खालिद मुजाहिद की हत्या में अखिलेश ने बचाया साम्प्रदायिक पुलिस अधिकारियों को- रिहाई मंच
खालिद मुजाहिद की हत्या में अखिलेश ने बचाया साम्प्रदायिक पुलिस अधिकारियों को- रिहाई मंच
Akhilesh saved the communal police officers in the murder of Khalid Mujahid - Rihai Manch
मनमोहन-माया ने आजमगढ़ तो मोदी-अखिलेश ने सम्भल के मुसलमानों को किया बदनाम
अवैध गिरफ्तारी विरोध दिवस पर रिहाई मंच ने की बैठक
लखनऊ 16 दिसम्बर 2016। रिहाई मंच ने कहा है कि अगर अखिलेश सरकार ने आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाह मुस्लिम नौजवानों को छोड़ने का वादा पूरा किया होता तो आज के ही दिन 2007 में पकड़े गए खालिद मुजाहिद आज जिंदा होते।
मंच ने सपा पर इस वादे से मुकरने का आरोप लगाते हुए कहा है कि चुनाव में उसे इसका भारी खामियाजा भुगतने के लिए तैयार रहना चाहिए।
रिहाई मंच हर साल 16 दिसम्बर को अवैध गिरफ्तारी विरोध दिवस के बतौर मनाता है।
रिहाई मंच कार्यालय पर हुई बैठक में मंच के अध्यक्ष एडवोकेट मोहम्मद शुऐब ने कहा कि 16 दिसम्बर 2007 को खालिद मुजाहिद को उनके मड़ियाहू, जौनपुर स्थित घर से सटे बाजार में मुन्नू चाट भंडार से सैकड़ों लोगों के सामने से सादी वर्दी में बिना नम्बर प्लेट की गाड़ी से लोगों ने अगवा कर लिया था। जिसके खिलाफ स्थानीय लोगों ने धरने प्रदर्शन भी किए थे और पुलिस ने उनसे 24 घंटे के अंदर खालिद को ढूंढ लाने और अपहरणकर्ताओं को पकड़ लेने का वादा भी किया था। लेकिन पुलिस के अपने वादे से मुकरने के कारण तेज हुए जनआंदोलन के बीच ही 23 दिसम्बर 2007 को एसटीएफ ने बाराबंकी रेलवे स्टेशन के बाहर से खालिद मुजाहिद को, इसी तरह आजमगढ़ से उठाए गए तारिक कासमी के साथ आतंकी बता कर फर्जी गिरफ्तारी दिखा दी थी।
तारिक कासमी और खालिद मुजाहिद के वकील रहे मो. शुऐब ने कहा कि इन फर्जी गिरफ्तारियों पर उठ रहे सवालों के दबाव में तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने इस पर निमेष आयोग गठित कर दिया। जिसे अपनी रिपोर्ट 6 महीने में देनी थी। लेकिन मायावती सरकार ने अपनी पुलिस और एसटीएफ अधिकारियों को इस मुस्लिम विरोधी कार्रवाई में फंसते देख आयोग को छह महीने तक बैठने के लिए कोई जगह ही नहीं दी और ना ही स्टाफ दिया।
रिहाई मंच अध्यक्ष ने बताया कि मुलायम सिंह और सपा के अन्य नेताओं ने मुसलमानों के इस गुस्से का राजनीतिक लाभ लेने के लिए आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाह मुस्लिम युवकों को छोड़ने और अदालत से रिहा हो चुके युवकों के पुनर्वास और मुआवजे का वादा अपने चुनावी घोषणापत्र में किया। जिसके कारण मुसलमानों ने सपा को वोट देकर सत्ता तक पहुंचा दिया। लेकिन अखिलेश सरकार ने इस वादे को पूरा करने के बजाए ना सिर्फ निमेष कमीशन की रिपोर्ट को दबाए रखा, जिसने खालिद और तारिक की गिरफ्तारी को फर्जी बताते हुए इसमें शामिल अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की थी, बल्कि खालिद मुजाहिद की हिरासती हत्या भी करवा दी।
उन्होंने आरोप लगाया कि सपा सरकार ने साम्प्रदायिक पुलिस और खुफिया अधिकारियों को बचाने के लिए ही खालिद मुजाहिद की हत्या के नामजद आरोपियों तत्कालीन पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह, पूर्व एडीजी बृजलाल समेत 42 अधिकारियों से पूछताछ तक नहीं की।
इस अवसर पर रिहाई मंच प्रवक्ता शाहनवाज आलम ने आरोप लगाया कि मुसलमानों की आतंकी छवि बनाने में सपा, बसपा, कांग्रेस और भाजपा में आम सहमति है। इसीलिए सरकार बसपा की हो या सपा की मुसलमानों के वोट से सरकार बनाने के बावजूद इनके कार्यकाल में पुलिस और एटीएस अधिकारी दुनिया के सबसे बड़े आंतकी देश इजराईल ट्रेनिंग के लिए भेजे जाते हैं।
शाहनवाज आलम ने कहा कि सपा और बसपा की इसी साम्प्रदायिक नीति के कारण इनकी सरकारों में दर्जनों मुस्लिम युवकों को आतंकी बता कर फंसाया और जेलों में सड़ाया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि जिस तरह कांग्रेस की यूपीए सरकार ने मायावती के साथ मिलकर आजमगढ़ को बदनाम किया उसी तरह मोदी सरकार से मिलकर अखिलेश यादव ने सम्भल को बदनाम किया है।
शकील कुरैशी ने कहा कि सपा की इसी नीति के तहत सम्भल से जफर मसूद और आसिफ को अलकायदा के नाम पर फंसाया गया है।
उन्होंने कहा कि इससे शर्मनाम क्या हो सकता है कि मुसलमानों के वोट से बनी सपा और बसपा की कथित सेक्यूलर सरकारों में बेगुनाहों के वकील मो. शुऐब को अदालत परिसर में पीटा जाता है और खालिद मुजाहिद की हिरासती हत्या के बाद रिहाई मंच को 121 दिनों तक धरने पर बैठना पड़ता है।
बैठक में अनिल यादव, हरेराम मिश्र, अनिल यादव, शरद जायसवाल, लक्ष्मण प्रसाद, रॉबिन वर्मा आदि मौजूद थे।


