हरे राम मिश्र

अगर मोदी सरकार की तीन साल की उपलब्धियां देखी जाएँ तो सब कुछ शून्य से भी नीचे चला जाता है।

यह सरकार कुछ चापलूस एंकरों, देश विरोधी मीडिया संस्थानों तथा पेड न्यूज के भरोसे चाहे जितनी बेशर्म हसीं हँस ले लेकिन उससे उजले दिन नहीं आते हैं।

इस मुल्क में भयानक रूप से बढ़ता कुपोषण, बेरोजगारी, कृषि की बदहाली और कार्पोरेट की लूट में इजाफ़ा के आलावा मोदी सरकार की कोई उपलब्धि नहीं है।

असंगठित क्षेत्र ही देश में सबसे ज्यादा रोजगार उपलब्ध करवाता है। लेकिन नोट बंदी के बाद इस सेक्टर की भी कमर टूट गई है। लेबर चौराहे पर रोजी की तलाश में भूखे नंगे मजदूरों का हुजूम बढ़ता जा रहा है। वे काम करना भी चाहें तो भी काम ही नहीं है।

शासकीय आतंकवाद भी बहुत तेजी से बढ़ा है।

मजदूरों की मानवीय गरिमा सुनिश्चित करने वाले कानूनों को मोदी सरकार निवेश में बाधा मानते हुए ख़त्म ख़त्म करने पर तुली हुई है।

बैंक डूब रहे हैं। आम जनता अपना पैसा वापस नहीं पा रही है। क्रोनी कैपिटलिज्म ने व्यापार की स्वस्थ परंपरा को डुबो दिया है। गिरती जीडीपी ने अर्थव्यवस्था पर छाए काले बादलों को बेनकाब कर दिया है।

बीफ की मूर्खतापूर्ण बहस ने इस मुल्क के पशुपालन को संकट में डाल दिया है। यह सब राष्ट्रवाद की टुच्ची बहस की आड़ में हो रहा है।

कुछ भी आशाजनक नहीं है। लेकिन इस मुल्क की जनता को कोई फर्क नहीं पड़ता। अभी इन सवालों पर राजनातिक स्तर पर कहीं कोई सुगबुगाहट नहीं दिख रही है।