फ़लस्तीनी शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र एजेंसी (United Nations Agency for Palestine Refugees) - UNRWA के प्रमुख ने चेतावनी भरी शब्दों में कहा है कि कुछ ग़ाज़ावासी, भोजन के अभाव में इतने हताश हैं कि वे अब सहायता ट्रकों को रोक रहे हैं और उन ट्रकों में उन्हें जो भी कुछ खाने लायक मिलता है उसे तुरन्त खा रहे हैं.

नई दिल्ली, 15 दिसंबर 2023. The United Nations Relief and Works Agency for Palestine Refugees (UNRWA) के कमिश्नर-जनरल फ़िलिपे लज़ारिनी (UNRWA COMMISSIONER-GENERAL PHILIPPE LAZZARINI) ने ग़ाज़ा के रफ़ाह गवर्नरेट से लौटकर, जिनीवा में पत्रकारों को जानकारी देते हुए बताया कि 7 अक्टूबर को इसराइल के दक्षिणी इलाक़े में, हमास आतंकी हमलों के जवाब में, इसराइली सैन्य बमबारी शुरू होने के 69 दिन बाद, लोग "हताशा, भूखे और भयभीत" हैं.

ग़ाज़ावासियों के इतिहास में अभूतपूर्व भूख

संयुक्त राष्ट्र समाचार के मुताबिक संयुक्त राष्ट्र के अनुभवी मानवीय सहायता पदाधिकारी फ़िलिपे लज़ारिनी ने बताया कि भूख एक ऐसी चीज़ है जिसे ग़ाज़ावासियों ने अपने व्यथित इतिहास में "कभी भी अनुभव नहीं किया है".

"मैंने अपनी आँखों से देखा कि रफ़ाह में लोगों ने व्यापक निराशा व हताशा के हालात में, ट्रकों से सीधे अपनी मदद करने का निर्णय लेना शुरू कर दिया है और जो कुछ उन्हें ट्रकों में मिल रहा है, वो लोग उसी वहीं खा रहे हैं...इस परिस्थिति का सहायता सामग्री के किन्हीं ग़लत हाथों में पहुँचने के आरोपों से कोई लेना-देना नहीं है.”

UNRWA चीफ ने ज़ोर देकर कहा कि ग़ाज़ा पट्टी में, मानवीय राहत (Humanitarian relief in Gaza Strip) की महत्वपूर्ण वृद्धि से ही वहाँ, पहले से ही जारी गम्भीर मानवीय स्थिति को और बदतर होने से बचाने - और अन्तरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा उनके साथ विश्वासघात किए जाने और उनका परित्याग किया जाने की भावना गहरी होने से बचाने में मदद मिलेगी.

उन्होंने इसराइल के भीतर से, केरेम शालोम सीमा चौकी को फिर से खोलने का आहवान किया था, ताकि वहाँ से वाणिज्यिक वाहन ग़ाज़ा में दाख़िल हो सकें. उन्होंने साथ ही, इसराइल से ग़ाज़ा की "घेराबन्दी" को हटाने का भी आग्रह किया.

रफ़ाह गवर्नरेट बन गया अब विस्थापन का केन्द्र

फ़िलिपे लज़ारिनी ने बताया कि मिस्र की सीमा के पास रफ़ाह गवर्नरेट अब "विस्थापन का केन्द्र" बन गया है और वहाँ, दस लाख से अधिक लोग आश्रय की लिए हुए हैं.

UNRWA के आश्रय स्थलों में अत्यधिक भीड़ है, जिसका अर्थ है कि अनगिनत लाखों लोगों के पास "अन्यत्र जाने के लिए कोई भी जगह नहीं बची है".

उन्होंने कहा, “वो लोग भाग्यशाली हैं जिन्हें इस एजेंसी के परिसर के अन्दर आश्रय के लिए जगह मिल गई है.”

इन आश्रय स्थलों से अन्यत्र रहने वाले लोगों को, कड़ी सर्दी के मौसम में, "कीचड़ में और बारिश" के हालात में खुले स्थानों में ही रहने को विवश होना पड़ेगा, .

भुला दिए जाने का डर

फ़िलिपे लज़ारिनी ने कहा कि ग़ाज़ा में लोगों का मानना है कि उनका जीवन "दूसरों के जीवन के बराबर नहीं है" और उन्हें लगता है कि "मानवाधिकार, अन्तरराष्ट्रीय मानवतावादी क़ानून उनके लिए नहीं हैं".

अमानवीयकरण का लगातार बढ़ रहा स्तर

उन्होंने कहा कि ग़ाज़ा पट्टी में प्रचलित अलगाव की भावना पर प्रकाश डाला, और ज़ोर देते हुए कहा कि वहाँ के लोग "केवल सुरक्षा और स्थिरता चाहते हैं", एक सामान्य जीवन की कामना करते हैं, जिससे वे "अभी बहुत दूर हैं".

यूएन एजेंसी के प्रमुख ने कहा, "जो बात मुझे लगातार परेशान कर रही है, वह है अमानवीयकरण का लगातार बढ़ता स्तर",

उन्होंने इस तथ्य की निन्दा कुछ लोग "इस युद्ध में हो रही ग़लतियों पर ख़ुशियाँ मना सकते हैं... ग़ाज़ा में जो हो रहा है उससे हर किसी को क्रोधित होना चाहिए," और हम सभी को "अपने मूल्यों पर पुनर्विचार करने के लिए बाध्य करना चाहिए".

"यह हम सभी और हमारी साझा मानवता के लिए, बनाने या बिखेर देने का क्षण है."

बदनामी अभियान

फ़िलिपे लज़ारिनी ने कहा, "मैं फ़लस्तीनी जन और उन्हें सहायता प्रदान करने वालों को निशाना बनाने वाले बदनामी अभियान से भयभीत हूँ".

उन्होंने मीडिया से आग्रह किया कि "ग़लत सूचना और अशुद्धियों को दूर करने में हमारी मदद करें" और इस बात पर ज़ोर दिया कि तथ्य-जाँच महत्वपूर्ण है.

उन्होंने कहा, “पीड़ा में कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है. अन्ततः इस युद्ध में कोई भी पक्ष विजेता नहीं होगा, यह युद्ध जितना लम्बा चलेगा, हानि उतनी ही अधिक होगी और दुःख भी उतना ही गहरा होगा.”

यूएन सहायता एजेंसी के प्रमुख ने कहा, “75 वर्षों से बिना समाधान के, इतने लम्बे समय से चले आ रहे, अनसुलझे राजनैतिक संघर्ष को, सदैव के लिए समाप्त करने के लिए एक उचित, वास्तविक राजनैतिक प्रक्रिया के अलावा, अन्य कोई विकल्प नहीं है. अब समय आ गया है कि इसे प्राथमिकता दी जाए. क्षेत्र को जिस चीज़ की ज़रूरत है वो – शान्ति व स्थिरता."

Gazans 'desperate, hungry, scared', desperate for food, relying on aid trucks