गांधी जी ने लिखा "करेंगे या मरेंगे", उसे "करो या मरो" बनाकर गलत भावना फैलाई जा रही है। करो या मरो दूसरों के लिए है जबकि करेंगे या मरेंगे में स्वयं भी शामिल होते हैं। दुर्भाग्यपूर्ण है कि सर्व सेवा संघ की पत्रिका सर्वोदय जगत के कवर पर भी करो या मरो ही छपा है।

दुख है कि गांधी शांति प्रतिष्ठान की पत्रिका गांधी मार्ग भी करो या मरो का प्रचार कर रही है। सही संदेश जनता के बीच जाना चाहिए, अपनी इच्छा का अनुवाद नहीं। क्या हो गया है इन संस्थाओं को। गांधी के लिखें को भी मिटाना या बदलना चाहते है। अनेक जगह गांधी जी के हस्ताक्षर सहित करेंगे या मरेंगे लिखा हुआ उपलब्ध है

एक सरकार ने जब गांधी वांग्मय में बदलाव किया तो इन संस्थाओं ने आवाज बुलंद कर बदलाव करवाया। अब स्वयं कठघरे में खड़े हैं। हिम्मत के साथ गलती मानते हुए , सुधार करना चाहिए और भविष्य में और अधिक सावधानी सतर्कता बरतनी चाहिए।

रमेश चंद शर्मा, बा बापू 150