पाँच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणामों पर प्रो रॉबिन वर्मा की टिप्पणी

जिन पाँच राज्यों के चुनाव परिणामों को सेमीफ़ाइनल कहा जा रहा था लगता है वहां पुरानी पेंशन और जातिगत जनगणना कोई मुद्दा नहीं रहा। जबकि कुछ महीनों बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में इन राज्यों में अच्छी ख़ासी लोकसभा सीटें हैं। 5 राज्यों के चुनाव में बड़ा उलट फेर करते हुए बीजेपी उत्तर भारत के तीन महत्वपूर्ण राज्यों पर सत्ता में वापसी कर रही है। चुनावी वादों को देखे तो लगता है बीजेपी हमेशा से आश्वस्त थी कि मिडिल क्लास की मांगों को चुनाव में ना भी एड्रेस किया जाए तब भी वह सत्ता प्राप्त कर सकती है तभी उसने राशन और डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर के साथ-साथ चुनाव में धर्म का संतुलित इस्तेमाल किया।

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत में भी अपने सितंबर 2023 के बयान में कहा था कि जब तक समाज में भेदभाव है आरक्षण भी बरकरार रहना चाहिए। संविधान सम्मत जितना आरक्षण है उसका संघ के लोग समर्थन करते हैं। जबकि 2015 में आरएसएस के मुखपत्रों ‘पाञ्चजन्य’ और ‘ऑर्गेनाइज़र’ को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने आरक्षण की ‘समीक्षा’ किए जाने की ज़रूरत बताई थी। इसी तरह सितंबर महीने में अपने 4 दिवसीय लखनऊ प्रवास के दौरान भी मुसलमानो को लेकर कहा था कि मुसलमानों को साथ लेकर चलने इन्हें पराया न समझने और संघ के साथ संबंध बेहतर करने की जरूरत है।

अप्रैल में कर्नाटक चुनाव के दौरान राहुल गांधी के आरक्षण को लेकर दिए बयान से पूरे देश के दलित, ओबीसी चिंतकों को लग रहा था कि आरक्षण और जातिगत जनगणना एक बड़ा मुद्दा हो सकता है। जिसके फलस्वरूप पिछले महीनों बिहार में हुई जातिगत जनगणना को दलित ओबीसी चिंतकों ने एक देशव्यापी मॉडल की तरह स्वीकार्य किया पर उत्तर भारत में अक्रियाशील राजनैतिक चेतना की वजह से यह परवान नहीं चढ़ सका।

57% आबादी गरीबी में जीवन यापन कर रही है और सरकार बनाने के लिए 32 से 40% तक वोट चाहिए होता है। वोटिंग पैटर्न को देखा जाए तो यह साफ हो जाता है कि ग्रामीण भारतीय ही सबसे उत्साहित वोटर है क्योंकि सरकार उसकी जरूरतें पूरी करने में समर्थ है। वर्किंग क्लास का पुरानी पेंशन का मुद्दा रैली से वापस लौटते ही जाति और धर्म से लबरेज़ अपने आकाओं के संरक्षण में जाते ही स्वतः समाप्त हो जाता है। सबसे बुरा हाल तो कर्मचारी संगठनों और मांग आधारित संगठनों का है जो बीजेपी किसी प्रदेश में बीजेपी की सत्ता जाने पर घोषणा करते हैं कि उनके संगठन के सदस्यों के विरोध के चलते बीजेपी सत्ता से गई। हिमाचल और कर्नाटक में गई तो एमपी में क्यों नहीं गई? राजस्थान और छत्तीसगढ़ में क्यों आ गई? क्या सरकारी कर्मचारी सिर्फ पेंशन तक ही कांग्रेस के साथ और बीजेपी के विरोध में है? क्या दलित और ओबीसी सिर्फ आरक्षण और भागीदारी मिलने न मिलने तक ही कांग्रेस के साथ या बीजेपी के विरोध में है?

जबतक लड़ाई संविधान को बचाने और कायम रखने की नहीं लड़ी जाएगी तब तक न आरक्षण मयस्सर होगा और ना ही पुरानी पेंशन।

लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।

Did the issue of caste census and OPS fail in the assembly elections of five states?