डॉ कविता अरोरा के काव्य संग्रह "चाँद का शरगा" की समीक्षा

आधुनिक काल की छंद और अलंकार से आजाद कविताएं अपने ख्यालात और जज्बात को पेश करने का खूबसूरत जरिया हैं। आदमी जब खुद से प्रेम कर बैठता है उसके हृदय में सुखद कल्पनाएं जन्म लेने लगती हैं उस समय एकत्रित समस्त भावनाएं विचार और संवेदनाएं अपनी संपूर्णता में अभिव्यक्त होती है। कवयित्री कविता अरोड़ा जी की कविताओं का संग्रह कुछ ऐसी ही अभिव्यक्ति का संग्रह है "चांद का शरगा"।

लोक के विविध रंगों से सराबोर प्रतिष्ठित लोक गायिका कविता अरोरा जी लोक जीवन की खूबियों से बारीकी से वाकिफ हैं। इसलिए इनकी रचनाधर्मिता जीवनानुभवों से सराबोर हैं।

पहली कविता (चाँद चुरा लूँ) की पंक्तियां देखिए इन्होंने कैसे मन के अल्फाजों को बिंबात्मक रूप दिया है।

तस्व्वुर के पार

पेन्सिल की सुरमई धार

से बांधकर

जरा से

अल्फाज उछालूं

तो फलक का

चांद चुरा लूँ।

और बड़े ही शायराना अंदाज में कवयित्री कहती हैं मुझसे हरगिज़ ना पूछना मेरी उम्र का, उम्र आज भी उसी कच्ची दहलीज पर खड़ी तकती हैं। इसलिए तो इसी क्रम को जोड़ते हुए एक सहज सरल भाषा में बड़ी निश्छलता से कह दिया।

छतों से लगी छतों के

एक पहचाने छज्जे से

उड़ा करती है एक पतंग

मेरे नाम की।

लोक रंग में रमी कवयित्री की रचनाओं में लोक की विविधताओं की झलक समाहित हैं।

प्रकृति प्रेम उनकी रूह में रचा बसा है। काव्य संग्रह की बहुत सी कविताएं मौसम की तितलियां, बसंत, नूर की बूंदें, छापे, इमली का चांद, मुझे बादल बुलाता है, तालाब, तन्हा चांद, चांद का शरगा, चांद की कविता, फूल फूल मौसम आदि रचनाओं में उनकी संवेदना पाठक को सोचने पर मजबूर ही नहीं करतीं, बल्कि सशक्त संदेश देती हैं। कविताओं में चिंतन और विचारों को सहज सरल रूप में उभारा गया है। पाठक के हृदय पर सहजता से प्रभाव छोड़ सकने में सक्षम हैं। यह एक अच्छा कविता संग्रह है।

कवयित्री कविता अरोरा जी को हार्दिक बधाई

संतोषी देवी

शाहपुरा जयपुर राजस्थान।