किसानों की जगह उद्योगपतियों को राहत दे रही है भाजपा सरकार - माकपा
किसानों की जगह उद्योगपतियों को राहत दे रही है भाजपा सरकार - माकपा
रायपुर। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने भाजपा सरकार पर आरोप लगाया है कि वह प्रदेश में गहराते कृषि संकट और बढ़ती किसान आत्महत्याओं को रोकने के बजाये उद्योगों को कृषि भूमि लुटाने तथा आउटसौर्सिंग-2 की योजना पर काम कर रही है, क्योंकि जिस तरह के औद्योगिक विकास को बढ़ावा दिया जा रहा है, वहां दक्षता के अभाव में हमारे प्रदेश के युवाओं को रोजगार नहीं मिलने वाला है.
आज यहां जारी एक बयान में माकपा के छत्तीसगढ़ राज्य सचिव संजय पराते ने कहा है कि किसानों के भूमि अधिकारों से जुड़े नियम-कायदों को बदलने का असली मकसद संघ-भाजपा के निर्देश पर वर्ष 2013 के पुनर्वास क़ानून को संसद में बदलवाने में नाकाम रहने के बाद इसे निष्प्रभावी बनाना है.
उन्होंने कहा कि उद्योगों को जल-जंगल-जमीन देने का रास्ता साफ़ करने वाली रमन सरकार को पहले यह खुलासा करना चाहिए कि पिछले 15 सालों में प्रदेश के कथित औद्योगिक विकास के क्या नतीजे सामने आये हैं, कितने नौजवानों की दक्षता का विकास किया गया है, इस प्रदेश में वास्तविक निवेश कितना हुआ है और इस निवेश की तुलना में कितने लोगों को स्थायी रोजगार मिला है, इन उद्योगों में काम करने वाले कितने मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी दी जा रही है औए श्रम कानूनों का कितना पालन किया जा रहा है? इन मानकों के आधार पर भाजपा सरकार का प्रदर्शन फिसड्डी ही साबित होगा. वास्तविकता यह है कि 'एसोचैम' की रिपोर्ट के ही अनुसार प्रदेश में निवेश का वातावरण नहीं है, जिसके कारण प्रदेश में इन्वेस्टमेंट ट्रेंड 2006-07 के 61% से घटकर 2014-15 में 8.8% रह गया है. पार्टी ने यह भी कहा है कि भाजपा सरकार को यह स्पष्ट करना चाहिए कि प्रदेश गठन के बाद उद्योगों के लिए जो 10 लाख एकड़ जमीन अधिग्रहित की गई है, उसका वास्तव में आज तक कितना उपयोग हुआ है. श्रम और रोजगार मंत्रालय की संसद में पेश रिपोर्ट के ही अनुसार, छत्तीसगढ़ में रोजगार के अवसर घटे हैं और प्रति हजार 59 से घटकर 48 रह गए हैं.
माकपा ने कहा है कि इस साल सूखे की हालत में सरकार किसानों को फसल पैदा करने के लिए पानी नहीं दे पाई, क्योंकि अधिकांश जल-स्रोत उद्योगों के लिए ही आरक्षित कर दिए गए हैं. इस स्थिति में कृषि जमीन छीनकर और पुनर्वास की जिम्मेदारी से पल्ला झाड़कर उद्योगपतियों की तिजोरियां तो भरी जा सकती हैं, लेकिन आम जनता की जिंदगी बेहतर नहीं बनाई जा सकती. इन नीतियों के कारण प्रदेश में किसानों-नौजवानों की आत्महत्याएं और ज्यादा बढेंगी. किसान आत्महत्याओं की श्रृंखला में कल छुरिया में हुई एक और किसान आत्महत्या इसका प्रमाण है.


