झूठी । नायिका की उदारता तो देखिए कि कहती है कि इस थामस को बनाना ही है तो कुछ और बना दो लेकिन नीर क्षीर विवेक करने वाला हंस न बनाओ । नायक
नकली हंसी हंस दिया गाना जो गाना था सो गा दिया झूठ बोले काला कौवा काटे , काले कौवे से डरियो …