नायक अगर नायिका से कहता है कि "निकली है दिल से ये दुआ / रंग दे तू मोहे गेरुआ", तो नायिका कैसा फील करेगी ?

"रंग दे तू मोहे गेरुआ"। केवल दस साल में रंग बदल गया। प्रसून जोशी ने 2006 में लिखा था "रंग दे बसंती"

अभिषेक श्रीवास्तव

कल खूब टीवी देखे। टीवी में बहुत कुछ देखे। सबसे दिलचस्‍प रहा सलमान-शाहरुख की जोड़ी को एक साथ Dilwale के ट्रैक पर देखना। क्‍या सीन था! दोनों ने बांहें फैलाने के बाद एक-दूसरे को गले लगाया और पीछे से अरिजीत सिंह की आवाज़ आई- "रंग दे तू मोहे गेरुआ"। केवल दस साल में रंग बदल गया। प्रसून जोशी ने 2006 में लिखा था "रंग दे बसंती"।

बसंती से भगत सिंह की याद आती थी। 2015 में Amitabh Bhattacharya ने "रंग दे गेरुआ" लिख मारा है। गेरुआ सुनकर साक्षी महाराज की अप्रिय छवि सामने आ जाती है।

"गेरुआ" राजनीतिक होने और अराजनीतिक दिखने के बीच का भ्रामक प्रयोग है। इसीलिए भद्दा है, विद्रूप है। बताइए, नायक अगर नायिका से कहता है कि "निकली है दिल से ये दुआ / रंग दे तू मोहे गेरुआ", तो नायिका कैसा फील करेगी। सोच कर देखिए, आज़मा कर देखिए।

प्रेम या एस्‍थेटिक्‍स से इतर हालांकि देखें, तो फिल्‍मों में किए गए प्रयोग अकसर समाज का अक्‍स होते हैं, इसीलिए मैं खूब फिल्‍में देखता हूं और सामाजिक आयोजनों में भी खूब जाता हूं। गेरुआ या भगवा पर गीतकार ही नहीं, विद्वानों की राय भी आजकल बदली-बदली सी है।

ठीक 6 दिसंबर को गांधी शांति प्रतिष्‍ठान में प्रोफेसर अनिल सदगोपाल ने "संविधान बचाओ, समाज बचाओ, संसाधन बचाओ" नामक सेमीनार में अपने भाषण की शुरुआत इसी बात से की थी कि भगवा रंग बहुत सुंदर है, सारे रंग अपने हैं, हम आखिर यह रंग उनके हवाले क्‍यों कर रहे हैं? हमें शिक्षा का भगवाकरण कहना बंद कर देना चाहिए। लोगों को यह बात जम गई थी।

बाहर आए तो देखे कि विद्वान अपूर्वानंद जी चटख भगवा शर्ट पहने हुए थे। मैंने उनकी तारीफ कर दी। वे मुस्‍कराए, जैसे कि प्रोफेसर से पहले से ही डील हो रखी हो कि मैं पहनूंगा, तुम उसे सही ठहराओगे। अब ये गाना भी आ गया मार्केट में।

मुझे लगता है कि आने वाले समय का ये प्रतिनिधि गीत है, बशर्ते कल को कोई "रंग दे तू मोहे भगवा" न लिख मारे।