गजब : प्रदूषित शहरों की डब्ल्यूएचओ की सूची में भारत का सर्वाधिक प्रदूषित सिंगरौली क्षेत्र शामिल नहीं
गजब : प्रदूषित शहरों की डब्ल्यूएचओ की सूची में भारत का सर्वाधिक प्रदूषित सिंगरौली क्षेत्र शामिल नहीं
नई दिल्ली 9 मई। मध्य प्रदेश की सीमा से सटा उत्तर प्रदेश का सिंगरौली क्षेत्र भारत का पॉवर हब है और यहां कोयले से चलने वाले बिजलीघरों में रोजाना 22 गीगावॉट से ज्यादा बिजली का उत्पादन होता है। दिल्ली के दोगुने इलाके में फैला यह क्षेत्र भारत के सबसे पुराने और सर्वाधिक प्रदूषणकारी कोयला आधारित बिजली संयंत्रों को खुद में समेटे हुए है। इस क्षेत्र में हवा की गुणवत्ता नापने के लिये सिर्फ एक ऑनलाइन वायु गुणवत्ता मॉनीटरिंग स्टेशन ही स्थित है।
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विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा हाल में जारी शीर्ष 15 सर्वाधिक प्रदूषित शहरों की सूची में सिंगरौली और सोनभद्र जैसे इलाके शामिल नहीं हैं, जिनकी पहचान वर्ष 20091 में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) द्वारा देश के सबसे प्रदूषित क्षेत्रों के रूप में की गयी थी। वायु गुणवत्ता से जुड़ी इस सूची में वर्ष 2012 के आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया है, जो इस क्षेत्र की हवा की गुणवत्ता के सुरक्षित होने की तरफ इशारा करते हैं। हालांकि डब्ल्यूएचओ की रैंकिंग, मॉनीटरिंग डेटा की उपलब्धता पर आधारित है, मगर यह जानना महत्वपूर्ण है कि भारत में चिंताजनक रूप से प्रदूषित ऐसे 43 इलाके हैं जिनके बारे में कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल की तरफ से दबाव पड़ने की वजह से सिंगरौली क्षेत्र में पहला और एकमात्र ऑनलाइन निगरानी केन्द्र खोला गया है, जो आठ दिसम्बर 2017 से इस क्षेत्र की हवा की गुणवत्ता के बारे में जानकारी दे रहा है। सिंगरौली में वायु की गुणवत्ता2 की स्थिति इस प्रकार है :
| दिनों की संख्या | इंडेक्स वैल्यू पर आधारित वायु की गुणवत्ता |
| 65 | खराब |
| 25 | बहुत खराब |
| 1 | बेहद खराब |
क्लाइमेट ट्रेंड्स की अनुसंधानकर्ता ऐश्वर्या सुधीर ने कहा कि
“सिंगरौली में प्रदूषण फैलाने वाले प्रमुख तत्वों में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 और पीएम 103 शामिल हैं। इन दोनों का औसत स्तर पीएम 10 के लिये 250 और पीएम 2.5 के लिये 150 है। यह सिंगरौली में भारी पैमाने पर कोयला जलाने वाले बिजली संयंत्रों की देन है। पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने उच्चतम न्यायालय से बिजली संयंत्रों में प्रदूषण नियंत्रण सम्बन्धी नियमों को लागू करने के लिये और मोहलत मांगी है। अगर इन बिजली संयंत्रों से निकलने वाले जहरीले तत्वों को रोकने में पांच और साल लगे तो हर गुजरते दिन के साथ यहां रहने वाले ग्रामीणों के जीवन की गुणवत्ता गिरती जाएगी और उनकी जिंदगी कम होती जाएगी। साथ ही इससे प्रदूषण फैलाने वालों को बच निकलने का मौका भी मिल जाएगा।”
सिंगरौली क्षेत्र के 269 गांव प्रदूषण से प्रभावित हैं और इस क्षेत्र में 13 से ज्यादा कोयला आधारित बिजली संयंत्र चल रहे हैं जो हवा के साथ-साथ यहां के पानी में भी प्रदूषणकारी तत्व घोल रहे हैं। नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल (एनजीटी) ने सिंगरौली क्षेत्र को देश के सबसे जहरीले और प्रदूषित क्षेत्र के रूप में पहचाना है। उद्योगों से निकले प्रदूषणकारी तत्वों के कारण होने वाली भारी धात्विक अशुद्धियां यहां रहने वाले लोगों की सेहत खराब कर रही हैं। हाल के वर्षों में जिले के विभिन्न गांवों में मरकरी, फ्लूराइड, आर्सेनिक और सीसे की मौजूदगी का पता लगा है।4
सिंगरौली में प्रदूषण को लेकर एनजीटी में याचिका दाखिल करने वाले जगत नारायण विश्वकर्मा ने कहा कि
“नेशनल क्लीन एयर प्लान को बनाने में शहरों से इतर प्रदूषण की समस्या से निपटने पर जोर नहीं दिया गया है। यह सिंगरौली के लोगों के लिये गहरी निराशा का विषय है। प्रदूषण की स्थिति को लेकर हम इसलिये अंधेरे में रहते हैं क्योंकि हमारे पास कोई ऑनलाइन मॉनीटरिंग डेटा उपलब्ध नहीं होता, जिससे यह पता लगे कि हम किस स्तर के संकट के सामने खड़े हैं। बिजली संयंत्रों से रिसने वाला जहर हमारे बच्चों को दिन प्रतिदिन बीमार बना रहा है। हमारे घर की छतें राख से धूसरित हैं और हमारी नदियों का पानी दो रंगों का हो चुका है। हर तरफ राख है और नेशनल क्लीन एयर प्लान में इनमें से किसी भी मुद्दे पर ध्यान नहीं दिया गया है, क्योंकि हम दिल्ली या नोएडा में नहीं रहते।”
प्रदूषण के कारण ग्रामीणों के जीवन पर गम्भीर खतरा होने के बावजूद सरकार या उद्योग जगत इस समस्या को खत्म करने की दिशा में बहुत कम या फिर बिल्कुल भी काम नहीं कर रहे हैं। सिंगरौली के ज्यादातर गांव बिजली संयत्रों से निकलने वाले प्रदूषणकारी तत्वों के ढेर से उत्पन्न जहर से बुरी तरह घिरे हैं। ग्रामीणों के घर और उनके खेत बिजली संयंत्रों से निकलने वाली राख की मोटी चादर से ढके हुए हैं। दिल्ली के विपरीत, इस क्षेत्र के गांवों के बच्चों के पास दम घोंटू हवा में सांस लेने के अलावा और कोई चारा नहीं है, क्योंकि उनकी कक्षाएं कोयले की धूल से दूषित हैं और उनकी गलियां राख से सनी हुई हैं।
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पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने वर्ष 2009 में सिंगरौली को चिंताजनक रूप से प्रदूषित क्षेत्र घोषित किया था लेकिन यहां वायु की गुणवत्ता के स्तर को जनता के सामने रखने की कोई व्यवस्था नहीं है और न ही नागरिक किसी सुरक्षा उपाय के बारे में जानते हैं, जो उन्हें अपनाने चाहिये। मंत्रालय ने वर्ष 2015 में कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों के लिये प्रदूषण नियंत्रण सम्बन्धी नये नियम अधिसूचित किये थे, जिन्हें 7 दिसम्बर 2017 से लागू किया जाना था। इनके अनुपालन का मतलब यह था कि मौजूदा बिजली संयंत्रों का संवर्द्धन एवं उन्नयन किया जाएगा। साथ ही नये बनने वाले बिजली संयंत्रों में इनका अनुपालन सुनिश्चित किया जाएगा। हालांकि अभी तक इस दिशा में कोई प्रगति नहीं हुई है। मंत्रालय ने अब इन प्रदूषण नियंत्रण नियमों को लागू करने की अंतिम तिथि वर्ष 2022 तक बढ़ाने को कहा है। थर्मल पॉवर प्लांट्स भारत में प्रदूषण के सबसे बड़े स्रोतों में शामिल हैं और गंगा के मैदानों में हर साल एक लाख 15 हजार लोग5 इस जानलेवा प्रदूषण की चपेट में आकर अकाल मौत का शिकार बन रहे हैं।
(विज्ञप्ति)


