भंवर मेघवंशी
राजस्थान समग्र सेवा संघ गाँधी विचार की एक संस्था है जिसका गठन 60 के दशक में हुआ था, इसका उदेश्य गांधीवादी विचारों को जन जन तक फैलाना रहा है, नशा मुक्ति, भूदान- ग्रामदान तथा सम्पूर्ण क्रांति आन्दोलन में समग्र सेवा संघ का योगदान किसी से छिपा हुआ नहीं है। जयपुर के दुर्गापुरा इलाके में राजस्थान समग्र सेवा संघ का कार्यालय है तथा यहीं राजस्थान के गाँधी माने जाने वाले गोकुल भाई भट्ट की समाधि भी स्थित है। इस स्थान से राजस्थान के तमाम जन संगठन भली भांति परिचित हैं, क्योंकि विगत 30 वर्षों से यह गरीब, दलित, आदिवासी, महिलाओं, अल्पसंख्यकों सहित तमाम हाशिये के तबकों के लिए एक संघर्ष और शरणस्थली बना हुआ था। पूरे राज्य के वंचित और पीड़ित जन समग्र सेवा संघ को अपना ठिकाना मान कर जयपुर आते थे और अन्याय तथा अत्याचारों के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद करते थे। संभवतः सरकार को जनता की प्रतिरोध की आवाज़ का एक मंच बन चुके इस स्थान का अस्तित्व और स्वायतता पसंद नहीं आई, इसलिए विगत 7 जून को भारी पुलिस बल भेज कर यह स्थान जबरन खाली करवा लिया गया तथा जगह-जगह पर अंकित कर दिया गया कि अब यह जयपुर विकास प्राधिकरण की सम्पति है। न केवल इस गांधीवादी संस्था को सील कर दिया गया है बल्कि उसके चारों तरफ तारबंदी भी कर दी गयी और पुलिस का पहरा बिठा दिया गया है ताकि प्रदेश के आम जन वहां पर फटक भी न सकें। जब जगह ही नहीं रहेगी तो सरकार के खिलाफ कैसे आवाज़ उठेगी? न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी की तर्ज पर राज्य शासन ने समस्याओं को मिटाने के बजाय समस्याएं उठाने वालों और उनके मिलन स्थल को ही मिटा देने का जनविरोधी कदम उठाया है।

समग्र सेवा संघ पर अचानक हुए इस प्रकार के हमले के विरुद्ध राज्य भर से आवाज़ उठी हैं। लोगों ने कई दिन तक जयपुर में धरना लगाया है तथा जयपुर विकास प्राधिकरण के सामने जा कर 11 जून को प्रदर्शन भी किया,ज्ञापन भी आयुक्त को दिया गया। हर स्तर पर कोशिशे की गयी हैं। राज्य की मुख्यमंत्री वसुंधराराजे से भी सामाजिक कार्यकर्ताओं का एक प्रतिनिधिमंडल 12 जून को मिला तथा उन्हें भी अपनी पीड़ा से अवगत कराया। श्रीमती राजे ने वित्त सचिव सुभाष गर्ग को इस हेतु निर्देशित किया कि वो लोगों की पूरी बात सुनकर उन तक पूरा पक्ष पंहुचाएं। गर्ग ने सुना और बताते हैं कि उन्होंने मुख्यमंत्री तक पूरी बात पंहुचायी है, लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात सा है, किसी भी स्तर पर सुनवाई नहीं हो रही है।

सरकार राजस्थान समग्र सेवा संघ की जमीन को हड़प जाने को जायज ठहराने और जनता के सामने गलत तथ्य प्रस्तुत कर भ्रमित करने का प्रयास कर रही है। जयपुर विकास प्राधिकरण का कहना है कि जिन शर्तों पर राजस्थान समग्र सेवा संघ को जमीन आवंटित की गयी, वह उनकी पालना करने में खरा नहीं उतरा है। वहां पर कई प्रकार की व्यावसायिक गतिविधियाँ चल रही थीं, गांधीजी के विचारों से इतर गतिविधियाँ वहां चल रही थीं।

सबसे पहले हमें राजस्थान समग्र सेवा संघ की जमीन के मसले को देखना होगा। तथ्य यह है कि यह जमीन समग्र सेवा संघ की खुद की खरीदी हुयी जमीन है, जो जयपुर विकास प्राधिकरण के अस्तित्व में आने से वर्षों पहले 15 मई 1959 में चंदा लाल काला नामक एक व्यक्ति से खरीदी गयी थी। इस साढ़े नौ बीघा जमीन को समग्र सेवा संघ ने 200 रुपये के स्टाम्प पर 9999 रुपये में खरीदा था। इसके पश्चात 1981 में इसे हवाईअड्डे के नाम पर जे डी ए ने अवाप्त कर लिया, जिसका कोई भी मुआवजा समग्र सेवा संघ को नहीं दिया गया और न ही संघ ने अपना कब्ज़ा छोड़ा। समग्र सेवा संघ का कार्यालय और समस्त गतिविधियाँ इसी स्थान से अनवरत चलती रहीं। वैसे भी अगर अवाप्तशुदा जमीन का कोई मुआवजा नहीं ले और उस पर 5 वर्षों में जेडीए कब्ज़ा नहीं ले तो भूमि अवाप्ति स्वत समाप्त हो जाती है। बाद में इसी जमीन को 1 रुपये की वार्षिक लीज पर 2001 में राजस्थान समग्र सेवा संघ को आवंटित कर दिया गया। आवंटन पत्र में साफ कहा गया कि इस जगह पर स्वर्गीय गोकुल भाई भट्ट स्मृति भवन निर्मित किया जायेगा जिसके लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मुख्यमंत्री कोष से 5 लाख रुपये की मदद भी की और यह आश्वासन दिया गया कि जे डी ए अपने वास्तुकार भेज कर 40 लाख रुपये लगा कर गोकुल भाई भट्ट स्मृति भवन निर्मित करेगा, लेकिन न तो आज तक जयपुर विकास प्राधिकरण के वास्तुकार पंहुचे और न ही यह राशि कभी दी गयी। राजस्थान समग्र सेवा संघ ने अपने सीमित संसाधनों के ज़रिये यहाँ पर भवन भी बनाये और भूमि को भी भू माफियाओं की गिरफ्त से बचाने की लड़ाई लड़ी।

देखा जाये तो राजस्थान समग्र सेवा संघ पर लगाये गए आरोप और आवंटन निरस्त करने के लिए अपनाई गयी पूरी प्रक्रिया ही पूर्वाग्रहों, दुराग्रहों और सिर्फ अनुमानों एवं सुनी सुनाई बातों पर आधारित लगते हैं, जैसे कि यह कहना कि संघ द्वारा इस परिसर और भवन का व्यावसायिक उपयोग किया जा रहा है, सरासर तथ्यहीन आरोप है। ऐसी कोई गतिविधि यहाँ पर संचालित होते कभी देखी नहीं गयी। एक जाति विशेष का समूह जिसके हित सीधे तौर पर इस जमीन से जुड़े हुए है, उक्त जमात का दावा है कि वहां पर एक टिफिन सेंटर चलाया जा रहा था, जबकि सच्चाई यह है कि मोहिनी बाई नामक एक दलित महिला जिसके पति को मजदूरी मांगने की वजह से दबंगों ने इतना पीटा कि उसकी टाँगे जाती रही, ऐसे बेबस परिवार को सुरक्षा और शरण दी समग्र सेवा संघ ने। मोहिनी उसी परिसर में रहती थी और राज्य भर से आने वाले गाँधी विचार और अन्य मानवतावादी जन संगठनो के साथियों को भोजन बना कर दे देती थी, जिससे उसका परिवार पलता था, अब वह सड़क पर आ गयी है। इसी तरह यह भी आरोप है कि वहां पर शादी ब्याह संपन्न होते थे। ऐसे कार्ड भी सलंग्न किये गए हैं, जिनका पता किया तो जानकारी मिली कि ये परिवार समग्र सेवा संघ परिसर के पड़ोस में निवास करते हैं, जिन्हें सिर्फ इंसानियत के नाते बिना कोई वाणिज्यक शुल्क वसूले वहां पर एक दिन के लिए रहने दिया गया था। इसी प्रकार राज्य भर के संस्था संगठनों को भी व्यावसायिक शुल्क लिए बगैर सदैव ही राजस्थान समग्र सेवा संघ का परिसर और भवन उपलब्ध करवाया जाता रहा है। यहाँ पर कई जनसुनवाइयां और सम्मलेन किये गए हैं, जनहित की कई मांगे यहाँ से उठी हैं। अहिंसक और शांति पूर्ण तरीकों के लोक संघर्ष के लिए यह एक सर्व स्वीकार्य केंद्र रहा है। सही मायने में इस स्थान और संस्था ने गांधीवाद को नए मूल्यों और जनता से स्वयं को जोड़ा है तथा वास्तविक रूप से लोकहित के लिए इसका सदुपयोग किया है। इस मामले में राजस्थान समग्र सेवा संघ शेष उन संस्थाओं से अलग है जो गाँधी, खादी और समाधी के नाम पर सिर्फ कारोबार कर रही है और अपने ही दड़बों में छिपी हुयी रहती है, कभी भी जनता के मुद्दों पर बाहर नहीं आती, जबकि समग्र सेवा संघ ने यह किया है कि वह जनहित के लिए सत्ता के साथ संघर्ष से कभी पीछे नहीं हटा है। इसलिए भी वह सत्ता प्रतिष्ठान की आंख की किरकिरी बन गया है।

इतना ही नहीं बल्कि गाँधी और उनके अनुयायियों के नाम पर बनी अन्य संस्थाओं के कर्ताधर्ताओं की नज़र भी समग्र सेवा संघ की जमीन पर लगी रही है। गोकुल वाटिका कृषि सहकारी समिति जो कि कालांतर में अवैधानिक तरीके से स्वयं ही गृह निर्माण समिति बन गयी, उसने समग्र सेवा संघ की 2 बीघा जमीन लेने के लिए, उससे जुड़े और लाभान्वित लोगों की ओर से समग्र सेवा संघ पर सदैव ही असत्य और तथ्यविहीन आरोप लगा कर प्रहार किये जाते रहे हैं। दुर्भाग्यजनक बात यह है कि जिनके गांधीवादी बाप दादों ने समग्र सेवा संघ की नींव रखी, अब उनकी ही भू लोलुप संताने समग्र सेवा संघ को मिटाने की कोशिशों में शरीक हैं। इस बात में भी दम है कि तमाम शिकायत कर्ता एक जाति विशेष से ताल्लुक रखते हैं, इनकी मज़बूत लॉबी बनी हुयी है, इनके साथ वे भ्रष्ट लोकसेवक भी मिले हुए हैं, जिन्होंने अपने पद और प्रतिष्ठा का दुरूपयोग करके यहाँ पर भूखंड हथियाए हैं। लोकायुक्त में ऐसे लोकसेवकों के विरुद्ध सैंकड़ों शिकायतें भेजी गयीं, लेकिन कोई कार्यवाही नहीं की गयी। पर आश्चर्यजनक बात यह रही कि समग्र सेवा संघ से जमीन छिनवाने में लगे लोगों की शिकायतों पर लोकायुक्त ने त्वरित कार्यवाही की और जब तक समग्र सेवा संघ का भू आवंटन रद्द नहीं हो गया, तब तक चैन की साँस नहीं ली। लोग तो यहाँ तक कह रहे हैं कि शिकायतकर्ता से लेकर सुनवाईकर्ता तक और आवंटन निरस्त करने वाले सब एक ही जमात से सम्बन्ध रखते हैं, इसलिए यह एक मिला जुला खेल है, जिसमें सरकार भी शामिल है।

हालाँकि पूरा मामला न्यायालय और विभिन्न स्तरों पर चल रहा है, मगर यह सिर्फ एक न्यायिक मुद्दा नहीं है, यह एक राजनीतिक लड़ाई भी है, इसलिए आरोप प्रत्यारोप के इस दौर में पारदर्शिता और जवाबदेही को आम जन के समक्ष स्थापित करने के लिए एक जन सुनवाई का आयोजन किया जाना बेहद जरूरी है जिसमें राजस्थान समग्र सेवा संघ और गोकुल वाटिका गृह निर्माण सहकारी समिति और जयपुर विकास प्राधिकरण की भूमिकाओं पर खुले आम बात होनी चाहिए ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो जाये कि कौन कितने गहरे पानी में है ?

भंवर मेघवंशी, लेखक स्वतंत्र पत्रकार है