गाँधी-नेहरू परिवार और संघ परिवार की महिमा अपरम्पार
गाँधी-नेहरू परिवार और संघ परिवार की महिमा अपरम्पार
गोपाल राठी
देश के दो प्रमुख दल काँग्रेस और भारतीय जनता पार्टी दो परिवारों द्वारा संचालित किये जाते हैं। एक गाँधी- नेहरू परिवार द्वारा और दूसरा संघ परिवार द्वारा। सत्ता के सारे सूत्र इन परिवारों के हाथ में होते हैं। यह दोनों दल लोकतन्त्र की दुहाई देते हैं पर इनमें परिवार की सहमति के बिना पत्ता भी नहीं हिलता। इन परिवारों को आलाकमान नाम से भी जाना जाता है। सत्ता में शीर्ष पदों पर और संगठन के शीर्ष पदों पर विराजमान नेता इन परिवारों की कठपुतली मात्र हैं, जिनकी डोर परिवार के मुखिया के हाथ में होती है। संगठन की कार्यकारिणी का विस्तार हो या मन्त्रिमण्डल में फेरबदल इन परिवारों की सहमति के बिना सम्भव नहीं है।
गाँधी नेहरू परिवार के बच्चों की दाढ़ी मूँछ उगने के पहले ही भाई लोगों को उसमें नेतृत्व क्षमता नजर आने लगती है और वे समवेत स्वर में उसको अपनी नकेल देने की माँग करने लगते हैं।
परिवार का मुखिया अगर समाजवाद कहे तो सारे समाजवाद - समाजवाद नाचने लगते हैं और पूँजीवाद कहे तो पूँजीवाद - पूँजीवाद कह कर ठहाका लगाने लगते हैं। इस परिवार के लोग किसी वाद विवाद में नहीं पड़ते।
दोनों दलों के लोग अपने आपको गाँधी नेहरू परिवार का सेवक या संघ परिवार का सच्चा स्वयंसेवक बताकर अपना महत्व बताते रहते हैं। जो गाँधी नेहरू परिवार की नजरों से उतर गया वह बुढ़ापे में अर्जुनसिंह की गति को और जो संघ परिवार की नजरों से उतर गया वह बुढ़ापे में आडवानी जी की गति को प्राप्त होता है। इन परिवारों को लोकतान्त्रिक तरीके से की जाने वाली आलोचना भी पसन्द नहीं है। गाँधी नेहरू परिवार के लोग पार्टी के भीतर सम्मेलनों, बैठको में हुडदंग लीला, मारपीट, छीनाझपटी करके अपने पराक्रम को दिखाते रहते हैं, जबकि संघ परिवार दंगा भड़काने और अफवाह फ़ैलाने में माहिर माना जाता है।
आज़ादी के बाद हुये सारे सांप्रदायिक दंगों में संघ परिवार के शामिल होने के आरोप लगते रहे हैं। इन आरोपों को संघ परिवार के लोग अपनी प्रशंसा मानते हैं। संघ परिवार के लोग समय-समय पर लोगों को हाफ पैंट पहनाकर जुलूस निकालते हैं। जिसे इनकी भाषा में पथ संचलन कहा जाता है। इसमें शामिल औसत बुद्धि के हाफ पैंट वालों को बौद्धिक खुराक के जरिये यह बताया जाता है कि सच्चे देश भक्त तुम्हीं हो, बाकी सब देशद्रोही हैं। ये बेचारे ज़िन्दगी भर यही मानते हुये अपना धंधा, व्यापार, ठेका खदान, दुकान और राशन दुकान चलाते हुये देशभक्ति का भार ढोते रहते हैं। संघ परिवार पाश्चात्य संस्कृति से नफरत करता है पर अधिकाँश लोगों के घर में बच्चों के जन्मदिन पाश्चात्य तरीके से मनाये जाते हैं। संघ परिवार की एक साध्वी ने तो हनुमान जी के जन्मदिन पर केक काटकर प्रसाद बाँट दिया था।
गाँधी नेहरू परिवार का वोट बैंक मुसलमान है। संघ परिवार का वोट बैंक हिन्दू है। दोनों परिवार हिन्दुओं और मुसलमानों को मूर्ख बनाकर, भरमाकर अपना खेल खेलते रहते हैं।
एक परिवार के पीछे छद्म धर्मनिरपेक्षता का तो दूसरे पर छद्म राष्ट्रवाद का पुछल्ला लगा हुआ है।
इन दोनों परिवारों में से एक गाँधी नेहरू परिवार की खासियत यह है कि वह तथाकथित लोकतान्त्रिक तरीके से चुनाव लड़कर, जीतकर - हारकर जनता के सामने आता है। जबकि दूसरा संघ परिवार अपने आपको अराजनैतिक कहकर समूची राजनीति पर नियन्त्रण करता है।
इन परिवारों के बिना भारतीय राजनीति की कल्पना करने की कोशिश कीजिये ....।


