खोदो खोदो, और खोदो....
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नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए ऐतिहासिक फैसले में कोयला ब्लॉक आवंटन को अवैध करार दिए जाने के बाद कहीं खुशी कहीं ग़म का माहौल है।
आल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के चेयरमैन शैलेन्द्र दुबे ने ऊर्जा नीति के पुनरीक्षण हेतु प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय समिति गठित करने की मांग को जोरदार ढंग से उठाते हुए कहा है कि कोयला और बिजली के निजीकरण के नाम पर विगत दो दशकों से चल रही घोटालों की नीति में बदलाव न किया गया तो देश के बिजली इंजीनियर और कामगार आगामी शीतकालीन सत्र में लोकसभा पर विशाल प्रदर्शन करेंगे। उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कोयला ब्लॉक आवंटन अवैध करार किये जाने के बाद निजी घरानों द्वारा कोयला संकट और कोयला आयात की आड़ में बिडिंग के बाद बिजली की दरों में की गयी वृद्धि भी अवैध मानी जानी चाहिए अतः विगत दो दशक से चल रही नीति पर पुनर्विचार नितान्त ज़रूरी हो गया है।
श्री दुबे ने कहा कि वर्तमान बिजली संकट के दौर में निजी घरानों द्वारा कोयला संकट के नाम पर बिजली घरों को जानबूझकर बंद करना या काम क्षमता पर चलाना दरअसल ब्लैकमेलिंग है और बिडिंग के बाद बिजली दरों में वृद्धि कराने की साज़िश है। रिलायंस के सासन बिजली घर को पूरी क्षमता पर न चलाना इसी साज़िश का हिस्सा है क्योंकि बिडिंग के अनुसार उ प्र सहित अन्य प्रांतों को 70 पैसे प्रति यूनिट की दर पर बिजली मिलनी चाहिए जो निजी कंपनी नहीं देना चाहती है। उन्होंने कहा कि ऊर्जा नीति की निष्पक्ष समीक्षा में कोयला घोटाले से भी बड़े घोटाले सामने आएंगे। उन्होंने कहा कि देश की सभी निजी क्षेत्र की बिजली कंपनियों का सरकारी कंपनियों की तरह सीएजी ऑडिट कराया जाये तो बिजली निजीकरण का सच सामने आ जाएगा
फेडरेशन ने यह भी मांग की कि कोयला घोटाले से जुड़े सभी बिजली क्रय करारों पर जनहित में पुनर्विचार कर उच्च दरों के पी पी ए रद्द किये जाएँ ।
उधर कोल ब्लॉक आवंटन पर शीर्ष अदालत के सख्त फैसले के बाद पूर्व कोयला सचिव पी सी परख ने सफाई दी है। मनी कंट्रोल में प्रकाशित पी सी परख के वक्तव्य के मुताबिक 2010 तक कोल ब्लॉक आवंटन की कोई लीगल अथॉरिटी नहीं थी, इसलिए सर्वोच्च न्यायालय ने आवंटन की प्रक्रिया को अवैध बताया है।
पूर्व कोयला सचिव पी सी परख के मुताबिक अगर 1 सितंबर के फैसले में सर्वोच्च न्यायालय कोल ब्लॉक के सभी आवंटन रद्द करता है तो पॉवर और स्टील सेक्टर पर काफी खराब असर पड़ेगा। इससे इकोनॉमी, पावर सेक्टर और स्टील सेक्टर पर बुरा असर होगा। देश में कोई भी कोल माइन को शुरू करने में 8 से 10 साल लगते हैं और पिछले साल 174 मिलियन टन कोयला इंपोर्ट हुआ था जो जरूरत का 20 फीसदी है।
पी सी परख के मुताबिक अगर सारे कोल ब्लॉक रद्द कर दिये जाते हैं तो देश कोयला प्रोडक्शन में 6 साल पीछे चला जाएगा। इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय सोच समझ कर अच्छा ही निर्णय लेगा।
वहीं मनी कंट्रोल में ही प्रकाशित वक्तव्य में पूर्व पावर सचिव अनिल राजदान का कहना है कि कोल ब्लॉक आवंटन मामले में 1 सितंबर को आखिरी फैसला आने का अनुमान नहीं है। कोई भी फैसला लेने से पहले सर्वोच्च न्यायालय ये देखना चाहेगा कि अलग-अलग ब्लॉक में कितना काम हो चुका है। आगे चलकर कोल रेगुलेटर या किसी और अथॉरिटी को इस जांच की जिम्मेदारी दी जा सकती है। सर्वोच्च न्यायालय के कल के आदेश से स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड को काफी राहत मिली है।
इधर संभावना जताई जा रही है कि सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से महान कोल का भविष्य भी अंधकारपूर्ण हो सकता है। ग्रीनपीस ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि कोयला घोटाले की अवधि में हुए सभी आवंटन को रद्द कर देना जाना चाहिए।
ग्रीनपीस की कैंपेनर अरुंधती मत्थु ने कहा, “काफी समय से ग्रीनपीस कोयला खदान आवंटन में बरते गये अनियमिततओं पर सवाल उठाता रहा है। दुर्भाग्य से इन परियोजनाओं को देर से पर्यावरण मंजूरी मिलने पर इसे व्यवस्थागत बाधा माना गया लेकिन आज यह साबित हो गया कि इस देश में कोयला संकट भ्रष्टाचार और औद्योगिक नीतियों का नतीजा है”।
मत्थु ने कहा, सर्वोच्च न्यायालय ने स्क्रीनिंग कमिटी के द्वारा दिये गए सारे आवंटन को अवैध बताया है। सिंगरौली के महान कोल ब्लॉक को भी इसी अवधि में आवंटित किया गया था। महान कोल के मामले में भी कोयला मंत्रालय के स्क्रीनिंग कमिटि के मिनट्स और सीएजी कागजात बताते हैं कि महान का आवंटन एस्सार और हिंडाल्को को 1 मार्च 2005 में 27वें स्क्रीनिंग कमिटि बैठक में लिया गया, लेकिन आरटीआई से मिले कॉपी से पता चलता है कि एस्सार महान के पक्ष में नहीं था।
मुत्थु बताती हैं, “सिर्फ हिंडाल्कों महान के पक्ष में था। मध्यप्रदेश सरकार ने ऑन रिकॉर्ड कहा था कि यह खदान मध्यप्रदेश खनिज विकास कॉर्पोरेशन को दिया जाना चाहिए। हमारे पास उस बैठक की मिनट्स है। हमारे उस आरटीआई का जवाब नहीं दिया गया जिसमें हमने जानना चाहा कि आखिर क्यों मध्यप्रदेश सरकार ने एस्सार के पक्ष में अपने फैसले को बदला”।
उद्योगिक लोगों को फायदे पहुंचाने के लिए महान क्षेत्र के 54 गांव के 50 हजार से अधिक लोगों की जीविका को खत्म किया जा रहा है। मुत्थु ने कहा कि, “इन सबमें फायदा एस्सार और हिंडाल्कों को ही होगा। इसलिए जबतक आवंटन को लेकर कोई फैसला नहीं आ जाता हमें नये कोयला खदानों के आवंटन तथा उनके पर्यावरण मंजूरी पर तत्काल रोक लगाने की जरुरत है”।
युवा पत्रकार अभिषेक श्रीवास्तव ने चुटकी लेते हुए कहा है- मस्त है... पहले बीस साल में पूरे देश को खोद डालिए, लाखों लोगों को उजाड़ दीजिए, फिर कह दीजिए कि भाईजी ये सब गैर-कानूनी था। मतलब, जनता को पागल करने की पूरी स्थितियाँ बना दी गई हैं। खोदो खोदो, और खोदो....


