मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात के आदिवासी-किसान, खेती, संपदा की बरबादी क्यों?
नई दिल्ली। खबर है कि सरदार सरोवर के द्वारा गुजरात को मिलने वाले पानी में से 30 लाख लीटर पानी प्रतिदिन अकेले कोका कोला को मिलेगा। कोका कोला का 500 करोड़ की लागत से बनने वाला प्लांट साजंद, जिला खेड़ा में शुरू हो रहा है। जब कि साजंद में लगी और लगने वानी फैक्ट्रियों के लिए 90 लाख लीटर पानी प्रतिदिन पहले से ही दिया जाना तय है। खबर है कि 20 लाख लीटर तो आज ही, साजंद में बसी टाटा और फोर्ड जैसी गाड़ियों निर्माण करने वाली कंपनियों को दिया जा रहा है। सरदार सरोवर की सच्चाई और मूल योजना का उल्लंघन अब सामने आ चुका है।
कोका कोला के कई प्लान्ट्स के विरुद्ध देश भर में इसलिए संघर्ष चल रहे हैं कि वह फैक्टरी लाखों लीटर पानी खींचकर भूजल को नष्ट करती है और झूठे दावों के बावजूद क्षतिपूर्ति नहीं करती है। तब नर्मदा का पानी उन्हें करीबन् मुफ्त में देने पर सवाल उठ रहे हैं।
नर्मदा बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ताओं मेधा पाटकर, भागीरथ कँवचे, देवेन्द्र तोमर, विश्वदीप पाटीदार व राहुल यादव ने कहा कि गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेष, के आदिवासी गाँव और जंगल, तथा मध्यप्रदेश के मैदानी क्षेत्र के, बड़ी जनसंख्या के, अतिउपजाऊ, खेत जमीन के गांव, खेती, लाखों पेड़, मंदिर, मजिस्द, सभी को डुबोकर, उसके विनाश को कच्छ- सौराष्ट्र की प्यास बुझाने के लिए तथा उत्तर गुजरात की सिंचाई के लिए समर्थनीय बनाकर यह परियोजना आगे धकेली गयी है। लेकिन अब कोका-कोला जैसे, उपभोग की वस्तु बनाने के लिए नर्मदा का पानी प्राथमिकता के साथ देने की साजिश रची गयी है। कोका-कोला जैसे प्लान्ट को पानी देकर, इर्दगिर्द की कंपनियों को भी पानी देकर उन्हें जमीन भी आरक्षित करने से गुजरात शासन अब कच्छ-सौराष्ट्र या उत्तर गुजरात को, खेती की सिंचाई याने खेतिहरों के पक्ष में इस योजना के लाभ मोड़ना छोड़ रही है। जाहिर है कि करीबन् 4 लाख हेक्टर्स सरदार सरोवर के लाभ- क्षेत्र की जमीन अ-राजपत्रित करना (लाभ से वंचित करना) गुजरात सरकार शुरू कर चुकी है। पानी और जमीन की उपयोगिता बदलने से जब कि परियोजना की लाभ-हानि और उद्देष्य तथा ब्यौरा ही बदल गया है, तब भी मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र शासन इस पर आपत्ति नहीं उठा रही हैं, ना ही पुनर्विचार की मांग कर रही हैं। नर्मदा बचाओ आंदोलन चाहता है इस पर समाज विचार करे।
नर्मदा बचाओ आंदोलन की एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि सरदार सरोवर परियोजना की लागत, शासन से जून 2014 में किये गये जाहिर वक्तव्य के अनुसार, जो मूल 4200 करोड़ थी, अब 90,000 करोड़ रू. हो चुकी है। सरदार सरोवर के डूब क्षेत्र में 40 से 45 हजार परिवार आज भी निवासरत हैं, जिसका कानून अनुसार, खेती या वैकल्पिक आजीविका देकर पुनर्वास होना बाकी है। पुनर्वास स्थलों पर सभी सुविधाएँ न होते हुए इन तमाम पुनर्वास के मुद्दों/कार्यो में करोडों के भ्रष्टाचार की जाँच मध्यप्रदेश हाईकोर्ट से नियुक्त न्याय, श्रवण शंकर झा आयोग द्वारा जारी है। ऐसी स्थिति में संपूर्ण परियोजना पर पुनर्विचार जरूरी है। इस संपदा को डुबाना या बरबाद करना न्यायपूर्ण और कानूनी नहीं है।
नर्मदा बचाओ आंदोलन चाहता है कि इस पर समाज के संवेदनशील तबके और सरकार भी तत्काल ध्यान दे।
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