श्रीनिवास रामानुजन : भारतीय गणित परंपरा का चमकता सितारा

गणित दिवस, 22 दिसंबर पर विशेष फीचर

Special feature on Mathematics Day, 22 December

National Mathematics day 2020:जानें श्रीनिवास रामानुजन के बारे में खास बातें

नई दिल्ली, 22 दिसंबर: गणितीय आधार के बिना आकाश में उड़ान भरने से लेकर समुद्र की गहराई नापने, भौगोलिक पैमाइश करने या फिर चाँद और मंगल की सतह तक पहुँचने का स्वप्न साकार करना मुश्किल था। संख्याओं पर आधारित खोजों एवं विकास की बात होती है, तो भारत की गणितीय परंपरा (Mathematical tradition of india) को शीर्ष पर रखा जाता है। भारत में हुई ‘शून्य’ एवं ‘दशमलव’ जैसी मूलभूत गणितीय खोजें इसका प्रमुख कारण मानी जाती हैं। इन मूलभूत खोजों ने गणित को ऐसा आधार प्रदान किया है, जिसके आधार पर सभ्यताओं के विकास का क्रम निरंतर आगे बढ़ रहा है। ऐसे में, भारतीय गणितज्ञों के योगदान को उत्सव के रूप में मनाया जाता है, तो यह सर्वथा उपयुक्त है।

गणित दिवस कब आता है

विश्व प्रसिद्ध भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवासन रामानुजन की याद में हर साल 22 दिसंबर को मनाया जाने वाला राष्ट्रीय गणित दिवस ऐसा ही एक उत्सव है, जो हमें भारतीय गणित की समृद्ध परंपरा का स्मरण कराता है, उस पर गौरान्वित होने का अवसर देता है। भारत के महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन की 125वीं वर्षगांठ के मौके पर उनको श्रद्धांजलि देते हुए वर्ष 2012 को राष्ट्रीय गणित वर्ष घोषित किया गया था। इसके साथ ही, श्रीनिवास रामानुजन के जन्मदिन 22 दिसंबर को राष्ट्रीय गणित दिवस के रूप में मनाए जाने की घोषणा भी की गई थी।

आज दुनिया श्रीनिवास रामानुजन के सैकड़ों गणितीय सिद्धांतों को देखकर हतप्रभ होती है। उनमें से कई सिद्धांत तो ऐसे हैं, जिन्हें अभी तक समझा तक नहीं जा सका है। यह सुनकर कोई भी हतप्रभ हो सकता है कि दक्षिण भारत के कुम्भकोणम नामक छोटे-से कस्बे में अध्ययन करने वाला यह गणितज्ञ अपने विश्वविद्यालय की परीक्षा में असफल हो गया था। यह भी कम चौंकाने वाला तथ्य नहीं है कि महज 32 साल की उम्र में दुनिया से कूच कर जाने वाले विलक्षण प्रतिभा का धनी यह महान गणितज्ञ, गणित की गुत्थियों की एक ऐसी विरासत पीछे छोड़ गया, जिसे लंबे समय तक दुनिया के प्रतिभाशाली मस्तिष्क समझ नहीं सके।

हैरत भरी घटनाएं रामानुजन की जिंदगी के साथ हमेशा चलती रही हैं। कुम्भकोणम के एक मित्र के.एस. श्रीनिवासन की चेन्नई में अचानक रामानुजन से मुलाकात हुई तो उन्होंने गंभीरता से कहा- "रामानुजन, लोग तुम्हें जीनियस कहते हैं।" रामानुजन ने अपनी कोहनी दिखाते हुए पलटकर पूछा- "क्या! जरा मेरी कोहनी तो देखो, यही तुम्हें सच्ची कहानी बता सकती है।"

ध्यान से देखने पर श्रीनिवासन ने पाया कि रामानुजन की कोहनी की चमड़ी काली और मोटी हो गई थी। पूछने पर रामानुजन ने बताया कि "दिन-रात मैं स्लेट पर गणनाएं करता हूँ, और हर क्षण लिखकर मिटाना पड़ता है, जिसके लिए कपड़े के टुकड़े का उपयोग करने से समय अधिक खर्च होता है। इसलिए, मैं अपनी कोहनी का उपयोग मिटाने के लिए करता हूँ। मेरी कोहनी ही मुझे जीनियस बना रही है।"

मद्रास पोर्ट में मामूली क्लर्क का काम करने वाले रामानुजन वर्ष 1913 में कैम्ब्रिज में मशहूर गणितज्ञ प्रोफेसर जी.एच. हार्डी को पत्र लिखते हैं, और अपने शोध का नमूना भेजते हैं। रामानुजन की प्रतिभा से चमत्कृत होकर प्रोफेसर हार्डी उन्हें अपने साथ काम करने के लिए कैम्ब्रिज बुलाते हैं। कुछ समय बाद उन्हें रॉयल सोसायटी और ट्रिनीटी कॉलेज कैम्ब्रिज का फेलो चुना जाता है। उनका जीवनकाल छोटा था, पर उन्होंने उपलब्धियों की एक लंबी लकीर खींच दी।

रामानुजन को "गणितज्ञों का गणितज्ञ" और 'संख्याओं का जादूगर' कहा जाता है। उन्हें यह संज्ञा ‘संख्या-सिद्धान्त’ पर उनके योगदान के लिए दी जाती है। रामानुजन की प्रतिभा का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उनके निधन के बाद उनकी 5000 से अधिक प्रमेय (थ्योरम) छपवाई गईं। इन गणितीय प्रमेयों में अधिकतर ऐसी थीं, जिन्हें कई दशक बाद तक सुलझाया नहीं जा सका। गणित के क्षेत्र में की गई रामानुजन की खोजें आधुनिक गणित और विज्ञान की बुनियाद बनकर उभरी हैं। सही अर्थों में वह भारत की गौरवशाली गणितीय परंपरा के वाहक थे।

उमाशंकर मिश्र

(इंडिया साइंस वायर)



श्रीनिवास रामानुजन का जीवन परिचय हिंदी में |श्रीनिवास रामानुजन का जीवन परिचय इन हिंदी.