कहते हैं कि मन से बड़ा कोई योग नहीं। योगा योगा तो मेरा मन तब से हुआ जब से योग की बढ़िया मार्केटिंग हुई। तब से ही मन भोगा भोगा भी हुआ है।

अभी समझ में नहीं आता कि योगा योगा बकूं या योग योग कहूं । हमारे देश के विदेश बिहार के मुंगेर के आस पास भी है योग केंद्र। कोई प्रचार ही नहीं । बिहार का है लेकिन बिहार का ब्रांड एम्बैसेडर नहीं । बिहार के कुछ मंत्री योगी हैं। उनका निवास तक संत निवास है । मुख्य मंत्री निर्वहन कुमार को इससे बड़ी चिढ़ होती है । असली बिहार के योगी तो वह हैं । असली संत निवास तो मुख्य मंत्री निवास है । शायद उन्हीं के लिए कहा गया था मन न रंगाए , रंगाए जोगी कपड़ा । उनके कुछ चंपु दिग्विजय सिंह के संपर्क में हैं। भइए , इतनी चीजों पर बक बक करता है कभी तो निर्वहन कुमार पर बोल दे । तारीफ न कर आलोचना ही कर दे । सुना है कि आपके मन भोगा भोगा निकले संवाद ही योगा योगा मन होता है ।

मन बड़ा य़ोगा योगा है निर्वहन कुमार का । यहां योगा योगा का मतलब हिसाब किताब से है ।

आंकड़ा के खेल में किसी माई के लाल की हिम्मत नहीं कि निर्वहन कुमार का मुकाबला करे । महारत हासिल है उन्हें अपनी बात को बार बार दुहराने में । मुद्दे पर अपने हिसाब से आने में । फिर उन्हें तो जवाब देना था भोगा भोगा , नेता , विरोधी दल अब्दुल बारी सिद्दीकी का ।

साहित्य में एक जमाने में भोगा हुआ यथार्थ होता था । इसका राजनीति में भी प्रवेश हो गया है । राजनीति में भी भोगा हुआ यथार्थ के प्रवेश का कारण है। कि कुछ लोगों को या उनके काम को या उनके नाम को निशाना बनाया जाता है । जिस वक्त सिद्दीकी ने अपने उत्साह में कुछ उलटबांसी वाले आरोप लगाए ,उसी वक्त वह जाल में फंस चुके थे । राजनीति में अगर जानकारी पक्की और मय सुबूत न हो तो आईएएस अधिकारी पर आरोप लगाना बर्रे के छत्ते को छेड़ना है ।

और अगर गलती से आईएएस अधिकारी दलित समुदाय का हुआ तो आरोप लगाना महंगा पड़ता है। एस सिद्धार्थ, मुख्य मंत्री के सचिव हैं। उनकी पत्नी विजयालक्ष्मी पिछड़ा समुदाय से हैं। दोनों पर आरोप था माल कमाने का।

मुख्य मंत्री ने कहा कि 28 फरवरी तक बिहार के सभी अफसरों की धन संपत्ति इंटरनेट पर होगी । उसे देखने के बाद सिद्दीकी आरोप लगाएं । पर निशाना न बनाएं किसी अफसर को । मुख्य मंत्री का विधान सभा में 75 मिनट का योगा योगा मन होता है ।

सिद्दिकी को किसी ने , हमने पहले ही कहा था कि कुछ रट कर , कुछ पढ़ कर बोलने से मन भोगा भोगा नहीं होता । यह कहते कि बिहार में बाहर से आए कुछ अफसर मुख्य मंत्री के स्वजातीय हैं – उन्होने उन्हें रॉयल ब्लड कह डाला । मुख्य मंत्री ने सिद्दीकी को डेपुटेशन पर आए अफसरों का पाठ पढ़ा डाला ।

मुझे ऐसा लग रहा है कि कहीं सिद्दीकी भी दिग्गी राजा न हो जाएं । बिना अपना आंकड़ा ठीक किए आरोप लगाएं और निर्वहन कुमार के सामने पिट जाएं ।

हमें सिद्दीकी का भोगा भोगा मन बनाए रखना है ।

जुगनू शारदेय

लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं, फिलहाल दानिश बुक्स के सम्पादकीय सलाहकार