सर्दी का मौसम फिर शबाब पर पहुंचता जा रहा है। ऐसे मौसम में हर किसी को सबसे ज्यादा तलब किसी की होती है तो वह है चाय।

चाहे फक़ीर हो या अमीर, उसकी सुबह चाय के बिना नहीं होती। गरीब रात की सूखी रोटी को गुड़ या शक्कर की बनी चाय में डुबोकर नाश्ता करता है, उसकी खुशबूदार भाप को महसूस करता है और बनाने वाले का शुक्रिया अदा करता है। उधर उच्च मध्यम वर्ग के लोग टी सेट में चाय पीते हैं। चाय हमारे यहां सुबह से शाम तक चलती रहती है। हमारे अफ़साने, नॉवेल, टेलीविजन, फिल्में सब चाय के इर्द-गिर्द घूमते हैं। लड़के वाले किसी लड़की को देखने जाएं तो भी चाय !

चाय की दुकानों में लड़के-लड़कियों के बीच चाय की प्याली पर ही रोमांस अपना रंग दिखाने लगता है। घर में अकेले रह जाने वाले बुजुर्ग अपनी बहू या बेटी के इंतजार में रहते हैं कि कब वो आकर उनके सामने गर्म चाय की प्याली रख देगी।

हमारे बड़े शहरों में आजकल तंदूर पर बनी हुई चाय बहुत ज्यादा पसंद की जा रही है। शादियों की पार्टियों में भी यह चाय क्या हिंदुस्तान तो क्या पाकिस्तान, सभी जगह रंग जमाने लगी है। इस वक़्त चाय के वे सभी कुल्हड़ याद आ रहे हैं जो रेल के सफर के दौरान पीकर तोड़ दिए थे।

चाय का इतिहास

हम चाय के बगैर आज की जिंदगी की कल्पना भी नहीं कर सकते, जबकि आज हम जिस चाय का आनंद लेते हैं, वह 19वीं शताब्दी में ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यापारियों द्वारा भारत में आई थी। लेकिन यह भी हकीकत है कि उससे सैकड़ों सालों पहले तुलसी, इलायची, काली मिर्च, पुदीना, दालचीनी और अदरक से बनी चाय से हमारे यहां कई बीमारियों का इलाज किया जाता रहा है। वैसे चीन में चाय 2000 साल से पहले से उपयोग में लाई जा रही है। इसका जिक्र सैमुएल हैप्पी ने अपनी डायरी में लिखा है "कि चाय एक बेहतरीन और सेहत बढ़ाने वाला पेय है, जिसे डॉक्टरों ने पीने का मशवरा दिया है।"

चाय की क्या अहमियत है?

चाय की अहमियत का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि जब इंग्लैंड के राजा चार्ल्स द्वितीय की शादी पुर्तगीज राजकुमारी कैथरीन से हुई तो, चाय भर कर एक संदूक उन्हें तोहफे में दिया गया था।

भारत में चाय का आगमन कैसे हुआ?

इस बीच, कुछ चाय व्यापारी किसी तरह चीन से चाय के पौधे लेकर भारत पहुंचे। उसके बाद ब्रिटिश बागान मालिकों ने चाय की खेती में इतनी तरक़्क़ी की कि जल्द ही बर्तानिया का चाय का व्यापार 8.6 करोड़ पौंड को छूने लगा। लंदन की सड़कों और बाजारों में बड़े-बड़े होर्डिंग लगाए गए थे, जिनमें हिंदुस्तानी चाय की शान में गीत गाए गए थे। ऑक्सफोर्ड स्ट्रीट जो इस वक़्त भी लंदन का सबसे फैशनेबल इलाक़ा है, 1881 में भारत और सीलोन में पैदा होने वाली चाय के विज्ञापनों से अटा पड़ा था। आम और ख़ास दोनों वर्ग के बीच चाय को लोकप्रिय बनाने में रेल यात्रा की अपनी बड़ी भूमिका रही है। छोटे-बड़े रेलवे स्टेशनों पर जलते अंगारों बाली अंगीठी पर रखी तार से बंधी एल्युमिनियम की केतली लोगों की राहत की वजह थी।

हमारी कहानियों और अफसानों में क़दम- कदम पर चाय की गर्म प्याली से मुलाक़ात होती है। कुर्रतुलऎन हैदर ने तो एक नॉवेल ही लिखा है "चाय के बाग़" !

ऐसा माना जाता है कि 2732 बीसी में चीन के शासक शेंग नुंग ने गलती से चाय की खोज की थी। दरअसल, एक बार राजा के उबलते पानी में कुछ जंगली पत्तियां गिर गई, जिसके बाद अचानक पानी की रंग बदलने लगा और पानी से अच्छी खुशबू आने लगी। जब राजा ने इस पानी को पिया तो उन्हें इसका स्वाद काफी पसंद आया है। साथ ही इसे पीते ही उन्हें ताजगी और ऊर्जा का अहसास है और इस तरह गलती से चाय की शुरुआत हुई, जिसे राजा ने चा.आ नाम दिया था।

वीना भाटिया

(लेखिका हिन्दी और पंजाबी की साहित्यकार हैं)