कॉप29 सम्मेलन में द्वीपीय देशों के अधिकारों की रक्षा का मुद्दा उठाया गया

यूएन महासचिव ने जलवायु परिवर्तन में 'अन्याय' पर जताई नाराजगी

  • लघु द्वीपीय विकासशील देशों के लिए गुटेरेस की प्राथमिकताएँ
  • वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5°C तक सीमित रखने का आह्वान
  • जलवायु हानि व क्षति कोष में ठोस वित्तीय योगदान की आवश्यकता
  • भविष्य के लिए सहमति-पत्र: कर्ज़ राहत और प्रोत्साहन पैकेज की मांग

UN Secretary General calls on island nations to fight for climate justice

अवि शिवराज

कॉप29 जलवायु सम्मेलन में यूएन महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने लघु द्वीपीय विकासशील देशों के प्रति हुए 'अन्याय' को समाप्त करने की मांग की। उन्होंने ग्लोबल वार्मिंग, बढ़ते समुद्री जलस्तर, और विनाशकारी चक्रवाती तूफानों के प्रभाव से इन देशों की रक्षा के लिए वैश्विक कार्रवाई और समर्थन की अपील की। पढ़िए संयुक्त राष्ट्र समाचार की ख़बर

कॉप29 सम्मेलन: द्वीपीय देशों के साथ हुए 'अन्याय' को ख़त्म करना होगा, यूएन महासचिव

13 नवंबर 2024 जलवायु और पर्यावरण

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने बाकू में लघु द्वीपीय विकासशील देशों की एक बैठक को सम्बोधित करते हुए कहा कि इन देशों के अस्तित्व पर जोखिम मंडरा रहा है और इसलिए जलवायु संकट से निपटने में उनकी हर हाल में मदद की जानी होगी.

यूएन प्रमुख ने ध्यान दिलाया कि जलवायु परिवर्तन में लघु द्वीपीय विकासशील देशों का कोई योगदान नहीं है, मगर उन्हें इसकी बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ रही है.

“आपको क्रोधित होने का हर अधिकार है, और मैं भी हूँ. आप एक विशाल अन्याय के नुकीले छोर पर हैं. एक ऐसा अन्याय जिससे आपके द्वीपों का भविष्य ही बढ़ते समुद्री [जलस्तर] से ख़तरे में है.”

“आपके लोग रिकॉर्ड चक्रवाती तूफ़ानों की मार झेल रहे हैं और आपकी अर्थव्यवस्थाएँ तबाह हो रही हैं.”

अज़रबैजान की राजधानी बाकू में यूएन का वार्षिक जलवायु सम्मेलन, कॉप29 हो रहा है, जिसमें बुधवार को यूएन प्रमुख ने अनेक उच्चस्तरीय कार्यक्रमों में शिरकत की.

उन्होंने लघु द्वीपीय विकासशील देशों के समक्ष पनपी चुनौतियों पर एक चर्चा में कहा कि जिस अन्याय से वे जूझ रहे हैं, उसके लिए चन्द देश ही ज़िम्मेदार हैं. वैश्विक उत्सर्जनों में जी20 समूह के देशों का क़रीब 80 प्रतिशत योगदान है.

यूएन के शीर्षतम अधिकारी ने जलवायु कार्रवाई में लघु द्वीपीय विकासशील देशों के प्रयासों की सराहना की और कहा कि वे दर्शा रहे हैं कि जलवायु महत्वाकाँक्षा की रूपरेखा क्या होगी.

“दुनिया को आपका अनुसरण करना होगा. और उसे आपका समर्थन करना होगा.” इस क्रम में, यूएन महासचिव ने तीन प्राथमिकताएँ साझा की.

अहम प्राथमिकताएँ

पहला, वैश्विक तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लक्ष्य को जीवित रखना होगा. इसके लिए ज़रूरी है कि बड़े उत्सर्जक देशों द्वारा बड़े क़दम उठाए जाएं. 2030 तक वैश्विक उत्सर्जनों में हर वर्ष 9 फ़ीसदी की कटौती लानी होगी, जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता घटानी होगी, महत्वाकाँक्षी जलवायु कार्रावई योजनाओं को अमल में लाते हुए और कॉप28 के संकल्पों को साकार करना होगा.

दूसरा, लघु द्वीपीय विकासशील देशों को समर्थन व न्याय सुनिश्चित करना होगा, ताकि वे जलवायु झटकों का सामना कर सकें. इसके लिए यह ज़रूरी है कि जलवायु हानि व क्षति कोष में ठोस वित्तीय योगदान दिया जाए और जलवायु संकट की मार झेल रहे क्षेत्रों को वित्तीय संसाधन मुहैया कराए जा सकें.

तीसरा, ‘भविष्य के लिए सहमति-पत्र’ (pact for the future) के लक्ष्यों को हासिल करना होगा, जिसे इस वर्ष सितम्बर में यूएन महासभा में आम सहमति से पारित किया गया था.

इसमें अन्तरराष्ट्रीय वित्तीय तंत्र में सुधार की पुकार लगाई गई है, जिसके तहत ज़रूरतमन्द देशों को कर्ज़ से राहत देनी होगी और टिकाऊ विकास लक्ष्यों को आगे बढ़ाने के लिए हर वर्ष 500 अरब डॉलर का प्रोत्साहन पैकेज मुहैया कराया जाना होगा.