मुसलमानों पर हमले महापंचायत से पहले ही शुरु हो गये थे
मुख्यमंत्री ही अपने को हिन्दू मानकर बात करेंगे तो बात कैसे बनेगी
संघ शक्ति जैसे संगठनों ने कुटबा-कुटबी और लिसाड़ समेत विभिन्न गाँवों में हिन्दुओें को किया था हथियार बंद
बलात्कार की घटनाओं को दबा रहा है प्रशासन, सुप्रीम कोर्ट ले संज्ञान
जाँच दल में शरद जायसवाल, शाहनवाज आलम, लक्ष्मण प्रसाद, गुंजन सिंह और राजीव यादव शामिल
कांधला, कैराना, मलकपुर सांप्रदायिक हिंसा पीड़ित कैंप शामली से 24 सितंबर 2013। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शामली समेत विभिन्न जनपदों में हुयी मुस्लिम समाज के खिलाफ हिंसा को दंगा नहीं कहा जा सकता, यह सांप्रदायिक हिन्दुत्ववादी तत्वों, दबंग जाटों के किसान संगठनों की प्रशासनिक मिलीभगत के साथ मुसलमानों पर की गयी एक तरफा हमले की कार्रवाई है। जो कई मायनों में गुजरात 2002 से भी ज्यादा वीभत्स है। इस एकतरफा हमले के बाद मुसलमानों को इंसाफ देने के बजाए सरकार की कोशिश मारे गये मुसलमानों की संख्या को कमतर बताने और बलात्कार जैसी घटनाओं को दबाने की रही।

यह बातें रिहाई मंच जाँच दल के द्वारा शामली के कांधला, कैराना, मलकपुर के सांप्रदायिक हिंसा से पीड़ित मुसलमानों के रिलीफ कैंपों का दौरा करने के बाद जारी बयान में कही गयीं।

जाँच दल में शामिल शरद जायसवाल, शाहनवाज आलम, लक्ष्मण प्रसाद, गुंजन सिंह और राजीव यादव ने कहा कि सरकार मुजफ्फरनगर, शामली, बागपत और मेरठ को मिलाकर सिर्फ 50 मौतों का झूठा आँकड़ा प्रचारित करवा रही है। जबकि मरने वालों की संख्या इससे काफी ज्यादा है। जबकि ऐसी लाशों की तादाद भी काफी ज्यादा हैं जिनको मारने के बाद साक्ष्य मिटाने के लिये जला दिया गया। वहीं बहुत सारे लोग अब भी लापता हैं जिनके बारे में उनके सगे सम्बंधियों और गाँव वालों का मानना है कि वे लोग भी मारे जा चुके हो सकते हैं।

रिहाई मंच ने दावा किया कि सरकार और मीडिया का एक हिस्सा यह प्रचारित करने में लगा है कि हिंसा का दौर 7 सितम्बर को जाटों के महा पंचायत से लौटने के बाद उन पर मुसलमानों की तरफ से किये गये हमले के बाद प्रतिक्रिया स्वरूप शुरू हुयी। जबकि सच्चाई इसके विपरीत है। मुसलमानों के खिलाफ संगठित हमलों की तैयारी पहले से थी। मुसलमानों पर संगठित हिंसा का दौर 5 सितम्बर को लिसाढ़ गाँव में 7 सितम्बर की नांगला मंदोड में होने व़ाली महापंचायत की तैयारी के लिये हुयी पंचायत के दौरान ही 52 गाँवों के जाटों के मुखिया हरिकिशन बाबा ने मुसलमानों को सबक सिखाने का आह्वान कर शुरू कर दिया था। जिसके बाद 3-4 बजे शाम को ट्रालियों में भरकर वापस लौटते समय मुसलमानों को गालियाँ देते हुये जान से मारने की धमकी दी गयी। 6 सितंबर की शाम को लिसाढ़ के ही मोहम्मद मंजूर को जाट समुदाय के हिन्दुत्वादी अपराधी देवेन्द्र पुत्र चाही ग्राम लिसाढ़ ने यह कहते हुये चाकू मार दी कि मुसलमानों को यहां रहने नहीं देंगे। लिसाढ़ में जनता इंटर कालेज के पास स्थित शिवाला मंदिर में हिंदुत्ववादी संगठनों के लोगों ने महीनों पहले से दस-दस रुपए की पर्ची काटकर सदस्य बनाने और लगभग पाँच सौ तलवारें बाँटने का काम किया गया था। जिसकी शिकायत भी गाँव के मुसलानों द्वारा पुलिस को लिखित में दी गयी थी। दूसरे दिन नंगला मदोड़ में होने वाली महापंचायत जिसे हिन्दुत्ववादी संगठनों, रालोद और भारतीय किसान यूनियन का समर्थन प्राप्त था, में खुले हथियारों जैसे बंदूक, हसिया, गड़ासा, तलवार, देशी तमंचे से लैस होकर जाते हुये रास्ते में सुबह 9-10 बजे के करीब बसी गाँव के करीब पलड़ा गाँव की सात माह की गर्भवती रुकसाना पत्नी रहीस को मार दिया तथा दो अन्य लड़कों को घायल कर दिया तो वहीं पंचायत के दौरान लगभग 12 बजे जब पंचायत में शामिल लोगों को पता चला कि उनके बीच जो बोलेरो गाड़ी किराये पर आयी है, उसका ड्राइवर मुसलमान है तो ड्राइवर इंसार पुत्र वकील गाँव गढ़ी दोलत को गोलियों से छलनी कर दिया गया। इंसार के शरीर से पोस्टमार्टम में 18 गोलियाँ मिली हैं। इस घटना की एफआईआर कांधला थाने में दर्ज है। पंचायत के बाद लौटते हुये शाम को चार बजे नंगला बुर्ज गाँव में गाँव के ही असगर पुत्र अल्ला बंदा को घायल किया गया, वहीं 5 बजे तेवड़ा गाँव के निवासी फरीद पुत्र दोस्त मोहम्मद को तलवार से हमला करके घायल किया। 6 बजे तेवड़ा के ही सलमान पुत्र अमीर हसन की हत्या तेवड़ा गाँव में कर दी गयी उसके बाद खेड़ी फिरोजाबाद गाँव में लताफत पुत्र मुस्तफा की हत्या हुयी, इसी गाँव के नज़र मोहम्मद पुत्र मूसा की भी हत्या कर दी गयी। इन घटनाओं से साफ है मुसलामानों के खिलाफ संगठित हिंसा महापंचायत में जाते वक्त, पंचायत के दौरान और पंचायत से लौटते वक्त शुरु हो गयी थी।

जाँच दल ने पाया कि कुटबा, कुटबी गाँव में ‘संघ शक्ति’ नाम का संगठन पिछले एक साल से अधिक समय से सक्रिय था। इस संगठन के एजेंडे में जाटों के नेतृत्व मे कमजोर हिन्दू जातियों खासकर झिम्मर (कश्यप) और दलितों को इकट्ठा करना और मुसलमानों के खिलाफ जहर उगलना था। माथे पर ‘ऊं’ निशान वाला सफेद पट्टी बाँधने वाले ‘संघ शक्ति’ के लोगों ने महापंचायत से 15 दिन पहले से दिन में एक बार के बजाय दिन में तीन-तीन बार बैंठके करनी शुरू कर दी थीं। जिसका नेतृत्व जाट जाति का प्रधान देवेंद्र करता है। इस गाँव में कई मुसलमान मारे गये और गाँव के सारे मुसलमान कांधला, कैराना, मलकपुर समेत विभिन्न पीड़ित शिविरों में रहने को मजबूर हैं।

रिहाई मंच जाँच दल का आरोप है कि सपा सरकार ने सांप्रदायिक हिंसा पीड़ित मुसलमानों को न्याय देने के बजाए पूरे मामले की लीपापोती करने में ही पूरी ऊर्जा लगा दी और सुप्रिम कोर्ट में हलफनामा दिया कि पीड़ितों के लिये बने शिविर सरकार संचालित कर रही है जो बिल्कुल झूठ है। सारे राहत शिविर खुद मुस्लिम समाज व उनकी तंजीमें चला रही हैं।

जाँच दल को कैराना राहत शिविर के पीड़ितों ने बताया कि एक दिन प्रशासन के लोग छुपकर दूध बाँटकर कोटा पूर्ति करने की कोशिश की जिसे उन लोगों ने लेने से इंकार कर दिया। इसी तरह सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में झूठ बोला कि सरकार ने कैराना कैम्प में 2700 मुसलमानों की व्यवस्था की है। जबकि हलफनामा देते वक्त इस कैम्प में कुल 9771 लोग थे। कैम्प के संचालक अजमतुल्ला खान ने बताया कि पूरा खर्च स्थानीय मुसलमान और उनके संगठन उठा रहे हैं।

करैना से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मलकपुर राहत शिविर के हालात काफी खराब हैं। हजारों की संख्या में लोग खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर हैं, बरसात के वक्त वहाँ के हालात काफी खराब हो जाते हैं। सपा नेताओं द्वारा जो दौरे किये जा रहे हैं वो महज कोटा पूर्ति और मीडिया मैनेजमेंट की कोशिश है। जिसकी तस्दीक इससे भी होती है कि कल 23 सितंबर को कांधला राहत शिविर में सपा कुनबे के नेता शिवपाल यादव ने वहाँ इकट्ठा पीड़ितों से सार्वजनिक तौर पर कुछ नहीं कहा। वहीं कांधला कैंप के लोगों ने ही बताया कि पिछले दिनों मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपनी मुस्लिम विरोधी मानसिकता का परिचय देते हुये कांधला कैंप में अपनी हिफाजत और इंसाफ के लिये शोर मचा रहे लोगों को यह कहकर शांत कराने की कोशिश की कि, आप लोगों ने भी तो हमारी ट्रालियों को तबाह किया है। पीड़ितों का कहना है जब मुख्यमंत्री ही अपने को हिन्दू मानकर बात करेंगे तो बात कैसे बनेगी।

रिहाई मंच के प्रवक्ताओं शाहनवाज आलम व राजीव यादव ने कहा कि पिछले तीन दिन से चल रहे दौरे में पाया गया कि विभिन्न गाँवों के जो लोग राहत शिविरों में हैं उनसे उनके परिवार के लोग आज हफ्तों बाद भी बिछड़े हुये हैं इनमें बच्चों व महिलाओं की संख्या काफी है। पीड़ितों ने यह भी बताया कि जगह-जगह छोटे-छोटे बच्चों व महिलाओं को निशाना बनाया गया है। ऐसे में यह सुनिश्चित नहीं हैं कि वो जिन्दा भी हैं। जिस तरह महिलाओं के साथ अभद्रता व उनको कई-कई दिनों तक बंधक बनाने की खबरें सामने आ रही हैं ऐसे में स्पष्ट है कि दंगाईयों ने बलात्कार भी किये हैं। पर जिस तरीके से जाट समुदाय की दहशत है और दूसरी तरफ प्रदेश सरकार इन मामलों को स्थानीय सपा के नेताओं के जरिए दबाने की कोशिश कर रही है ऐसे में महिलाओं से जुड़े इस गम्भीर मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट संज्ञान ले। इन मामलों में राज्य महिला आयोग की आपराधिक चुप्पी को देखते हुये राष्ट्रीय महिला आयोग को तत्काल अपनी तरफ से जाँच दल भेजना चाहिए।