गुलाम हो, गुलाम ही रहोगे क्योंकि व्यक्तिववान नहीं तुम पशु हो !
गुलाम हो, गुलाम ही रहोगे क्योंकि व्यक्तिववान नहीं तुम पशु हो !

गुलाम हो ,गुलाम ही रहोगे क्योंकि तुम्हारी सोच गुलामी की है। देश को गुलामी से मुक्त कराने के लिए न जाने कितने देश भक्तों ने अपनी जान की कुर्वानी दी है। उन्हें क्या मालूम था कि जिनके लिए हम अपना सर्वस्व न्यौछावर कर रहे है वह संतति इतनी अकर्मण्य होगी कि अपनों से ही अपना अधिकार नहीं छीन पायेगी।
अकर्मण्य को मौत भी मांगने से नहीं मिलती, फिर जीने के मुकम्मल अधिकार कैसे मिलगे ? मिलाना भी नहीं चाहिए। संविधान ने उन्हें संप्रभुता की शक्ति दी है उसे हर चुनाव में सिर्फ शराब -कबाब और चंद रूपयों के लिए बेच देते हैं। जिस तरह गंजे को नाखून मिलना खतरनाक है उसी प्रकार संप्रभुता की शक्ति ऐसे अकर्मण्य के पास रहना घातक है।
Common people are directly responsible for this country's plight
देश की इस बदहाली के लिए सीधे तौर आम -जन दोषी है जब तुम्हे मालूम है कि प्रत्येक देश में दो वर्ग होते है एक शासक और दूसरा शोषित। शासक वर्ग के हित (Ruling class interests) पूरी तरह से तुम्हारे शोषण पर ही टिके हैं, तो शासक वर्ग से यह अपेक्षा क्यों करते हो कि वह तुम्हारे हित के प्रति संजीदगी से संवेदनशील होगा ।
जन -प्रतिनिधियों को उनका भूत -भविष्य बताओ, नौकरों को नौकर की औकात बताओ अन्यथा गुलामों की तरह शोषित होकर और कीड़े -मकौड़ों की तरह मर जाओ।
Where is the arrogance of cursing constitution and law
संविधान और कानून को कोसना कहाँ की मर्दांगनी है यह दोनों शासक वर्ग के गुलाम है अर्थात उसी के हित साधक मशीनरी मात्र है क्योंकि उनकी लगाम और उसे ठीक करने की चाबुक शासक वर्ग के पास है।
जब कोई कानून उनके खिलाफ हुआ तब उसे संविधान और कानून की परिधि से बाहर कर दिया जाता है। क्या हम कभी पूछते हैं कि जब संविधान की संप्रभुता की शक्ति हम आम -जन है तो बगैर हमसे पूछे संविधान और कानून से छेड़खानी क्यों की जाती है। हमने सिर्फ सामान्य शासन -प्रशासन चलाने का अधिकार तुम को दिया है न कि प्रजातंत्र की मौलिकता से छेड़छाड़ करने का।
संविधान में जो भी परिवर्तन अपरिहार्य हो, वह चुनाव के मुद्दों के रूप में अवाम के समक्ष आने चाहिए और अवाम जो उचित समझेगी वह निर्णय लेगी।
एक बात और बहुत स्पष्ट होनी चाहिए यदि कोई पार्टी या प्रतिनिधि कोई घोषणा करता है तो उसे अवाम के समक्ष इस शर्त का हलफनामा देना होगा कि यदि हम या यह पार्टी अपने घोषणापत्र को पूरा नहीं कर पाती है तो पार्टी के साथ सदस्यों को आजन्म चुनाव प्रतिबन्ध स्वीकार होगा, जिससे पार्टी भगोड़ों की नस्ल नहीं पैदा होगी और जिस पार्टी की सदस्यता लेगे बहुत सोच -समझ कर।
हम आम -जन को चुनाव के समय दो पाउच में शराब में बिकने की प्रवृत्ति से ऊपर उठना होगा तभी सही प्रत्याशी व प्रतिनिधि मिल सकेंगें। पुराने व चिर-परिचित घाघों की करनी-कथनी का जवाब मांगने की हिम्मत एक जुट होकर करनी होगी और जो व्यक्ति वोटों की दलाली करे उसे भी सबक सिखाना होगा जिससे दलालों की नस्ल पैदा होने में लाख बार सोचे और हम आम -जन एक व्यतित्व को जिएं!
व्यक्ति को जीने के लिए बहुत कुछ कुर्बान करना होगा। अधिकार व्यक्त्व के साथ जीने वाले के लिए होते हैं गुलाम व जानवरो के लिए नहीं, इसलिए अधिकारयुक्त जीने के लिए व्यतित्ववान बनें।
देवेन्द्र वर्मा


