स्मार्ट सिटी का स्थान परिवर्तन या विषय का भटकाव

Smart City's relocation or diversion of the subject

वीरेन्द्र जैन
देश में जिन नगरों में स्मार्ट सिटी बनाना प्रस्तावित किया गया था उनमें मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल का नाम भी था। जिस नगर में स्मार्ट सिटी बनाने के लिए चयनित स्थान का सक्रिय विरोध हुआ उनमें भोपाल इकलौता था। उल्लेखनीय है कि भोपाल में एक बहुत बड़ा तालाब है जिसके बारे में पुराने समय से कहा जाता रहा है कि ‘ तालों में ताल भोपाल ताल और सब तलैय्यां हैं’। नगर में जनसंख्या का घनत्व बहुत कम है, बहुमंजिला इमारतों की संख्या कम है इसलिए प्राकृतिक हरियाली समुचित है। यहाँ 20 वर्ग किलोमीटर में फैला बी एच ई एल जैसा सार्वजनिक क्षेत्र का संस्थान है जिसके पास भविष्य के विस्तार के लिए भी समुचित भूमि सुरक्षित है। इस संस्थान ने कर्मचारियों के निवास के लिए किसी भी स्मार्ट सिटी से अच्छी व्यवस्था कर रखी है। एक तिहाई बाकी रह गये स्थायी कर्मचारियों के लिए समुचित एक मंजिला निवासों के पास अपने अपने लान हैं जिनमें फलदार वृक्ष लगे हैं। समुचित पार्क हैं, झीलें हैं, हरे भरे स्पोर्ट काम्प्लेक्स हैं, स्कूल कालेज, अस्पताल, सभी धर्मों के धर्मस्थल आदि में पर्याप्त हरियाली है। खुला खुला वातावरण है। चौड़ी चौड़ी सड़कें हैं जिनके दोनों ओर वृक्ष लगे हैं। पर्यावरण की दृष्टि से यह बहुत श्रेष्ठ नमूना है क्योंकि सार्वजनिक क्षेत्र केवल अपना लाभ ही नहीं देखता अपने कर्मचारियों और समाज का बहु आयामी हित भी देखता है। कह सकते हैं कि प्रदेश का दूसरा कोई भी प्राईवेट संस्थान इसका मुकाबला नहीं कर सकता। यह संस्थान समुचित लाभ भी दे रहा है।
भोपाल एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी की लापरवाही से रिसी जहरीली गैस की दुर्घटना से बुरी तरह पीड़ित होने वाले नगरों में से भी एक है और दुनिया भर में इसे इस कारण से पहचाना जाता है। पीड़ित लोगों के लिए दुनिया भर की गैर सरकारी संस्थाओं ने पीड़ितों को मुआवजे की लड़ाई लड़ते हुए इस दुर्घटना के कारणों व इसकी पुनरोक्ति रोकने के लिए लगातार संघर्ष और जन जागरण किया जिससे भोपाल के निवासी पर्यावरण के प्रति अतिरिक्त सचेत होते हुए पूंजीवादी विकास से जनित अमानवीयताओं के प्रति जागरूक हुये हैं। जब स्मार्ट नगर के नाम पर नगर की एक हरियाली वस्ती में कंक्रीट के जंगल खड़े कर देने की बात सामने आयी तो नगर के सारे सजग नागरिक उठ खड़े हुये। बैठकें हुयीं, सेमिनार हुए, प्रदर्शन हुए और बड़े आन्दोलनों की भूमिका निर्मित हुयीं। इसमें अच्छे रिकार्ड वाले सेवानिवृत्त नौकरशाह, बुद्धिजीवी, लेखक, पत्रकार, एक्ट्विस्ट तो आगे आये ही उनके पीछे वामपंथी दल व गैर सरकारी संस्थाएं भी एकजुट हुयीं। विपक्ष में होने के नाते काँग्रेस भी सक्रिय दिखी। इन सब की संख्या भले ही बहुत ज्यादा न दिख रही हो पर वज़न ज्यादा था।
इस अभियान का असर देखने को मिला और प्रदेश सरकार को इस बात का फैसला लेने को विवश होना पड़ा कि जिस प्रस्तावित स्थल पर हजारों हरे भरे पेड़ काटने पड़ें जिस स्थल पर स्मार्ट सिटी बनाने का विरोध पर्यावरणविद, आर्कीटैक्ट, निस्वार्थ भाव से काम करने वाले समाजसेवी, सरकारी कर्मचारी और अनुभवी नौकरशाह कर रहे हों तो उस स्थल पर सरकार की ज़िद ठीक नहीं होगी। मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री ने तुरंत ही निकट के दूसरे स्थल, जहाँ अपेक्षाकृत कम वृक्ष और बसाहट है, को नये स्थल के रूप में प्रस्तावित करने का फैसला ले लिया।
पहले स्थल का प्रस्ताव आने से पहले समार्ट सिटी के औचित्य और उसके निर्माण की प्राथमिकताओं पर बहस चल रही थी किंतु नया स्थल घोषित होने के बाद अपनी जीत मान कर जिस मुक्त कंठ से मुख्यमंत्री के फैसले की प्रशंसा की जाने लगी उससे स्मार्ट सिटी के औचित्य का सवाल गौण हो गया। कहने की जरूरत नहीं कि भोपाल नगर निगम समुचित आय और अनुदान के बावजूद नगर को व्यवस्थित रख पाने में असमर्थ है। इसमें कुछ कमजोरी व्यवस्था की और कुछ पदाधिकरियों की है। पिछले 25 वर्ष से बार-बार घोषणाएं करने के बाद भी भारत टाकीज और बोगदा पुल के बीच स्थापित लकड़ी की टालों को विस्थापित नहीं किया जा सका है। अकेले सुभाष नगर में ही हजारों अतिक्रमण हैं जिनमें से एक को भी हटा सकने की स्थिति में वे नहीं हैं। हजारों बड़े-बड़े सार्वजनिक व प्राईवेट वाहन सड़क का अतिक्रमण कर पार्क होते हैं व वाहनों के सर्विस सेंटर अपना काम सड़कों पर ही करते हैं किंतु उन्हें हटा सकने की हिम्मत सरकार में नहीं है। म.प्र. विद्युत मण्डल के सामने महीनों से पाइप लाइन हाई वे पर टूटी पड़ी है जो हाई वे को एक गली में बदल रही है जिससे गैलनों पानी रोज बर्बाद हो रहा है किंतु उसे ठीक करने की चिंता कहीं नहीं है। गड्ढों वाली सड़कें, टूटी हुई नालियां, कचरे के डिब्बों की गन्दगी आदि तो अलग ही समस्याएं हैं क्योंकि पदाधिकारियों को बिल्डरों से ही फुर्सत नहीं मिलती। हाकर सड़क घेरे रहते हैं व बाकी पड़ी सड़क पर पब्लिक ट्रांस्पोर्ट वाले अपनी बसें, मैजिक वाहन या टेम्पो अड़ाये रहते हैं। आम नागरिक अपने वाहन निकालते समय सरकस सा करता नजर आता है। सच तो यह है कि सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों के लिए नगर निगम समान रूप से जिम्मेदार है।
यही हाल कमोवेश हर नगर में है। जानबूझ कर नगर निगम के टैक्स न चुकाने वाले इसके पदाधिकारियों के साथ गलबहियां करते नजर आते हैं। यदि ऐसी ही व्यवस्था के बीचों बीच स्मार्ट सिटी बनाने की बात उठती है तो केवल बजट का तिया पाँचा करने से अधिक कुछ नहीं होगा।

जरूरी है कि स्मार्ट सिटी बनाने से पहले अभी जो व्यवस्थाएं हैं उनको नियमानुसार चलाने का प्रयास पहले किया जाये।
स्थान परिवर्तन के लिए जो श्रेय मुख्यमंत्री को दिया जा रहा है उस औपचारिकता में कोई बुराई नहीं है किंतु यह भी विचारणीय है कि इससे पहले सत्तारूढ दल के <चन्द लोगों को छोड़ कर> जयजयकारी समर्थकों ने स्थल के गुण दोषों पर विचार व्यक्त करने की जरूरत नहीं समझी। क्या हाईकमान से प्राप्त आदेश को ही अंतिम मान लेने वाले लोग अपने दल में लोकतंत्र की दुहाई दे सकते हैं? क्या ये लोग इमरजैंसी में जेल जाने की पेंशन लेने के सच्चे हकदार हैं? क्या अडवाणी जी की आशंकाएं सच की तरफ बढ़ रही हैं? नगर के ही दुष्यंत कुमार पहले ही कह गये हैं कि –

गज़ब है सच को सच कहते नहीं हैं
कुरानो उपनिषद खोले हुये हैं