गृहमंत्री जी, डॉ. आम्बेडकर ने कहा था स्वतंत्रता, बराबरी और भाईचारा ही संविधान की मुख्य धारा है
गृहमंत्री जी, डॉ. आम्बेडकर ने कहा था स्वतंत्रता, बराबरी और भाईचारा ही संविधान की मुख्य धारा है
शेष नारायण सिंह
डॉक्टर बी आर आम्बेडकर के जन्म के 125 साल का कार्यक्रम लोकसभा में मनाया गया। 26 नवंबर 1949 के दिन संविधान सभा ने गवर्नमेंट आफ इण्डिया ( अमेंडमेंट ) बिल 1935 को पास कर दिया था और यही भारत का संविधान है। यही दस्तावेज़ 26 जनवरी 1950 के दिन लागू कर दिया गया। यह हमारे राजकाज का सबसे पवित्र ग्रन्थ है।
संविधान के गुण दोषों पर हमेशा बहस होती रहेगी। लेकिन लोकसभा के अन्दर चर्चा के दौरान दो नेताओं के भाषण हमेशा याद रखे जायेंगे। इन भाषणों से साफ़ अनुमान लग गया है कि कांग्रेस पार्टी और उसके नेता मौजूदा सत्ताधारी पार्टी की मूल संस्था को आज़ादी के लड़ाई से अलग रहने के इतिहास को देश और समाज को भूलने नहीं देंगे। यह बात कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के भाषण में साफ़ नज़र आ रही थी।
दूसरी बात यह होने जा रही है कि सत्ताधारी पार्टी आने वाले समय में इतिहास और संविधान की अपनी समझ को प्रभावी तरीके से पेश करने वाली है और अगर संभव हुआ तो संविधान की वही व्याख्या करने वाली है जो आरएसएस के संस्थापकों ने भारत के राजकाज के लिए उचित समझा था।
26 नवम्बर को संविधान दिवस के रूप में मनाकर सत्ताधारी पार्टी ने यह भी साफ़ कर दिया है कि वह केवल महात्मा गांधी, सरदार पटेल और सुभाष चन्द्र बोस को अपनाकर ही नहीं रुकने वाली है। आज़ादी की लड़ाई के उन महानायकों को जिनको इंदिरा गांधी के परिवार ने राष्ट्रीय आन्दोलन के हीरो के रूप में सम्मान नहीं दिया था, उनको भी रेंज में ले लिया जाएगा। उनको भी भारतीय जनता पार्टी के हीरो के रूप में आने वाले दौर में याद किया जाएगा।
लोकसभा में हुयी चर्चा की शुरुआत गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने की। उन्होने संविधान की प्रस्तावना में लिखे गए सेक्युलर और सोशलिस्ट शब्दों को एतराज के घेरे में लिया। लोकसभा में कही गयी इनकी बातें पूरी मजबूती से देश की बहस के एजेंडा में शामिल हो गयी है। उन्होंने कहा कि बी आर आम्बेडकर नहीं चाहते थे कि संविधान की प्रस्तावना में यह दोनों शब्द लिखे जाएँ, लेकिन इमरजेंसी के दौरान यह शब्द भी डाल दिए गए।
गृहमंत्री का भाषण, जैसा कि हमेशा होता है, ख़ासा लम्बा था और बातों को बहुत ही ज़ोरदार तरीके से कहा गया था। अब यह तय है कि सेक्युलर शब्द की उपयोगिता पर बहस होगी। जहां तक सरकार का सवाल है उन्होने साफ़ कह दिया है कि सेक्युलर शब्द का अनुवाद धर्मनिरपेक्षता नहीं है, इसको पंथनिरपेक्षता कहना चाहिए।
राजनाथ सिंह ने दावा किया कि भारत के धर्म में सेक्युलर मान्यताएं पहले से ही समाहित हैं। साफ़ समझ में आ रहा था कि वे भारत के धर्म को हिन्दू धर्म बताने की कोशिश कर रहे थे। उन्होंने ऐलान किया कि धर्मनिरपेक्षता शब्द का इस देश में सबसे ज्यादा दुरूपयोग हुआ है।
लोकसभा में गृहमंत्री के भाषण के दौरान यह बार-बार लगता रहा कि वे संविधान दिवस की बहस को एक ऐसे रास्ते पर ले जाने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे संविधान की जो मूल भावना है उसको चर्चा के दायरे में न आने दिया जाए। हो सकता है कि उनकी कोशिश को आंशिक सफलता भी मिले, लेकिन सच्चाई यह है कि जब संविधान के बारे में गंभीर बहस होगी तो हर उस बात पर चर्चा होगी जो डाक्टर बी आर आंबेडकर ने अपने 25 नवम्बर 1949 के भाषण में कही थी। उन्होंने संविधान के निर्माण की प्रक्रिया का उल्लेख किया, जो परेशानियां आईं, उनका उल्लेख किया और संविधान की आत्मा का पूरा विवरण सुनाया। उनके भाषण में इस बात का ज़िक्र भी है कि अगर लोकसभा में कोई नेता भारी बहुमत से जीतकर आता है तो वह तानाशाह भी हो सकता है। उनकी इस चेतावनी को सही होते दुनिया ने 26 जून 1975 को देखा था। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता, बराबरी और भाईचारा ही संविधान की मुख्य धारा है। उन्होंने अपने भाषण में साफ़ किया कि उस संविधान की प्रेरणा भी वही है और मकसद भी वही है।
डॉ आम्बेडकर ने अपने इस भाषण में कहा कि अगर यह मकसद हासिल नहीं किया जा सका तो लोकतंत्र की रक्षा करना असम्भव हो जायेगा। राजनीतिक लोकतंत्र के साथ-साथ अगर सामाजिक लोकतंत्र नहीं आया तो देश की राजनीतिक आज़ादी खतरे में पड़ जायेगी। डॉ. आम्बेडकर ने अपने इस भाषण में सामाजिक लोकतंत्र को बाकायदा समझाया भी है।
कहते हैं कि, सामाजिक लोकतंत्र वह तर्ज़े ज़िंदगी है जिसमें स्वतंत्रता, बराबरी और भाईचारा ही स्थाई भाव होगा। यह तीनों ही बातें एक दूसरे से जुडी हुयी हैं। स्वतंत्रता को बराबरी से अलग करके नहीं देखा जा सकता। उसी तरह स्वतन्त्रता को भाईचारा से अलग करके नहीं समझा जा सकता। इन तीनों को एक साथ देखना होगा और उनको एक साथ ही हासिल करना होगा। क्योंकि तीनों को अलग करके देखने से बात नहीं बनेगी। इन तीनों ही बातों को उन्होंने अपने भाषण में बहुत विस्तार से समझाया है। हमें यह मानकर चलना चाहिए कि भारतीय समाज में बराबरी और भाईचारे की भारी कमी है।
डॉ. आम्बेडकर की अंग्रेज़ी भाषा किसी भी महान लेखक का सपना हो सकती है। उसका अक्षरशः अनुवाद हिंदी का भी महान गद्य होता है। जो बातें उन्होने अपने भाषण में कहीं उनका सीधा मतलब यह है कि इस दौर का समाज कई ग्रेडों में बंटा हुआ था। कई सीढियां थीं, इन सीढ़ियों के सबसे नीचे वाला वर्ग भयानक गरीबी का जीवन बिताने के लिये अभिशप्त था। उन्होंने चेतावनी दी कि संविधान के लागू होने पर समाज के इन्हीं विरोधाभासों का मुकाबला करना देश की सबसे बड़ी चुनौती होगी। राजनीति में तो बराबरी आ जायेगी, लेकिन सामाजिक और आर्थिक जीवन में गैरबराबरी बहुत ज़्यादा होगी। अगर हमने गैरबराबरी को न मिटाया तो देश की लोकशाही के सामने ख़तरा पैदा हो जाएगा।
बराबरी के बाद उन्होंने भाईचारे को सबसे ज़्यादा महत्त्व दिया। उन्होंने कहा कि भाईचारे को सिद्धांत रूप में फ़ौरन स्वीकार कर लेना चाहिए। भाईचारे का मतलब यह है कि सभी भारतीयों को एक दूसरे के प्रति अपनों जैसा व्यवहार करना चाहिए। इसी के बाद सामाजिक और आर्थिक जीवन को मजबूती मिलेगी और लोकतंत्र की जड़ें बहुत मज़बूत होंगीं। हालांकि इस लक्ष्य को प्राप्त करना बहुत कठिन है लेकिन इसको हासिल किये बिना कोई रास्ता नहीं है। इन्हीं तीनों सिद्धांतों को लागू करने के साधन के रूप में संविधान निर्माताओं ने दलितों के आरक्षण और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का प्रतिपादन किया था। आरक्षण और धर्मनिरपेक्षता का विरोध करने वालों को डॉ आम्बेडकर की इन बातों का एक बार फिर अध्ययन करना चाहिए।
डॉ आम्बेडकर की बातों में जो गहराई है उसको आजकल हम रोज़ महसूस कर रहे हैं। कुछ भारतीयों को उनकी जाति या धर्म के आधार पर नीचा मानने की जो ग्रंथि समाज के ऊपरी वर्ग में है, अगर उस पर मर्मान्तक प्रहार न हुआ तो शब्दों की आंधी में हमारा लोकतंत्र फंस जाएगा। बल्कि यह कहना ठीक होगा कि पिछले चालीस वर्षों से स्वतंत्रता, बराबरी और भाईचारा के बुनियादी सिद्धांत पर राजनीतिक स्वार्थों के तहत जो हमले हो रहे हैं अगर उनको रोका न गया तो देश और राष्ट्रहित के सामने भारी ख़तरा पैदा हो सकता है जो ठीक नहीं होगा। आज एक राष्ट्र के रूप में हमको यह संकल्प लेना होगा। संविधान दिवस की भावना का सम्मान और डॉ भीम राव आंबेडकर को सही मायनों में यही सबसे बड़ी श्रद्धांजलि होगी।


