COP 28 hot on coal, but soft on oil and gas

नई दिल्ली, 13 दिसंबर 2023: एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में, कॉप28 प्रेसीडेंसी (COP28 Presidency) ने सोमवार शाम ग्लोबल स्टॉकटेक (जीएसटी) पर एक नया दस्तावेज़ जारी किया है। इस दस्तावेज़ में जहां कोयले पर गर्म रवैया अपनाया गया है, वहीं तेल और गैस पर तुलनात्मक रूप से कुछ नरम रुख दिखाया गया है। साथ ही इस दस्तावेज़ में फोस्सिल फ्यूल के लिए "फ़ेज़ आउट" ("Phase out" for fossil fuels) या "फ़ेज़ डाउन", दोनों ही शब्दों से परहेज किया गया है। जिसे लेकर दुनिया के अनेक देशों ने नाराजगी जताई जा रही है।

वैश्विक स्टॉकटेक क्या है? (What is global stocktake?)

आगे बढ़ने से पहले पहले समझ लेना चाहिए कि ग्लोबल स्टॉकटेक होता क्या है। दरअसल यह 2015 के पेरिस समझौते में स्थापित एक 5-वार्षिक समीक्षा है जिसमें जलवायु कार्रवाई पर मिटिगेशन (शमन), एडेप्टेशन (अनुकूलन) और फाइनेंस (वित्त) के संदर्भ में प्रगति की निगरानी और आकलन, बिना देशों की व्यक्तिगत प्रगति का मूल्यांकन किए, किया जाता है।

ताज़ा जीएसटी दस्तावेज़ में साफ़ तौर से पांच समस्याएं पेश हैं -

1.एनर्जी सेक्शन में फोस्सिल फ्यूल के लिए "फ़ेज़ आउट" या "फ़ेज़ डाउन", दोनों ही बातें नहीं हैं ।

2. नेट जीरो को लेकर मध्य सदी के अस्पष्ट दावों से परे कार्रवाई के लिए कोई समयसीमा नहीं है

3.विकासशील देशों के ऊर्जा परिवर्तन या एनर्जी ट्रांजीशन का समर्थन करने वाली कुछ फाइनेंस सहायता की प्रतिबद्धताएँ नहीं हैं

4.एडेप्टेशन फाइनेंस यानी अनुकूलन वित्त के लिए आगे बढ़ने के रास्ते का कोई स्पष्ट मार्गदर्शक नहीं है ।

5. एनडीसी को लेकर कोई मांग नहीं है। बस सभी को उत्सर्जन कम करने के लिए प्रोत्साहित किया गया है।

इसका उनतीसवां पैराग्राफ ग्रीनहाउस गैस एमिशन में पर्याप्त, तेज और निरंतर कटौती की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए सभी पक्षों से कार्रवाई करने का आग्रह करता है। क्योंकि आगे दस्तावेज़ में बात की गयी है कोयले के प्रयोग को तेजी और चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की और साथ ही कोयला बिजली उत्पादन पर तमाम प्रतिबंध लगाने की, इसलिए विकासशील दुनिया से आने वाले आलोचक इस भाषा को "चयनात्मक" और "भेदभावपूर्ण" बताते हैं।

बात जब दूसरे फोस्सिल फ्यूल की होती है तब यहाँ देशों से "विज्ञान को ध्यान में रखते हुए, साल 2050 या उसेक आस पास नेट ज़ीरो हासिल करने के लिए उचित, व्यवस्थित और न्यायसंगत तरीके से खपत और उत्पादन दोनों को कम करने का आग्रह किया गया है।"

इस दस्तावेज़ में तेल आड़ गैस जैसे दूसरे फोस्सिल फ्यूल को बस "कम" करने की आवश्यकता , लेकिन कोयले के प्रयोग को "तेजी से" और चरणबद्ध तरीके से कम किया जाना चाहिए, की बात कही गयी है। यह बात सरासर भेदभाव पूर्ण है।

आगे, क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क इंटरनेशनल में वैश्विक राजनीतिक रणनीति के प्रमुख हरजीत सिंह कहते हैं कि इसमें हैरानी कि बात नहीं अगर विकासशील देश इस दस्तावेज़ का आगे विरोध करते हैं तो। वह दस्तावेज़ के पिछले संस्करणों से पीछे हटने के लिए उसकी आलोचना करते हैं, विशेष रूप से फोस्सिल फ्यूल को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने पर स्पष्ट भाषा की अनुपस्थिति के मामले में।

वहीं क्लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक आरती खोसला (Aarti Khosla, Director of Climate Trends), कोयले की तुलना में तेल और गैस के प्रयोग में कमी की तात्कालिकता पर जोर देते हुए इस दस्तावेज़ को सभी पक्षों के लिए सुविधाजनक मानती हैं। आरती इस दस्तावेज़ को विज्ञान-सम्मत कम और कूटनीति से प्रेरित ज़्यादा मानती हैं। साथ ही वो इसमें निर्णायकता की कमी भी महसूस करती हैं।

लंबे समय चलेगा रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण उत्पन्न हुआ वैश्विक स्‍तर ऊर्जा का संकट

भारतीय COP28 प्रतिनिधिमंडल के सूत्रों की मानें तो भारत के लिए अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करना सर्वोपरि है और इसके साथ भारत राष्ट्रीय हितों की रक्षा करते हुए एमिशन को कम करने के लिए प्रतिबद्ध है।

गतिरोध के मूल में एनर्जी ट्रांज़िशन के प्रबंधन की चुनौती है। पावर शिफ्ट अफ्रीका के निदेशक, मोहम्मद अडो, इस ट्रांज़िशन में निष्पक्षता के महत्व पर जोर देते हैं, ऐतिहासिक जिम्मेदारी के आधार पर चरणबद्ध दृष्टिकोण का आह्वान करते हैं। वो कहते हैं कि इस मामले में नेतृत्व अमीर देशों को करना होगा। उनके बाद मध्यम आय वाले देश और फिर गरीब देश आते हैं। कांगो और कनाडा जैसे देशों की अलग अलग परिस्थितियों पर ज़ोर देते हुए एडो कहते हैं कि दोनों देशों से फोस्सिल फ्यूल को एक जैसी दर से चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की अपेक्षा करना तार्किक नहीं। यह बात इस ट्रांज़िशन के निष्पक्ष और तार्किक होने की आवश्यकता पर प्रकाश डालती है।