गोरक्षा आंदोलन बन गया है, फिर बंटवारे का सबब #Beefgate #Dadri
गोरक्षा आंदोलन बन गया है, फिर बंटवारे का सबब #Beefgate #Dadri
पलाश विश्वास
हम साथियों, दोस्तों से बार बार कह रहे हैं, लिख भी रहे हैं कि यह महज गोहत्या निषेध आंदोलन नहीं है, यह विशुद्ध धर्मराष्ट्र का आवाहन है और यह उत्पादन प्रणाली औक कामगारों, किसानों, व्यापारियों, उद्योगों के आत्मध्वंस का चाकचौबंद इंतजाम है।
आम जनता की अपनी-अपनी आस्था होती है और हमें उस आस्था के अधिकार, उनकी धर्म की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का सम्मान करना चाहिए। हम आस्था और धर्म पर वार करते रहेंगे तो धर्मोन्मादी ताकतें फिर आम जनता को अंध राष्ट्रवाद की लहलहाती फसल बना देंगे। बेहतर हो कि हम बुनियादी मुद्दों पर ही फोकस करें और धर्मांधता और अंध राष्ट्रवाद के इस दुश्चक्री चक्रव्यूह की तमाम दीवारें ढहा दें।
यह अंध राष्ट्रवाद दरअसल अबाध पूंजी है और अबाध विदेशी हित हैं। यह मुक्त बाजार का ब्रह्मास्त्र है। जिसे वे मध्यपूर्व और इस्लामी दुनिया में और विकसित देशों के जमावड़ा यूरोप में भी खूब आजमा चुके हैं। उनका हश्र देखते हुए हम आत्मध्वंस से बाज तो आयें।
हम दरअसल इसीलिए हर देश और हर देश के नागरिकों को, इंसानियत के मुकम्मल भूगोल को संबोधित कर रहे हैं। दसों दिशाओं में धमाके हो रहे हैं। हम अंधे हैं और हम बहरे भी हैं। हमें अभूतपूर्व हिंसा, कयामत का यह नजारा दीख नहीं रहा है। हमें धमाकों की गूंज सुनायी नहीं पड़ती। काबुल और अफगानिस्ता में युध जारी है। मध्यपूर्व में युद्ध और गृहयुद्ध जारी है। तुर्की में शांति रैली पर नोबेल शांति पुरस्कार की घोषणा के साथ दो दो बम धमाके हो गये।
भारत तेजी से अरब वसंत को गले लगा रहा है और हम दसों दिशाओं में हिंसा और घृणा के ज्वालामुखी रच रहे हैं जो अब कभी भी फटने वाले हैं और हिंदू राष्ट्र जो इस्लाम के खिलाफ हम बनाने को आमादा है, वह इस हिंदू राष्ट्र को इस्लामी राष्ट्रों के अंजाम तक पहुंचाने वाला है।
पाकिस्तानी कवि ने सच लिखा है कि हम भी उन्हीं की तरह निकले। तुर्की की राजधानी अंकारा में वामपंथियों और कुर्द समर्थकों की शांति रैली में हुए दोहरे बम विस्फोट में कम से कम 95 लोग मारे गए हैं। इन विस्फोटों को दो संदिग्ध आत्मघाती हमलावरों ने अंजाम दिया। Humanity might be attacked anywhere, anytime to kill peace!
गाय पर यह घमासान क्यों?
गोरक्षा का गणित क्या है?
अरब का बसंत भारत में गोरक्षा आंदोलन बन गया है, फिर बंटवारे का सबब कब तक हम अंध राष्ट्रवाद, अस्मिता अंधकार और जाति युद्ध में अपना ही वध देखने को अभिशप्त हैं?
1857 में कार्तूस में सूअर और गाय की चर्बी होने की अफवाह ने भारत को जोड़ दिया था। हिंदू मुसलमान एकताबद्ध होकर पहली बार आजादी की लड़ाई लड़ रही थी कंपनी का राजखत्म करने के लिए। 2015 में गोरक्षा आंदलोन अब भारत में अरब वसंत है और उस वसंत की बहारें मध्यपूर्व और अफ्रीका तक में अगर तेलकुंओं की आग है तो धू-धू जल रही मनुष्यता बेइंतहा शरणार्थी सैलाब है जो दुनिया भर में लावा बनकर बह निकला है और हम कुछ भी नहीं देख रहे हैं क्योंकि हम पहचान और जाति और धर्म के नाम जाप रहे हैं और उसी दायरे में कैद हैं।
भारत जातियों में बंटा हुआ है मनुस्मृति शासन की शुरुआत से और वही सिलसिला जारी है। बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने इसी जाति को खत्म करने का मिशन शुरू किया था। हमने बाबा साहेब को ईश्वर बना दिया है और उनकी रूह कैद है स्मारकों और मूर्तियों में और हम उनके मिशन में कहीं नहीं हैं। देश विदेश उनके नाम कमा खा रहे हैं। उन्हीं बाबा के नाम मनुसमृति की मुक्तबाजारी वर्ग जाति सत्ता हमें जाति युद्ध में उलझा रही है और जाति को बनाये रखने के लिए शुरू धर्म युद्ध के कुरुक्षेत्र में हम पैदल फौजे हैं और देश फिर बंटवारे की दहलीज पर है। भारत का बंटवारा करने वाले हिंदुत्व का महागठबंधन फिर मजहब के नाम हम नागरिकों को और हमारे देश को बांटने पर आमादा है।
मुक्त बाजार के जश्न में लहलहाती उपभोक्ता संस्कृति में हम तन्हा तन्हा लहूलुहान हैं पल छिन पल छिन और हमें न रिसते हुए खीन का अहसास है और न अपने घिसते हुए जख्मों का ख्याल है और न दर्द का कोई अहसास है। यही पागल दौड़ है। खून जो रिस रहा है, उसे हम चूंता हुआ विकास मान रहे हैं। न मुहब्बत है कहीं। न दोस्ती है कहीं। न कोईरिश्ता नाता है। न सच का बोलबाला है। झूठ और अफवाहों का दंगाई राजकाज है और लोकतंत्र प्रहसन है। नागरिकता, नागरिक और मानवाधिकार निलंबित है और इंसानियत की चीखें दम तोड़ रही हैं। फिजां आग उगल रही है। मारे उमस और धुाआं जान निकल रही है।
हम डूब में टाइटैनिक बनकर डूब रहे हैं और किसी को होश भी नहीं है। महालया पर तर्पण करने वाले लोग हैं हम, पितरों की तड़पती बिलखती आत्माओं का, उनके त्याग और बलिदान का भी हम तर्पण करने वाले लोग हैं और हमने अंधियारे के कारोबार में मनुष्यता को होम यज्ञ में ओ3म स्वाहा कर दिया है। दसों दिशाओं में धमाके हो रहे हैं।
हम अंधे हैं और हम बहरे भी हैं। हमें अभूतपूर्व हिंसा, कयामत का यह नजारा दीख नहीं रहा है। हमें धमाकों की गूंज सुनायी नहीं पड़ती। ये धमाके दुनियाभर में हो रहे हैं।
सियासत, मजहब और हुकूमत अब दहशतगर्दी है। कोई देश बचा नहीं है सुरक्षित। महाबलि अमेरिका, रूस और चीन भी सुरक्षित नहीं है। दुनिया आग के हवाले है। प्रकृति जल रही है और मनुष्यता का वध हो रहा है। काबुल और अफगानिस्तान में युद्ध जारी है। मध्यपूर्व में युद्ध और गृहयुद्ध जारी है। तुर्की में शांति रैली पर नोबेल शांति पुरस्कार की घोषणा के साथ दो दो बम धमाके हो गये।
#BEEF GATE Thanks Kejri! Hope not a Gimmick again! Kejriwal sacks minister on live TV for corruption
October 16,2015 10:05


