जाबिर हुसेन की कथा-डायरी : एक सुखद साहित्यिक घटना

'ये शहर लगै मोहे बन' बहचुर्चित साहित्यकार जाबिर हुसेन की लंबी कथा-डायरी है। जाबिर हुसेन की कथा-डायरी का प्रकाशन एक सुखद साहित्यिक घटना की तरह है। जाबिर हुसेन की कथा-डायरी-परम्परा में 'ये शहर लगै मोहे बन' एक असाधारण बदलाव लाती दिखाई देती है। इस कथा-डायरी में जो कुछ भी उद्घाटित हुआ है, विलक्षण है, अद्भुत है, रहस्य-रोमांच से भरा है। इस कथा-डायरी में जो सामाजिक जीवन उभरकर सामने आया है, अवतरित हुआ है, वह वैविध्य है और व्यापक भी। इस कथा-डायरी के माध्यम से जाबिर हुसेन अपनी एक नई तहरीर, एक नई भाषा के साथ विश्व-साहित्य को समृद्ध और विस्तीर्ण करते दिखाई देते हैं।

जाबिर हुसेन की कथा-डायरी में बाईस क़िस्तें हैं

इस कथा-डायरी में बाईस क़िस्तें हैं और सारी क़िस्तें अपने पाठ के समय यह एहसास दिलाती हैं कि पाठक एक ऐसे धारावाहिक से गुज़र रहा हैं, जो उसे निरन्तर बाँधे रखता है। इस कथा-डायरी में जो सबसे ख़ास है, वह यह कि इसमें जो अनुभूतियाँ हैं, इसका जो विस्तृत संसार है, इसका जो यथार्थ है बेहद सर्जनात्मक है और पाठकों को उस तहज़ीब से, उस संस्कृति से यह किताब जोड़ती है, जो लेखक का अपना अतीत रहा है।

मेरे विचार से, दिल को छू लेने वाली इस लंबी कथा-डायरी-पुस्तक 'ये शहर लगै मोहे बन' से पाठकों कों ज़रूर रू-ब-रू होना चाहिए।

'ये शहर लगै मोहे बन' ( प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन, 1-बी, नेताजी सुभाष मार्ग, दरियागंज, नई दिल्ली-११०००२/ पहला संस्करण : 2014/ मूल्य : ₹300)

शहंशाह आलम, लेखक प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़े हुए हैं।