इतना चीखो कि मनुस्मृति तिलिस्म ढह जाये!
क्योंकि चीख से बड़ा कोई हथियार नहीं है और न भाषा और न अस्मिता कोई दीवार है औऱ खामोशी मौत है।
पलाश विश्वास
बच्चों के लिए हमारा सबक। मनुष्य होकर अगर जनमे हैं तो मनुष्य ही नहीं, इस कायनात के तमाम पशु पक्षियों की भाषा को अबूझ न समझें। द्वनि पर ध्यान दें, स्वर की उछाल और उच्चारण पर नजर रखे, संवेदनाओं को दिलोदिमाग में कैद कर लें और वैज्ञानिक सोच के साथ विषयवस्तु समझें। फिर तकनीक है। ऐप्स हैं। हमारे बिरंची बाबा देस को नीलाम करने के लिए दुनिया भर की बोली में चहचहाते हैं और यकीन मानें कि आप में से किसी की मेधा किसी से कम नहीं है। भाषा विज्ञान के तहत कोई भाषा अबूझ नहीं है। व्याकरण और शुद्धता के वर्चस्ववाद की होली जलाकर दुनिया भर की मनुष्यता से खुद को जोड़ें तभी मनुष्यता बच सकती है। कायनात बच सकती है।
यह सबक मेरा मौलिक भी नहीं है। मैंने जिंदगी में पढ़ने लिखने के सिवाय कुछ नहीं किया है। हालंकि मेरा रचनाकर्म रतिकर्म नहीं है कि लिखकर फारिग हो जाउं। मुद्दों और मसलों से उलझने के बाद उन्हें सुलझाने और जमीन पर जो जंग जारी है, उसका सही पक्ष चुनकर हर लड़ाई को अंजाम तक पहुंचाना मेरा काम है।
हम उस गली में जाते ही नहीं हैं, जहां हमारा कोई काम नहीं, जहां कोई महबूब हसी चेहरा हमारे इंतजार में न हो।
स्तंभन हमारा मकसद नहीं है। हर हालात में हालात बदलने चाहिए।

दलाली जिनका धंधा है। सत्ता से जिनका चोली दामन का साथ हो, कुछ भी कहें हों तो उनकी रौ में बहना नहीं है और न आगे कोई बंटवारा और होने देना है। जाति धर्म भाषा के नाम पर।
रंग बिरंगे झंडे के बजाय हमें इंसानियत का झंडा बुलंद करना है और हम अगर खेत हो जाते हैं तो मजहब या जात पांत के धर्मोन्माद का ईंधन बनने के बजाय हम इस देश की माटी के कण-कण को जोड़ने का काम जरूर करें।
हम न धर्म के खिलाफ है और न आस्था के खिलाफ हैं।
हम धर्मोन्मादी राजनीति के अधर्म और अधार्मिक दंगाइयों के देश बेचो कार्यक्रम के खिलाफ हैं।
हम बंटवारे के, कटकटेले अंधियारे के सौदागरों के खिलाफ हैं।
हम असत्य, अन्याय, हिंसा, दमन, उत्पीड़न और शोषण की वैदिकी हिंसा के खिलाफ हैं।
हम आर्थिक सुधारों के नाम पर बलात्कार, नरसंहार और खुल्ला लूटतंत्र को जायज बनाने के राजकाज के खिलाफ हैं।
हम अचार, पापाड़, आटा, दंतमंजन और पुत्रजीवक के लिए कारपोरेट मीडिया के विज्ञापनधर्मी आइकनी सभ्यता के कुलीनत्व के योगाभ्यास के भी खिलाफ हैं।
हम रक्षा सौदों में अरबों की दलाली से हासिल हत्यारों की सत्ता के भी खिलाफ हैं।
हम हवा पानी भोजन जल जंगल जमीन आजीविका और जरूरत की हर चीज और हर सेवा को, देश के हर संसाधन को विदेशी पूंजी और विदेशी हितों के हवाले करने वाले धर्म के नाम फिर-फिर देश का बंटवारा करने वाले अधर्म के खिलाफ हैं।
हम न हिंदूद्रोही हैं और न राष्ट्रद्रोही, बल्कि फतवाबाज वे तमाम नंगे हिंदुत्व के अवतार, सारे के सारे हिंदू धर्म और हिंदुओं के हत्यारे हैं और हिंदूद्रोही राष्ट्रद्रोही भी वे ही हैं।
कौड़ियों के मोल जनता के सारे संसाधन जल जमीन जंगल हासिल करने वाली हमारे ख्वाबों की मलिका नहीं हो सकती।

गुजरात नरसंहार के बाद गिर अभयारण्य फ्री में देने वाले हिंदू ह्रदय सम्राट हो नहीं सकते।
देश के सारे खनिज निजी घरानों को मुफ्त भेंट करने वाले, सारा कर्ज कारपोरेट माफ करने वाले, पीपीपी विकास के नाम बिल्डर प्रोमोटर माफिया राज की हजारों हजार ईस्ट इंडिया कंपनियों के हवाले देश और परमाणु ऊर्जा के बहाने कयामती केसरिया सुनामी के तहत जनसंहार का राजकाज चलाने की सत्ता में भागीदार लोग हमारे रहनुमा हो नहीं सकते और न नुमाइंदा।
संसद के बजट सत्र से पहले आखिरी मोहलत है कि जो भी जनता के हकहकूक के हक में हैं, जो भी सत्य-अहिंसा, समता और न्याय के पक्ष में है, खाली पीली बोली से काम नहीं चलेगा, वे पहले विधायक, सासंद और मंत्री पद से तुरंत इस्तीफा देकर सड़क पर हमारे साथ हों, वरना हम उन्हें भी जनता का दुश्मन मान लेंगे।
हम सलवाजुड़ुम, आफस्पा और फौजी हुकूमत के सैन्यराष्ट्र और दलाल गुलाम जमींदारियों की संततियों के अश्वमेधी राजसूय के खिलाफ हैं।
मेरी पूरी जिंदगी जड़ों को समर्पित, अपने स्वजनों के लिए, दुनिया भर के मेहनत आवाम, काले अछूत पिछड़े और शरणार्थियों के लिए, जल जंगल जमीन नागरिकता और इंसानियत के हक हकूक के लिए, मुहब्बत और अमनचैन के लिए मेरे दिवंगत पिता के जुनूनी प्रतिबद्धता की विरासत के मुताबिक खुद को इसके काबिल बनाने में बीता है क्योंकि खुद बेहद बौना हूं।
मेरे पिता विभाजनपीड़ित हिंदू शरणार्थी थे और धू-धू दंगाई आग में जलते मेरठ के अस्पताल में सैन्य पहरे में कैद दंगों में मारे जा रहे मुसलमानों और नई दिल्ली में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सफदरगंज अस्पताल के पिछवाड़े नारायण दत्त तिवारी के घसीटकर सुरक्षित ठिकाने ले जाने के दौरान जो खून की नदियां उनके दिलोदिमाग से निकलती रही हैं, उसी का वारिस हूं मैं।
मैंने अपने पिता से सीखा है कि जब दसों दिशाओं में कयामत कहर बरपाती है तो अपनों को बचाने का सबसे कारगर तरीका यह है कि दसों दिशाओं के मुखातिब खड़े दम लगाकर चीखो।
पिता ने ही यह सिखाया कि चीख से बड़ा कोई हथियार नहीं है और न भाषा और न अस्मिता कोई दीवार है औऱ खामोशी मौत है।
आजादी, हिंदुत्व का एजेंडा और लोकतंत्र की शोकगाथाओं की नरसंहारी दंतकथाओं के कारपोरेट मुक्तबाजारी महोत्सव में अचरज है कि इस मुल्क की जमीन के गोबर माटी पानी में इंसानियत का जज्बा अभी खत्म हुआ नहीं है।
हमने खुद को हाशिये पर खड़ा आखिरी आदमी कभी नहीं माना है और न किसी देव देवी, अवतार, स्वामी या भूदेव या भूदेवी के आगे घुटने टेककर कोई वरदान मांगी है और न हम वैदिकी सभ्यता के कोई देवर्षि, ब्रहमर्षि हैं जो इस दुनिया पर हुकूमत के लिए और मौत के बाद भी अपना ही वर्चस्व कायम करने के लिए तपस्या करता हो और इंद्रासन डोलने पर किसी मनमोहिनी या मेनका को भेजने की देरी है कि जातियों, कुनबों और अस्मिताओं के जलजले में महाभारत हरिकथा अनंत में देश कुरुक्षेत्र बन जाये।
हम जन्मजात उन मिथकों के खिलाफ खड़े हैं, जिसका उत्कर्ष महाविलाप है और जिसका कथासार जन्मजन्मांतर का कर्मफल है और जिसकी परिणति निमित्र मात्र मनुष्य के लिए अमोघ मनुस्मृति है, असहिष्णुता की वैदिकी हिंसा है और शंबूक हत्या नियतिबद्ध है, जिसकी अभिव्यक्ति हजारों हजार हत्याओं और आत्महत्याओं, युद्धों और गृहयुद्धों का यह अनंत बेदखली विध्वंस है।
पिछवाड़े में शुतुरमुर्ग बने रहने के लिए खेतों, खलिहानों, जंगल, पहाड़ और लसमुंदर, रण और मरुस्थल की सारी सुगंध समेटकर मेरा वजूद बना नहीं है और न स्वर्णगर्भ से समुचित दीक्षा के भुगतान के बाद मैं कोई महायोद्धा हूं।
जनता के मोर्चे पर हूं तो फतह से कम कुछ भी मंजूर नहीं। हर किले, हर चक्रव्यूह तोड़कर ही दम लेंगे।
अभिमन्यु भी नहीं हूं। माता के गर्भ से चक्रव्यूह का भेद जाना है तो निःश्स्त्र रथी महारथी के हाथों बिना मतलब मारे जाने के लिए निमित्तमात्र भी नहीं हूं।
मेरे सीने में अबभी इस देश के किसानों और आदिवासियों की आजादी की खुशबू जिंदा है, जो गुलाम कभी नहीं हुए और उनकी अनंत लड़ाई की जमीन पर खड़ा मेरी खुली युद्धघोषणा है कि सत्तर का दशक फिर जाग रहा है और अबकी दफा हम हरगिज बिखरेंगे नहीं और उस महाश्मशान की राख में जो भारतीय की आत्मा रची बसी है, उस अग्निपाखी के पंखों पर सवार इस मनुस्मृति के तमाम दुर्गों पर हम निर्णायक वार करेंगे।
जिसकी आत्मा मरी नहीं है।
जिसका विवेक सोया नहीं है।
जिसका वजूद मिटा नहीं है।
जो इस मुक्तबाजारी भोग कार्निवाल में महज कबंध नहीं है, उन तमाम लोगों का खुल्ला आवाहन है कि अवतार की तरह अंतरिक्ष युद्ध में भी तमाम वैज्ञानिक पारमाणविक आयुधों और आत्मघाती तकनीकों के खिलाफ मनुष्यता के हक में, कायनात की तमाम नियामतों, बरकतों और रहमतों के लिए, सत्य, अहिंसा, समता और न्याय के इस महायुद्ध में अपना पक्ष चुन लें और खामोशी तोड़ें।