सबसे बड़ा फरेब यही की बेधकल, विस्थापित याणी जिससे उसकी जान माल इज्ज़त पहचान और मुल्क महजब छीना गया, जिसकी रूह रोंद दी गई और रब लूट लिया गया सरेआ, उसे या रंदी कहते हैं या शरणार्थी!

विकास का कोट्ठा फूटने लगा है यूरोप में जिसे आप अभूतपूर्व शरणार्थी सैलाब कह रहे हैं।

फासीवाद का यह कायाकल्प है जो मुक्ता बाज़ार बाहर है।

हमारे यहा तो यह सैलाब कभी थमा ही नहीं है।

ग्लोबिकरण और मुक्त बाज़ार ने इसका कायानात में तमाम ज्वालामुखियों के मुहाने खोल दिए हैं और प्रकृति, मनुष्यता और सभ्यता की नदियों में तब्दीली है सरहदों के आर पार, महादेशों के आर पार।

पलाश विश्वास

मैं फिर वही आइला हूँ जिसका हाथ पिता के हाथ से छूट गया है न जानने कब से। न जानने कब तक जारी रहना है उसके यह भसाड़ और लोगों की सहानुभूति, करुणा और घृणा का बोझ बनकर न जानने कब तक समुंदर की लहरों से टकराता रहेगा आइला।

महसूस घृणा, हमें ज्यादा तूतकर मुहम्मद कोई नहीं कर सकता क्योंकि हमें मुहम्मदों का कोई हक नहीं है और न हमें मुहम्मदों का शोख है और न मुहम्मदें हमारे लिए सीड़ियाँ हैं।