लखनऊ। आतंकवाद के नाम पर फर्जी बरामदगी के आधार पर जेल में निरुद्ध खालिद मुजाहिद की न्यायिक अभिरक्षा में हत्या हो जाने के बाद प्रदेश सरकार पर दोषी पुलिस अधिकारयों को बचाने के आरोप लगातार लग रहे हैं। स्वयं मुख्यमन्त्री का बयान भी सवालों के घेरे में आ चुका है। लखनऊ कारागार अधीक्षक दधिराम मौर्या के एक ताजा पत्र पर खालिद के अधिवक्ता और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि सरकार सबूतों को नष्ट करने का कार्य कर रही है।

दरअसल लखनऊ जेल अधीक्षक, फैजाबाद जेल के अधीक्षक व डीआईजी कारागार शरद कुलश्रेष्ठ ने खालिद मुजाहिद की हत्या के तुरन्त बाद मीडिया को बताया था कि वह बीमार नहीं था किन्तु अब लखनऊ कारागार अधीक्षक दधिराम मौर्या ने सात जून को पत्र संख्या 7626 लिख कर संशय की स्थिति पैदा करनी शुरू कर दी है। बताया जाता है कि उन्होंने कारागार प्रशासन को लिखा है कि जेल के डॉ. प्रदीप बिजलानी ने 18 मई 2013 को खालिद मुजाहिद को दवा दी थी और डॉक्टरी रिपोर्ट के अनुसार खालिद मुजाहिद को लेफ्ट साइड चेस्ट पेन था। इस पत्र को जनता में संशय फैलाने के लिय़े राजधानी लखनऊ के एक समाचार पत्र में प्रमुखता के साथ प्रकाशित भी कराया गया है। इस अखबार पर पुलिस अधिकारीयों को बचाने के लिये काफी समय से तथ्यों में तोड़-मरोड़ कर समाचार प्रकाशित करने के आरोप लगते रहे हैं।

खालिद मुजाहिद के अधिवक्ता और मानवाधिकार कार्यकर्ता रणधीर सिंह सुमन ने सवाल किया कि यदि खालिद मुजाहिद की तबीयत ख़राब थी तो 300 किलोमीटर की यात्रा करने की अनुमति जेल प्रशासन ने कैसे दी। और जेल के डॉक्टर चेस्ट पेन की दवा देकर ही क्यों रह गये खालिद को पीजीआई या जिला चिकित्सालय में क्यों रेफर नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि बाराबंकी पुलिस ने साक्ष्यों को नष्ट करने के लिये न्यायलय की अनुमति लेकर विसरा को जाँच करने के लिये भेज दिया जबकि उत्तर प्रदेश सरकार उक्त वाद की विवेचना सीबीआई द्वारा करने की घोषणा कर चुकी है। उन्होंने कहा यह साबित होता है कि पुलिस अधिकारियों को गिरफ्तारी से बचाने के लिये तथ्यों से छेड़छाड़ की जा रही है।