ईमानदारी का प्रमाणपत्र (certificate of integrity) लेकर राजनीति में आये दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने भ्रष्टाचारी सांसदों की फेहरिस्त जारी कर राजनीति में एक नया धमाका या कहें एक नया शिगूफा छोड़ा। सवा सौ करोड़ की आबादी वाले देश में लोकसभा में 543 सांसद चुनकर आते हैं। अगर केजरीवाल की सूची इतने पर ही टिकी है तो यह सिर्फ पूरे देश के राहत की बात है कि देश में सिर्फ 26 सांसद ही भ्रष्ट हैं।

सूची जारी होने के बाद यह सवाल उठा है कि यह आप की राजनीतिक रणनीति है या भ्रष्टाचार के खिलाफ जारी जंग का हिस्सा।

बेशक “आप” कहेगी कि यह हमारी जंग का हिस्सा है तो उनको यह समझाना पड़ेगा कि जंग में संकुचन क्यों। जंग, जंग होती है। जिस जंग में हार-जीत का गुणा-भाग लगे तो वह जंग नहीं होती और कुछ भी हो। “आप” को चाहिए था कि देश के सभी भ्रष्टाचारी सांसदों की सूची तैयार करती और उनके खिलाफ वह उम्मीदवार उतारती। परिणाम चाहे जो होता। हार-जीत का गुणा भाग उसे राजनीति में सांता है ना कि अलग खड़ा करता है। लोगों ने उन्हें समर्थन तो कुछ अलग देख और महसूस कर दिया है ना कि उसी धारा में मिल जाने के लिये दिया है।

दरअसल, “आप” जानती है कि इतने बड़े देश में एकबारगी पार्टी का फैलाव मुश्किल ही नहीं, बल्कि असंभव बात है। जब आजादी के 67 साल में सवा सौ साल पुरानी पार्टी कांग्रेस पूरे देश में नहीं खड़ी हो पायी। बीजेपी को नाको चने चबाने रहे हैं, तो उसकी क्या बिसात। इसीलिये बड़ी खूबसूरती से उसने कुछ बड़े नेताओं पर अपने निशाना तय कर लिया। उससे मैसेज भी निकल जायेगा और काम भी बन जायेगा। उनकी सूची में राहुल गांधी जैसे नेता का नाम होना और मोदी का नाम ना होना लोगों को अचरज में डालने वाला है। उनकी सूची में कुछ ऐसे नेताओं के नाम भी हैं जिनकी इस चुनाव में हालत अपने क्षेत्र में ख़राब है। मतलब यह कि वह चुनाव हार भी सकते हैं।

केजरीवाल ने कई ऐसे नाताओं के नाम भी अपनी सूची में गिनाये हैं ताकि हार का श्रेय उनकी आम आदमी पार्टी जाये। इसीलिये अपनी राष्ट्रीय परिषद् में उन्होंने इसी पर फोकस किया।

केजरीवाल की नजर में देश में भ्रष्टाचार आज सबसे बड़ा मुद्दा है। इसी से उन्हें दिल्ली की गद्दी मिली है। भ्रष्टाचारी सांसदों की जो सूची उन्होंने जारी की है और उन्हें उनके चुनाव क्षेत्र में घेरने का एलान किया है उसमे भ्रष्टाचार से ख़त्म करने की कम राजनीति में अपनी जगह ( स्पेस) बनाने की कवायद नजर आती है। ऐसा ही तीर उन्होंने दिल्ली विधान सभा चुनाव की तैयारियों के वक्त भी छोड़ा था। शीला दीक्षित सरकार में घोटालों की 370 पेज की एक रिपोर्ट उन्होंने आदरणीय मतदाताओं के सामने पेश की थी। उन्हें बताया गया था कि दिल्ली में कितना भ्रष्टाचार है। अगर उन्हें मिला तो वह तीर चलायेंगे कि सारे भ्रष्टाचारी ढेर हो जायेंगे। दिल्ली की गद्दी पर आसीन होने के बाद उन्होंने बड़ी चतुराई से 370 पेज की रिपोर्ट को मीडिया रिपोर्ट पर आधारित बताकर किनारा कस लिया। जो मीडिया की रिपोर्ट चुनाव से पहले सत्य थी सत्ता में आने पर वही उनके लिये अविश्वसनीय हो गयी।

लोगों को याद होगा यूपी का 2007 का विधानसभा चुनाव। मायावती ने लगभग सभी सभाओं में कहा था कि चुनाव बाद मुलायम सिंह यादव या तो विदेश भाग जायेगा या जेल में होगा। उनके पाँच साल का कार्यकाल ख़त्म हो गया। राज छिन गया, लेकिन ना तो मुलायम सिंह जेल गये और ना ही विदेश भागे।

दरअसल, राजनीति का यह महत्वपूर्ण पहलू है कि उम्मीदों के आसमान पर वोटरों को चढ़ाकर उनका वोट ले लो बाद में चाहे जो करो। ऐसे तमाम उदाहरण हर दल-राज्य में हैं। आप उनसे अलग करती और दिखती तो उम्मीद कि जाली नई लौ कम से कम मद्धिम तो ना पड़े। आमीन

गौरव अवस्थी

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

Are only 26 leaders corrupt in Lok Sabha, Kejriwal ji!