सौदागरों के वास्ते बिछ गया दस्तरख़ान
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जो कफ़स से नजर आये उसका उतना जहान
बंद परिंदा क्या जाने कितना बडा आसमान

खुले आम सजाये बैठे हैं जुमलों की महफ़िल
हम हकीकत जानते अब क्या सुनाएँ दास्तान

सियासत में मज़हब की इनकी मिलावट देखिये
अमन चैन सब छीन रहे इनका यही ईमान

जमीं आबो हवा की नापाक तिजारत चल रही
ज़ालिम सौदागर आ रहे बिछ गया दस्तरख़ान

मुल्क का सरमाया बना चंद हाथों की लकीरे
नये पुराने ठेकेदार समझे इसे बाप की दुकान

अजब अज़ीम अर्ज़मंद है इस वतन का बाशिंदा
इन्तख़ाब में झट पलट देता तख़्त ए हिंदुस्तान
कफ़स-पिंजरा / जमीं-जमीन / आबो- पानी / तिजारत-व्यापार / दस्तरख़ान - खाना खाने की बिछी जाज़म / सरमाया-संपदा / अज़ीम-ऊंची मर्यादा / अर्ज़मंद-महान / इन्तख़ाब-चुनाव
// जसबीर चावला //

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