क्या सांसद निधि जन-धन नहीं है? इस पर कोई जांच क्यों नहीं ?
क्या सांसद निधि जन-धन नहीं है? इस पर कोई जांच क्यों नहीं ?
क्या सांसद निधि जन-धन नहीं है? इस पर कोई जांच क्यों नहीं ?
बुरी तरह फ्लॉप रही सांसद निधि से आदर्श गांव तैयार करने की स्वप्निल- योजना
सब जानते हैं कि सांसद निधि ( Members of Parliament Local Area Development Scheme ) ने इस देश की राजनीति और प्रशासन को जितना प्रदूषित किया है, उतना शायद ही किसी अन्य ने किया होगा। सांसद निधि की उपयोगिता को लेकर चाहे जैसे दावे किए जाएं, लेकिन सच्चाई यही है कि इसने राजनीति और प्रशासन की साख पर बट्टा लगाने का ही काम किया है। यहां इस तथ्य से इंकार करना भी संभव नहीं है कि सांसद निधि से आदर्श गांव तैयार करने की स्वप्निल- योजना बुरी तरह से असफल ही रही है। सांसदों की सुस्ती के चक्कर में सांसद निधि या तो खर्च ही नहीं हुई या फिर यों ही अटकी पड़ी है।
कुछ सवाल
सांसद निधि गाइडलाइन MPLADS Guidelines,
क्या सांसद निधि से ग्रामीण आवास बनाए जा सकते हैं
शिक्षण संस्थान के लिए सांसद निधि कैसे प्राप्त करें
सांसद निधि का प्रयोग करने वाले सांसदों का नाम
किस सांसद ने संसद निधि पूरी नहीं उपयोग की
कैसे हो सांसद निधि में पारदर्शिता और जवाबदेही
How transparency and accountability in MP fund
सांसद निधि खर्च करने के संबंध में एक व्यवस्था यह दी गई है कि सांसद का कार्यकाल खत्म होने के बाद अठारह माह के भीतर विकास- कार्य पूरा करना होता है, लेकिन माननीय सांसदों की गैर-जिम्मेदारी का आलम ये है कि चौदहवीं और पंद्रहवीं लोकसभा और राज्यसभा के कुल 1156 सांसदों की सांसद निधि का खर्च-खाता अभी तक बंद नहीं हुआ है। हैरानी होती है कि अपना कार्यकाल समाप्त हो जाने के बाद भी, इन सांसदों ने, सांसद निधि से होने वाले विकास कार्यों से संबंधित जारूरी कागजात तक जमा करने की जिम्मेदारी नहीं निभाई है। कहा जा रहा है कि सांसद निधि के संदर्भ में अब पारदर्शिता और जवाबदेही तय करने के लिए ठोस कानूनी ढांचा विकसित किया जाएगा। इसके लिए केंद्रीय सूचना आयोग की ओर से लोकसभा अध्यक्ष तथा राज्यसभा सभापति से विस्तृत विचार विमर्श किया जा रहा है।
क्या हैं सांसद निधि पर केंद्रीय सूचना आयोग की सिफारिशें
Recommendations of the Central Information Commission on MP fund?
केंद्रीय सूचना आयोग अपनी सिफारिश में चाहता है कि विशेष कर्तव्य व अनिवार्य पारदर्शिता दायित्व, कर्तव्य के उल्लंघन की परिभाषा, नियम और नियमन बताने के अतिरिक्त कोष से संबंधित कर्तव्यों के पालन में लापरवाही तथा उन नियमों व नियमनों का उल्लंघन करने के लिए जवाबदेही तय की जाए।
आयोग यह भी चाहता है कि कानूनी ढांचे में शामिल कदमों के तहत सृजित संपत्तियों का पता नहीं चलने, सांसदों के निजी कार्यों के लिए कोष का इस्तेमाल, कार्य के लिए अयोग्य एजेंसियों की सिफारिश, निजी ट्रस्ट को धन का डायवर्सन और सांसद निधि के अंतर्गत सांसदों अथवा उनके रिश्तेदारों को लाभ पहुंचाने वाले कार्यों की सिफारिश पर रोक लगाने जैसे मुद्दे शामिल किए जाएं।
एक प्रावधान यह भी शामिल किया जा सकता है कि अपना कार्यकाल समाप्त होने पर प्रत्येक सांसद कानूनी तौर पर सांसद निधि के तहत किए गए कार्यों की व्यापक समीक्षा रिपोर्ट लोकसभा अध्यक्ष अथवा राज्यसभा सभापति को सौंपे, ताकि इस तरह का विवरण मांगने पर जनता को, जनता की जानकारी दी जा सके। सांसद निधि भी आखर जन-धन ही तो है।
Geographical Information Technology for monitoring the development work done by MP fund
इस दौरान आ रही ये खबर थोड़ा आश्वस्त करती है कि सांसद निधि से होने वाले विकास कार्यों की निगरानी के लिए सरकार जियोग्राफिकल इन्फार्मेशन तकनीक अपनाने जा रही है और सांसद निधि के लिए जिम्मेदार प्रशासनिक अधिकारियों को प्रशिक्षित करने का काम भी शुरू कर रही है, इस सबसे ऐसा प्रतीत होता है कि सांसद निधि क्रियान्वयन से जुड़ी तमाम दिक्कतों को जल्द ही दूर कर लिया जाएगा, लेकिन उस सदाबहार रिश्वतखोरी और कमीशनखोरी का क्या होगा, जो स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से गहरी जड़ें जमा चुकी हैं? फिर उस राजनीतिक-पारिवारिकता को कैसे रोकेंगे, जिसमें सांसद निधि के अंतर्गत आने वाले विकास कार्य करने वाला ठेकेदार, प्राय: एक सक्षम कार्यकर्ता भी होता है? तब यह कैसे कहा जा सकता है कि सांसद निधि, प्रशासन और राजनीति दोनों को एक साथ प्रदूषित नहीं करती है? कौन नहीं जानता है कि सांसद निधि में से सांसद और प्रशासनिक अधिकारी का हिस्सा स्वत: ही घर पहुंचा दिया जाता है? याद रखा जा सकता है कि सीएजी और अदालतों ने समय-समय पर सांसद निधि को लेकर प्रतिकूल टिप्पणियां क्यों की हैं?
Provision of MP funds applied in 1993
वर्ष 1993 में जब प्रथमत: सांसद निधि का प्रावधान लागू किया गया था, तब उसी वर्ष वकील राम जेठमलानी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव पर यह आरोप लगाया था कि उन्होंने शेयर दलाल हर्षद मेहता से एक करोड़ रुपये लिए हैं। तभी चमत्कार हुआ कि सांसद निधि प्रावधान का काम त्वरित गति से होने लगा और 2 दिसम्बर, 1993 को संयुक्त संसदीय समिति की अंतरिम रिपोर्ट स्वीकार कर ली गई। एक करोड़ रुपये की सांसद निधि प्रावधान का यह पहला स्वीकार था।
माकपा के सांसद निर्मलकांत मुखर्जी ने इसका विरोध करते हुए तब कहा था कि हमने तो ऐसी कोई मांग ही नहीं की थी। तत्कालीन वित्तमंत्री मनमोहन सिंह तब विदेश दौर पर थे, किन्तु इस सबके खिलाफ थे, लेकिन यह बात दीगर कैसे हो सकती है कि जब मनमोहन सिंह खुद प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने वर्ष 2011 में सांसद निधि पांच करोड़ रुपये कर दी।
वीरप्पा मोइली के नेतृत्व वाली प्रशासनिक सुधार समिति सांसद निधि समाप्त करने की सिफारिश की थी
Veerappa Moily's Administrative Reforms Committee was recommended to end MP fund.
इससे पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपयी इसी निधि को समाप्त करने की सोच रहे थे, चूंकि वीरप्पा मोइली के नेतृत्व वाली प्रशासनिक सुधार समिति इसे समाप्त करने की सिफारिश कर चुकी थी, लेकिन अटलजी न सिर्फ पीछे हट गए, बल्कि उन्होंने सांसद निधि की राशि एक करोड़ से बढ़ाकर दो करोड़ रुपये सालाना कर दी। पूछा जाना चाहिए कि करोड़ों की सांसद निधि आखिर कहां चली जाती है?
सांसद निधि में थर्ड पार्टी सोशल ऑडिट
Third party social audit in MP fund
जिस सांसद निधि को पी.वी. नरसिम्हा राव ने एक करोड़, अटलबिहारी वाजपेयी ने दो करोड़ और डॉ. मनमोहन सिंह ने पांच करोड़ किया, उसी सांसद निधि के लिए कई सांसद मांग कर रहे हैं कि अब यह राशि पचास करोड़ रुपये कर दी जाना चाहिए, ताकि सांसद आदर्श-ग्राम योजना का क्रियान्वयन किंचित सुविधाजनक हो सके। गनीमत है कि मोदी सरकार ने इस मांग को अभी तक तो स्वीकार नहीं किया है, लेकिन संशय होता है कि वह थर्ड पार्टी ऑडिट की अपनी घोषणा भी तो क्यों लागू नहीं कर पा रही है? अन्यथा नहीं है कि घोटालों के लिए कुख्यात हो चुकी सांसद निधि ने राजनीति और लोकतंत्र के विश्वास को दागदार ही अधिक किया है, जिसे नियंत्रित करना अब किसी के लिए भी संभव नहीं रह गया है। जाहिर है कि थर्ड पार्टी सोशल ऑडिट के नतीजे न सिर्फ सांसद निधि मसले पर चौंकाएंगे, बल्कि शर्मनाक भी हो सकते हैं। दो मत नहीं कि अपवाद मिल सकते हैं।
Control and operation of MP fund
सांसद निधि का नियंत्रण तथा संचालन आमतौर पर जिला स्तर का कोई नवनियुक्त प्रशासनिक अधिकारी करता है। उक्त नवनियुक्त आईएएस को तो कमीशन आदि के बारे में कुछ पता नहीं होता है, किन्तु अगर अपवाद छोड़ दें तो उसके समूचे दफ्तर का कमीशन तय रहता है। अर्थात अपने सेवाकाल के प्रारंभिक वर्षों में ही उसे घूसखोरी का 'महाज्ञान' दे दिया जाता है। कभी-कभी तो खुद सांसद भी भिन्न-भिन्न कारणों से अफसर को मजबूर करते हैं। इस तरह यह सांसद निधि आईएएस के लिए भ्रष्टाचार की प्रथम पाठशाला बन जाता है। अफसर के दफ्तर द्वारा तीस फीसदी तक का कमीशन लिए जाने की बात सामने आई है।
ज़्यादातर मामलों में यही बात उजागर हुई है कि हमारे सांसद इस सांसद निधि का इस्तेमाल कुछ ऐसे कामों में कर लेते हैं, जो कि इस निधि के अंतर्गत नहीं कराए जा सकते हैं और मनमानी करते हुए हिसाब तक नहीं देते हैं। ये बातें घपलों की आशंका को जन्म देती हैं। सवाल उठाने का कारण यही है कि सांसद निधि के इस्तेमाल में पारदर्शिता और जवाबदेही का अभाव बना हुआ है। इसीलिए हर कोई जिम्मेदारी से बच निकलता है। ऐसे में सवाल यही है कि सांसद निधि के इस्तेमाल में पारदर्शिता और जिम्मेदारी क्यों नहीं तय होना चाहिए? क्या सांसद निधि जन-धन नहीं है?
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