प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ग्रीनपीस का खुला पत्र
अमरिकी राष्ट्रपति ओबामा पर सौर व्यापार और जलवायु परिवर्तन पर दवाब डालने की मांग व भारतीय सिविल सोसाइटी को चुप्प कराने की कोशिश को लेकर किया सावधान
नई दिल्ली, 25 सितंबर, 2015। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संयुक्त राष्ट्र में भाषण के आगे ग्रीनपीस ने उनके नाम एक खुली चिट्ठी लिखकर भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से गुज़ारिश की है कि वे अमरिकी राष्ट्रपति बराक़ ओबामा को अपनी उन नीतियों पर पुनर्विचार करने को कहें जिनसे जलवायु परिवर्तन की लड़ाई कमजोर हो रही है।
ग्रीनपीस इंडिया और ग्रीनपीस अमेरिका के द्वारा संयुक्त रूप से लिखे पत्र में संस्था ने भारत के नये महत्वाकांक्षी सौर ऊर्जा लक्ष्य को अपना समर्थन दिया है और उम्मीद की है कि मोदी अक्षय ऊर्जा लक्ष्यों को हासिल करने के लिए सिविल सोसायटी, निवेशकों व सभी वैश्विक साझेदारों - खासकर अमेरिकी सरकार - से बेहद ज़रूरी सहायता व समर्थन पाने में कामयाब होंगे।
इस पत्र में ऐसे तीन महत्वपूर्ण मुद्दे सूचिबद्ध किये गए हैं, जिन पर राष्ट्रपति बराक़ ओबामा को गौर देना होगा, ताकि वह जलवायु परिवर्तन में अमरिका की अगुआई को सुधार सकें। इनमें अमेरिका द्वारा सौर ऊर्जा क्षेत्र में भारत की आंतरिक जरूरतों के खिलाफ विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में दायर मुकदमे को हटाने, आर्कटिक से तेल भंडारों का दोहन रोकने तथा अमरिकी सरकार के स्वामित्व वाले कोयला भंडारों को लीज़ पर देने के कार्यक्रम को बंद करने की मांग की है।
इस पत्र में प्रधानमंत्री मोदी का ध्यान भारतीय गृह मंत्रालय द्वारा, ग्रीनपीस इंडिया तथा अन्य वैधानिक गैर सरकारी संगठनों के खिलाफ, दबाव व भयावदोहन के अभियान की ओर भी आकर्षित किया गया। हाल ही में, संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत ने अपनी रिपोर्ट में भारत सरकार द्वारा सिविल सोसाइटी को दबाने के इन प्रयासों की आलोचना की है।
पिछले साल, गृह मंत्रालय ने ग्रीनपीस के बैंक खातों को बंद किया, ग्रीनपीस कार्यकर्ताओं के यात्राओं पर प्रतिबंध लगाए और संस्था के एफसीआरए पंजीकरण को भी निरस्त करने का प्रयास किया गया है। इतना ही नहीं प्रधानमंत्री के संयुक्त राष्ट्र में बोलने के एक दिन पहले ही संस्था के उस बैंक खाते को बंद कर दिया गया है, जिससे ग्रीनपीस अपने भारतीय समर्थकों द्वारा दिये गए पैसे प्राप्त करता है।
पत्र में कहा गया है कि गृह मंत्रालय के कुछ अधिकारियों की गतिविधियों से, तथा इसके परिणामस्वरूप रचनात्मक संवाद की जगह कम होने से, अंतरराष्ट्रीय मंच पर अभिव्यक्ति की आजादी व लोकतंत्र को सम्मान देने के मसले पर भारत की छवि धूमिल हो रही है।
पत्र में इस बात पर विशेष ज़ोर दिया गया है कि संयुक्त राष्ट्र के सस्टेनबल डेवलपमेंट (सतत विकास) के लक्ष्यों को हासिल करने के लिये ज़रुरी है कि सरकार सिविल सोसाइटी के साथ स्वस्थ्य संवाद बनाए रखे, ताकी साथ मिलकर विश्व सरकारों की कोशिशों को बढ़ावा दिया जा सके: विकसित देशों पर उनके जलवायु संबंधी दायित्वों को पूरा करने का दवाब बनाये रखकर, और विकासशील देशों में लोगों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करके।